सन्मुख वलण छे परंतु जो ते वलणने तोडीने ज्ञान सामर्थ्य आगळ वधतुं जाय तो ज ते ज्ञाने सिद्ध पर्यायने
जोई छे अने प्रतीतमां लीधी छे. सिद्धदशाने नक्की करनार जीव खरी रीते पोतानी पर्यायना सामर्थ्यने ज जुए
छे. सिद्धनो आत्मा परिपूर्ण शुद्ध शक्तिपणे उत्पाद अने–व्ययथी नित्य टकी रह्यो छे तेनो निर्णय करनार कोण
छे? जो सूक्ष्मताथी जोईए तो जेणे सिद्धनो निर्णय कर्यो छे तेणे पोतानी सिध्धदशानो ज निर्णय कर्यो छे अने ते
सिध्ध थवानो ज...
वर्तमान करुं छुं एमां पण खरेखर परना सामर्थ्यने जाणता नथी पण पोतानी पर्यायना पूर्ण सामर्थ्यने
वर्तमानरूप करीने प्रतीतिमां ल्ये छे. महावीर भगवंतने पारिणामिक स्वभावभाव–तद्न शुध्धदशा
ऊर्ध्वश्रेणी करी मोक्षमां गया” ए तो बहारनुं व्यवहारकथन छे, ऊंचा क्षेत्रे गया पछी आत्मानी मुक्ति थई–
एम नथी, परंतु आत्मा पोते ज मुक्तदशा–स्वरूप थई गयो छे.
काळ सुधी उत्पाद थया करे एवी जे सिध्धदशा तेनी जे आत्माए प्रतीति अने महिमा कर्यो ते आत्मा पोताना
निर्मळ स्वभाव ज्ञान सिवाय कोनो आदर करशे? कोने मानशे? जो पोताना सिध्ध समान स्वभाव सामर्थ्यनो
विश्वास करे तो ज तेने सिद्ध भगवानने जोतां आवडयुं छे. सिद्ध भगवानने जोनार अने तेनो महिमा करनार
खरेखर पोतानी–सिद्ध भगवानना सामर्थ्यने जाणवारूप–पर्यायना सामर्थ्यने ज जुए छे अने तेनो ज महिमा
करे छे. परमार्थे कोई जीव परने जाणतो नथी के परनो महिमा करतो नथी.
छे.”
तरफ वाळीने केवळज्ञानरूपी सुप्रभात प्रगट्युं ते ज महा महोत्सव छे. भगवानश्री मोक्ष पधार्या तेमां आ
आत्माने शुं? तेम ज देवोए रत्न दीपको वगेरेथी मोटा महोत्सव कर्या तेमां आ आत्माने शुं? परना कारणे आ
आत्माने लाभ नथी; परंतु सिद्ध भगवानना सामर्थ्यने प्रतीतमां लईने जेणे तेनो ज अंतरथी महिमा कर्यो ते
‘सिद्धनो लघुनंदन’ थई गयो ते अल्पकाळमां सिद्ध थाय ज.
ज्ञान कबुल पण करे छे–परंतु पोते जे निर्णय कर्यो छे ते निर्णय–‘कबुलात’ अने ‘स्थिरता’ एवा बे अवस्था
भेदने भूलीने–वर्तमान पूर्ण द्रव्यने ज प्रतीतमां ले छे. द्रव्य स्वभावनी कबुलातनो निर्णय ते बे–दशा
वच्चेना अंतरने के ऊणपने स्वीकारतो नथी,– ‘भविष्यमां सिद्ध पर्याय प्रगट थशे’ एम भूत–भविष्यने