: ६ : भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक कारतक : २४७२
सप्रभत मगळक : : :
आजे बेसतुं वरस छे. नवा वरसनां प्रभात तो घणां ऊगे छे परंतु आत्माना सम्यग्ज्ञाननो पूर्ण प्रकाश
खीलीने जे केवळज्ञान प्रगटे छे ते ज खरूं सुप्रभात छे. नवां वरसनां प्रभात तो घणां आव्यां अने घणां गयां
पण प्रभात तो तेने कहेवाय के आत्मानो जे केवळज्ञान सूर्यनो जळहळतो प्रकाश ऊग्यो ते ऊग्यो, पछी अस्त
न थाय–तेनुं नाम सुप्रभात, सुप्रभात मंगळिक छे, कई रीते मंगळिक छे? मंगळिक एटले जे आत्माना भान
द्वारा पोताना पुरुषार्थवडे केवळज्ञान पमाडे ते पोते सुमंगळ छे. निर्मळ सम्यग्दर्शन, निर्मळ सम्यग्ज्ञान अने
निर्मळ सम्यकचारित्र ते त्रण गुणोनी निर्मळ पर्याय प्रगटे ते पवित्रभाव छे–पवित्र पर्याय छे, ते पवित्र पर्याय
प्रगटतां रागद्वेषनी अपवित्र पर्यायनो नाश थाय छे तेथी ते पवित्र भाव पोते ज मंगळ छे.
आत्मा सहज स्वरूप दर्शन, ज्ञान, चारित्र, आनंद वगेरे गुणोथी भरेल स्वभाव संपदानुं मंदिर छे.
स्वभावनी पूर्ण लक्ष्मीनुं वीतरागी–मंदिर छे. आत्मा ज्ञान–आनंदथी तादात्म्य [एकमेक] स्वरूप छे, तेनाथी
कदी आत्मा छूटयो नथी. एवा आत्मस्वभावमां द्रष्टिना जोरथी जेने केवळज्ञान प्रगट्युं तेने ज सादि–अनंत
सुप्रभातनो प्रकाश थयो अने मोक्षदशा प्रगटी ते ज नवुं वर्ष बेस्युं छे. जीवने आत्माना पूर्ण स्वभावनो अने
केवळज्ञाननो महिमा आवतां परनो महिमा टळे छे–ते ज मंगळ छे.
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आजथी २४७१ वर्ष पहेलांं त्रिलोकनाथ भगवान श्री महावीर प्रभु संपूर्णज्ञानसहित आ भरतक्षेत्रमां
विचरता हता, तेओश्री विश्व–उपकारक अने महान धर्मतीर्थना प्रवर्तक तीर्थंकर महापुरुष हता. आसो वदी १४
नी पाछली रात्रे एटले के आसो वदी ०)) ना प्रातःकाळमां आयुष्य पूर्ण थतां प्रभुश्रीनो आत्मा सर्व प्रकारे
संपूर्ण शुद्ध थयो अर्थात् प्रभुश्री निर्वाण पधार्या, जीवनमुक्त भगवान देह मुक्त थया. प्रभुश्रीना निर्वाणनो आ
संदेश वीजळीनी माफक थोडी ज वारमां सर्वत्र फेलाई गई गयो अने तुरत ज देवेन्द्रो, देवो, राजवीओ अने
जनसमूह भक्तिथी गद्गद् थई निर्वाणभूमि श्री पावापुरीमां आवी पहोंच्या.
भगवान श्री महावीरनो विरह पडतां ईन्द्रोने पण प्रशस्त रागने लीधे आंखमांथी चोधार आंसु चाल्या
जाय छे अने कहे छे के अरेरे! आजे आ केवळज्ञान सूर्य अस्त थयो, केवळज्ञानी भगवंतना विरह पड्या...आ
रीते एक तरफथी विरहनां–वेदन थाय छे–परंतु बीजी तरफथी भगवान महावीर प्रभु संसारथी छूटीने संपूर्ण
मुक्तदशा पाम्या तेथी अति आनंदथी सर्वे निर्वाणकल्याणक महोत्सव उजवे छे.
भगवान श्री महावीर तीर्थनायक जगतउद्वारक तीर्थंकर पुरुष हता, तेथी समस्त भव्यात्माओ
भगवानना निर्वाण कल्याणकनो पवित्र महोत्सव उजवे ए स्वाभाविक छे. ते दिवसे प्रातःकाळे कांईक अंधारूं
होवाथी भक्तिथी रत्नोना अने घीना दीपको करवामां आव्या हता. अगणित दीपकोनी हार वडे ए महोत्सव
उजवायो होवाथी ते दिवसने ‘दीपोत्सवी’ अथवा तो ‘दीपावली’ (दीवाळी) कहेवामां आवे छे.
जे आ महावीर भगवाना निर्वाण कल्याणक–उजववानुं वास्तविक स्वरूप दर्शाव्युं छे ते प्रमाणे समजीने,
जे पोतानुं स्वरूप प्रगट करशे ते मुक्तिने पामशे. जेवुं भगवान महावीरना आत्मानुं स्वरूप छे तेवुं ज बधा
आत्मानुं स्वरूप छे. आ जे महावीर भगवाननां गाणां गाया ते पोताना स्वरूपने प्रगट करवा माटे छे, तेवा
स्वरूपने समजे तो अत्यारे पण एकावतारीपणुं प्रगट करी शकाय छे; भगवान श्री महावीर परमात्मा मोक्ष
पधार्या अने संतोना नायक श्री गौतम गणधर केवळज्ञान पाम्या–ज्ञानावरणादि रात्रिनो नाश करी केवळज्ञान–
प्रभात प्रगट कर्युं तेवा श्री केवळज्ञानीओने अमारा
न....म....स्का....र....हो.
: प्रवचनसार :
गुजराती
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यकृत श्री प्रवचनसारजीनी श्री अमृतचंद्राचार्यकृत मूळ टीकाने स्पर्शीने तेनुं
गुजराती अनुवादन तैयार थाय छे, तेनो प्रथम भाग (ज्ञानतत्व प्रज्ञापन) छपाई गयेल छे अने अहीं वांचन
माटे काचुं बाईन्डींग करीने ते तैयार करेल छे. आसो सुद १ थी तेनुं व्याख्यानरूपे वांचन शरू थयेल छे.
आचार्य भगवंतोना गुढ अंतरभावोने ऊंडेथी सींचीने पू. गुरुदेवश्री खुब स्पष्ट करे छे. आसो सुद १ ना रोज
श्री प्रवचनसारजीनी शास्त्र–पूजा तथा ज्ञान–पूजा थई हती.