नूतन वर्षना मंगळ प्रभाते पीरसायेलां सबरस
परम पूज्य सद्गुरूदेवना व्याख्याननो सार
वी. सं. २४७२ कारतक सुद १
आजे भगवानश्री महावीरस्वामीना निर्वाण पधार्या पछीनो बेसता वरसनो प्रथम मंगळिक दिवस छे.
आजना प्रभाते घणा लोको ‘सबरस’ ने संभारे छे, तेनो मूळ हेतु तो सबरस एटले मीठुं [नीमक] याद
करवानो नथी परंतु तेमां आत्मानी परिपूर्ण ज्ञान अने आनंद दशा प्रगट करवानी भावना छे. सबरसमां
‘सब’ अने ‘रस’ एम बे शब्दो छे तेमां ‘सब’ नो अर्थ सर्व अने ‘रस’ नो अर्थ आनंद छे, ते बंने विशेषणो
आत्मानी पूर्ण दशाने लागु पडे छे. जेम मीठुं रसोईनी अंतर्गत सर्वत्र व्यापे छे अने स्वाद आपे छे तेम
आत्मानुं परिपूर्ण ज्ञान सर्व वस्तुओमां अंतर्गत पेसीने तेना द्रव्य–गुण–पर्यायने संपूर्णपणे जाणे छे, सर्वने
जाणनारुं ज्ञान क्यांय पण अटकनार न रह्युं; तथा, सर्वने जाणनार पण क्यांय नहि अटकनार एवा
ज्ञानस्वरूपने जेणे प्रतीतमां लीधुं ते जीवनुं ते प्रतीतिरूप ज्ञान पण क्यांय अटक्या वगर ज्ञानस्वभावमां
आगळ वधीने सर्व वस्तुओमां अंतर्गत [बधाने जाणनार] केवळज्ञानरूपे प्रगट थाय छे. अने परिपूर्ण
ज्ञानरूपे परिणमेला ते शुद्धात्माने निराकूळ स्वाभाविक पूर्ण–आनंद होय छे, ते ज आत्मानो साचो ‘रस’ छे.
आ रीते ‘सब’ कहेतां परिपूर्ण ज्ञान अने ‘रस’ कहेतां परिपूर्ण आनंद तेने आजे प्रातःकाळे संभारवामां आवे
छे; केमके आसो वद अमासना प्रभातमां श्री महावीरस्वामी संपूर्ण सिद्धदशाने अने श्री गौतमस्वामी पूर्ण ज्ञान
आनंदस्वरूप केवळज्ञान दशाने पाम्या छे ते दशानुं स्वरूप ओळखीने अने तेवो ज पोतानो स्वभाव छे एम
जाणीने आजना मंगळ प्रभाते भव्य जीवो पोतानी परिपूर्ण ज्ञान–आनंद दशानी भावना करे छे अने पोताना
पुरुषार्थनुं जोर उपाडे छे. पूर्ण ज्ञान अने आनंदनी भावना करतां तेनाथी विरुद्ध जे अज्ञान अने रागद्वेष तेने
जीव छोडे छे, अने आ ज आत्माने सुखरूप होवाथी मंगळिकस्वरूप छे. आ रीते नूतन वर्षना मंगळ प्रभातनां
‘सबरस’ पीरसाणां....
लेखक (रिपोर्टर) नी भुलथी आत्मधर्म अंक २५ मां
–आवी गयेला दोषोनी शुद्धि–
१. पानुं–२ ‘सुख समजसे पावे’ ए मथाळा नीचे आवेलुं काव्य
भाई चुनीलाल काळीदासनुं बनावेलुं छे.
२. पानुं–७ त्रीजो प्रश्न, चोथी लीटी–
“सातमी नरकेथी” तेने बदले “पांचमी नरकेथी” एम वांचवुं.
३. पानुं–१० कोलम २ लीटी १ थी ८–
“क्रोधभावनुं निमित्त पामीने.... .... .... अवश्य फेर पडे.”
आ बधुं काढी नाखीने आ प्रमाणे वांचवुं के– “क्रोधभावनुं
निमित्त पामीने जे प्रकृतिओ बंधाय तेमां मुख्यपणे क्रोधनी होय.”
४. पानुं–१० कोलम २ लीटी १६–१७–
आ बंने लाईनोमां ‘सर्वथा’ शब्द छे ते ‘जरापण’ एवा
अर्थमां छे.
प. पानुं–१३, कोलम १, लीटी ५–६–७––
“पूर्वना ज्ञाननो........थाय छे” तेने बदले “पूर्वना ज्ञाननो
क्षयोपशम लईने आव्यो छे तेनो मिथ्याद्रष्टिने अशुभभाव होय
त्यारे उपयोगरूप उघाड वर्तमान पोताथी ज थाय छे; [वर्तमान
मंदकषायथी नवो उघाड पण जीवने थई शके छे.] ” आम वांचवुं.
‘भगवान श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडप’ खाते वापरवा माटे
आवेली रकमो गया अंकमां जाहेर करी गया छीए, त्यारपछी १९–
११–४५ सुधीमां नीचे मुजब
रकमो ते खाते मळी छे:–
८५९०७।। गया अंकमां
जणाव्या मुजब
३०१/– वकील वीरजीभाई
ताराचंद तरफथी [तेमना सुपुत्र वसनजी
वीरजीना स्मरणार्थे. जामनगर.
२५/– श्री नारणदास
मोहनलाल शाह. वढवाण.
३००/– झवेरी नानालाल
काळीदासना पुत्रो अने पुत्रीओ तरफथी.
राजकोट.
१२५/– मेता हसमुखराय
चंदुलाल–राजकोट.
५१/– पारेख नानालाल
देवकरण–राजकोट.
५००/– शाह चतुरदास
छगनलाल अमदावाद
८७२०९/– कुल रकम
सत्याशी हजार बसो साडा नव रूपिया
मुद्रक–प्रकाशक–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी
शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड. ता. २–१२–४५