कारतक : २४७२ भगवान श्री महावीर निर्वाण महोत्सव अंक : ७ :
प्रश्नोत्तर
[परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीने जिज्ञासुओए पूछेला प्रश्नो अने अने तेना उत्तर आ नीचे आपेल छे.]
: १ :
प्रश्न:–शुभभाव अने अशुभभाव एवा बे भेदनुं मूळ कारण शुं? देव–गुरु–शास्त्र के स्त्री, कुटुंब वगेरे
परनी अपेक्षा लीधा वगर शुभ–अशुभ एवा भेदनुं आत्मामां शुं कारण छे?
उत्तर:–भेदनी अपेक्षाए एटले के शुभ अने अशुभने जुदा गणवामां आवे तो तेनुं कारण ऊंधाईमां
वीर्यनी मंदतारूप के तीव्रतारूप जोडाण छे–ते छे ज्यारे ऊंधाईमां वीर्य तीव्रपणे जोडाय त्यारे अशुभभाव छे
अने ऊंधाईमां मंदपणे जोडाय त्यारे शुभभाव छे अने पुण्य–पाप बन्ने विकार होवाथी परमार्थे तो ते बंने एक
ज छे–एम अभेदपणे जोतां तेनुं कारण अज्ञानभावे स्वलक्षथी खसीने परलक्ष करवुं ते छे.
: २ :
प्रश्न:–एक जीव ज्ञानी मुनि छे, तेमने संयमदशा–सातमुं–छठ्ठुं गुणस्थान वर्ते छे, क्षयोपशम समकित छे,
अहीं संयमदशामां देह छोडीने ज्यारे ते देवलोकमां जाय छे त्यारे त्यां असंयमभाव–चोथुं गुणस्थान आवे छे
तेनुं शुं कारण?
उत्तर:–छठ्ठाथी चोथे गुणस्थाने आवे छे तेमां द्रष्टिनो दोष नथी परंतु चारित्रना पुरुषार्थनो दोष छे.
चारित्रना पुरुषार्थनी नबळाईने लीधे प्रत्याख्यानावरण अने अप्रत्याख्यानावरण कषायनो सत्तामां सद्भाव
छे, जो तीव्र पुरुषार्थ करीने ते प्रकृतिओनो सत्तामांथी क्षय कर्यो होत तो ते ज भवे मोक्ष पामत.
प्रत्याख्यानावरणादि प्रकृत्तिनो वर्तमान उपशम कर्यो परंतु सत्तामां ते केम रही गई? अहीं जीवनो पुरुषार्थ मंद
छे तेथी सामे निमित्तरूपे सत्तामां ते कर्म रह्युं छे. मुनिदशा वखते जेने चारित्रनो पुरुषार्थ अप्रतिहत नथी पण
प्रतिहत पुरुषार्थ छे तेने हजी चारित्र अधूरूं रही जाय छे अने तेथी ज नवा भवनो बंध पड्यो छे. जो चारित्र
अप्रतिहत होत तो नवा भवनो बंध पडत नहि अने ते ज भवे मोक्ष जात.
छठ्ठे गुणस्थानथी चोथे आवे छे त्यां द्रष्टिनो दोष नथी पण चारित्रनो दोष छे. द्रष्टिए तो सामान्य
एकरूप द्रव्यनुं लक्ष कर्युं छे तेथी ते तो अखंड थई छे, तेथी ते द्रष्टि तो बीजा भवमां पण चालु ज रहे छे. परंतु
चारित्र गुण अखंड थयो नथी तेथी छठ्ठेथी चोथे आवी जाय छे. जे गुण अखंड थयो छे ते गुण साथे लई जाय
छे, अने जे गुणमां खंड पडे छे ते साथे लई जवातो नथी. जो द्रष्टि अने चारित्र बंने पूरा थई जाय तो ते ज
भवे मुक्ति थाय, पण जो द्रष्टि क्षायक होय अने चारित्र अधूरूं रही जाय तो त्रण भवनी अंदर मुक्ति पामे.
अहींथी छठ्ठे गुणस्थाने देह छूटे छतां देवलोकमां छठ्ठुं नथी रहेतुं तेनुं कारण ए छे के चारित्र खंडित छे,
पुरुषार्थमां भंग पड्यो छे अने सत्तामां अप्रत्याख्यानावरणादि कर्म पड्यां छे; ज्यारे देवमांथी मनुष्य थशे त्यारे
पण चारित्रनो पुरुषार्थ नवेसरथी करवो पडशे अने ज्यारे उग्र पुरुषार्थ वडे सत्तामांथी ते कर्मोनो क्षय करशे
त्यारे ज मुक्ति थशे.
द्रष्टिनो विषय तो एकरूप अखंड छे तेथी द्रष्टि पण एकरूप रहे छे, तेमां खंड पडतो नथी. चारित्रनी
स्थिरतामां क्रम पडे छे, त्यां द्रष्टिनो बिलकुल दोष नथी. वर्तमान पुरुषार्थ साथे ज पर्यायनो संबंध छे. वर्तमान
पर्यायमां पूर्वनी पर्यायनो अभाव वर्ते छे, माटे पूर्वना दोषनुं कोई कारण वर्तमान पर्यायमां नथी. देव लोकमां
जनार मुनिने असंयत भाव थाय छे तेनुं कारण ते अवस्थानी वर्तमान योग्यता ज छे अने तेमां पुरुषार्थनो
दोष छे. कोई कर्मनुं कारण नथी तेम ज द्रष्टिनो दोष नथी.
: ३ :
प्रश्न:–जो पूर्वनी पर्याय वर्तमान पर्यायने कांई न करी शकती होय तो अमुक स्थानेथी आवेलो जीव
अमुक दशा प्राप्त न करी शके एम शा माटे? जेमके सातमी नरकेथी नीकळीने मनुष्य थयेलो जीव ते भवे मोक्ष
न जई शके एवो नियम छे–आम शा माटे बने छे?
उत्तर:–ते जीव मोक्ष नथी जई शकतो तेमां ते जीवनी वर्तमान नबळाई छे. पूर्वे ते जीवे उग्र जोरपूर्वक
ऊंधुंं वीर्य फोरव्युं छे अने ते ऊंधाई पोते वर्तमान पर्यायमां चालु राखी छे तेथी तेने वर्तमान वीर्यनी मंदता
वर्ते छे. वीर्यनी मंदता पोते ज वर्तमान–वर्तमान लंबावतो आवे छे, पूर्वनी पर्याय विकार करावती नथी. जो
वर्तमान विकारी कार्य [पर्याय] पोते करे तो पूर्वनी विकारी पर्यायने व्यवहारथी कारण कहे–