Atmadharma magazine - Ank 026
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ५४ : आत्मधर्म मागशर : २४७२
ज तेओश्री सिद्ध थता होय–एवी शैलीथी कथन कर्युं छे. प्रभुश्री आज मोक्ष पधार्या–एवा विकल्पमां जो के पर
सन्मुख वलण छे परंतु जो ते वलणने तोडीने ज्ञान सामर्थ्य आगळ वधतुं जाय तो ज ते ज्ञाने सिद्ध पर्यायने
जोई छे अने प्रतीतमां लीधी छे. सिद्धदशाने नक्की करनार जीव खरी रीते पोतानी पर्यायना सामर्थ्यने ज जुए
छे. सिद्धनो आत्मा परिपूर्ण शुद्ध शक्तिपणे उत्पाद अने–व्ययथी नित्य टकी रह्यो छे तेनो निर्णय करनार कोण
छे? जो सूक्ष्मताथी जोईए तो जेणे सिद्धनो निर्णय कर्यो छे तेणे पोतानी सिध्धदशानो ज निर्णय कर्यो छे अने ते
सिध्ध थवानो ज...
९. आ प्रवचनसार शास्त्रनी शरूआतमां श्री कुंदकुंद भगवान मंगळिकरूपे नमस्कार करतां कहे छे के–
“ते सर्वने साथे तथा प्रत्येकने प्रत्येकने,
वंदु वळी हुं मनुष्यक्षेत्रे वर्तता अर्हंतने. ३.
जेओने पोते नमस्कार करे छे तेओने वर्तमानपणे हाजर करीने नमस्कार करे छे. आचार्य प्रभु कहे छे के
१०. पूर्वे थई गया ते सर्वेने वर्तमान हाजर करुं छुं एमां खरेखर तो पर्याय अने द्रव्य वच्चेनो
आंतरो काढी नाखीने सामान्य–विशेषने एक कर्या छे–एमां स्वभावद्रष्टिनुं जोर छे; भूतमां थया ते सिध्धोने
वर्तमान करुं छुं एमां पण खरेखर परना सामर्थ्यने जाणता नथी पण पोतानी पर्यायना पूर्ण सामर्थ्यने
वर्तमानरूप करीने प्रतीतिमां ल्ये छे. महावीर भगवंतने पारिणामिक स्वभावभाव–तद्न शुध्धदशा
[मुक्ति]
क्यांय बहारमां थई न हती परंतु आत्मामां ज थई हती. “पावापुरीमां भगवान निर्वाण पाम्या अने
ऊर्ध्वश्रेणी करी मोक्षमां गया” ए तो बहारनुं व्यवहारकथन छे, ऊंचा क्षेत्रे गया पछी आत्मानी मुक्ति थई–
एम नथी, परंतु आत्मा पोते ज मुक्तदशा–स्वरूप थई गयो छे.
११. आ, आत्मानी सिध्धदशाना सामर्थ्यनो महिमा थाय छे, परंतु ते दशाना सामर्थ्यने कोण कबुले छे?
कोण तेनी प्रतीत करे छे? पुण्य–पाप रहित, क्रमरहित, एकेक समयमां परिपूर्ण ज्ञानस्वभावरूपे अनंतानंत
काळ सुधी उत्पाद थया करे एवी जे सिध्धदशा तेनी जे आत्माए प्रतीति अने महिमा कर्यो ते आत्मा पोताना
निर्मळ स्वभाव ज्ञान सिवाय कोनो आदर करशे? कोने मानशे? जो पोताना सिध्ध समान स्वभाव सामर्थ्यनो
विश्वास करे तो ज तेने सिद्ध भगवानने जोतां आवडयुं छे. सिद्ध भगवानने जोनार अने तेनो महिमा करनार
खरेखर पोतानी–सिद्ध भगवानना सामर्थ्यने जाणवारूप–पर्यायना सामर्थ्यने ज जुए छे अने तेनो ज महिमा
करे छे. परमार्थे कोई जीव परने जाणतो नथी के परनो महिमा करतो नथी.
१२. “ध्यान राखजो! आजनुं घूंटण जुदी ज जातनुं आवे छे. आ भावोने विचारीने तेनुं खूब घोलन
करवा जेवुं छे, आजे विषय सारो आवी गयो छे, अंदरनुं घूंटण बहार आवे छे. आ दिवाळीनां मंगळिक गवाय
छे.”
१३. स्वकाळने [पोतानी अवस्थाने] स्वभाव तरफ वाळवो ते ज साची ‘दि–वाळी’ छे. ‘दि’ =दिवस–
काळ; तेने पोताना स्वभाव सन्मुख वाळे त्यारे साची दिवाळी कहेवाय, एटले के पोतानी अवस्थाने स्वभाव
तरफ वाळीने केवळज्ञानरूपी सुप्रभात प्रगट्युं ते ज महा महोत्सव छे. भगवानश्री मोक्ष पधार्या तेमां आ
आत्माने शुं? तेम ज देवोए रत्न दीपको वगेरेथी मोटा महोत्सव कर्या तेमां आ आत्माने शुं? परना कारणे आ
आत्माने लाभ नथी; परंतु सिद्ध भगवानना सामर्थ्यने प्रतीतमां लईने जेणे तेनो ज अंतरथी महिमा कर्यो ते
‘सिद्धनो लघुनंदन’ थई गयो ते अल्पकाळमां सिद्ध थाय ज.
१४. जेणे पोताना ज्ञानमां सिद्ध भगवाननो निर्णय कर्यो तेने सिद्धदशाना निर्णय अने ते रूप स्थिरता
वच्चे (श्रद्धा अने चारित्र वच्चे) भले आंतरो तो पडे छे; अने ते आंतराने, एकदम स्वभाव सन्मुख थतुं
ज्ञान कबुल पण करे छे–परंतु पोते जे निर्णय कर्यो छे ते निर्णय–‘कबुलात’ अने ‘स्थिरता’ एवा बे अवस्था
भेदने भूलीने–वर्तमान पूर्ण द्रव्यने ज प्रतीतमां ले छे. द्रव्य स्वभावनी कबुलातनो निर्णय ते बे–दशा
वच्चेना अंतरने के ऊणपने स्वीकारतो नथी,–
‘भविष्यमां सिद्ध पर्याय प्रगट थशे’ एम भूत–भविष्यने