Atmadharma magazine - Ank 026
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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• शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक •
आत्मधर्म
वष ३ : अक : २ मगशर : २४७२
ज्ञानसुधा स्तवनन
म्ग्ज्ञरू ि [ ] (जिनेन्द्र स्तवन मंजरी पानुं १०)
१. चेतन! मोहको संग निवारो, ग्यान सुधारस धारो...चेतन!
अर्थ–हे ज्ञान स्वरूप आत्मा! अनादिथी धारण करेला अज्ञाननो संग हवे तुं छोड अने आ सम्यग्ज्ञानरूपी अमृतने
धारण कर!
२. मोह महा तम मल दूरे रे, धरे सुमति परकाश;
मुक्ति पंथ परगट करे रे, दीपक ज्ञान विलास...चेतन!
अर्थ:–ज्ञान–दीपकनो विलास थतां सम्यग्ज्ञानरूपी प्रकाशने धारण करीने ज्ञान महा अज्ञान अंधकाररूपी मेलने दूर करे छे,
अने मुक्तिना मार्गने [सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने] प्रगट करे छे, माटे हे चेतन! तुं मोहने छोडीने सम्यग्ज्ञानने धारण कर!
३. ज्ञानी ज्ञान मगन रहे रे, रागादिक मल खोय;
चित्त उदास करनी करे रे, कर्मबंध नहि होय...चेतन!
अर्थ–ज्ञानी पोताना ज्ञानस्वरूपमां मग्न रहे छे, रागादिक अशुद्धताने छोडे छे; राग–द्वेष रहितनी क्रिया ज्ञानमां ज्यारे
जीव करे त्यारे तेने कर्मबंध थतो नथी...आ माटे हे चेतन! तुं मोहने छोडीने सम्यग्ज्ञानने धारण कर.
४. लीन भयो व्यवहारमें रे, युक्ति न उपजे कोय;
दीन भयो प्रभु पद जपे रे, मुगति कहांसु होय...चेतन!
अर्थ–जे जीव शुभरागरूप व्यवहारमां ज लीन थई गयो छे अने अंतरमां सम्यग्ज्ञानरूप कोई कळा जागी नथी ते जीव
दीन थईने [एटले के पोताना परिपूर्ण स्वरूपने ओळख्या वगर] परमात्मपदना जाप करे तोपण तेनी मुक्ति क्यांथी थाय?
माटे हे चेतन! तुं अज्ञाननो संग छोडी दे अने साचा ज्ञानने धारण कर.
५. प्रभु समरो पूजो पढो रे, करो विविधि व्यवहार;
मोक्ष स्वरूपी आतमा रे, ग्यान गमन निरधार...चेतन!
अर्थ–प्रभुश्रीनुं स्मरण पूजन, कीर्तन अने ते प्रकारनो विविध व्यवहार पदने लायक करवामां आवे परंतु मोक्षस्वरूप
तो पोतानो आत्मा छे एम ज्ञानमां बराबर निर्णय करो...हे चेतन! अज्ञाननो संग छोड अने सम्यग्ज्ञानने धारण कर.
६. ज्ञान कला घटघट वसे रे, जोग जुगति के पार;
निजनिज कला उद्योत करे रे, मुगति होय संसार...चेतन!
अर्थ–मन, वचन, कायानी क्रियाओ अने विकल्पोथी पार एवी चैतन्य ज्ञानकळा दरेक आत्मामां रहेली छे, अने पोते
पोतानी ते ज्ञानकळानो [साची श्रद्धा–ज्ञानद्वारा] उद्योत करवाथी जीव संसारथी मुक्ति पामे छे...माटे हे चेतन! तुं मोहनो संग
छोड अने ज्ञानकळाने प्रगट कर...
७. बहुविध क्रिया कलेशसुं रे, शिवपद न लहे कोय;
ज्ञान कला परगाससो रे, सहज मोक्षपद होय...चेतन!
अर्थ–कलेशवाळी अनेक प्रकारनी शुभ–अशुभ क्रियाओ [शुभाशुभ भाव] करवा छतां कोई जीव आत्मानी शुद्ध दशा
पामी शकतो नथी, परंतु भेदज्ञानरूपी कळाना प्रकाशवडे सहजमां आत्मानी पूर्ण शुद्धता [मोक्ष] थाय छे. माटे हे चेतन! तुं
अज्ञानने छोड अने भेदज्ञानरूपी अमृतरसने धारण कर.
८. अनुभव चिंतामणि रतन रे, जाके हईए परकाश;
सो पुनित शिवपद लहेरे, दहे चतुर्गति वास...चेतन!
अर्थ–अनुभव ते चिंतामणि रत्न समान छे, जेना अंतरमां आत्मअनुभवनो प्रकाश प्रगट्यो छे ते पवित्र मोक्ष पर्यायने
पामे छे अने चारे गतिना जन्म–मरणनो नाश करे छे...माटे हे चेतन! तुं मोहनो संग छोड अने सम्यग्ज्ञानने धारण कर.
९. महिमा सम्यक् ज्ञानकी रे, अरूचि राग बल जोय;
क्रिया करत फल भुंजते रे, कर्म बंध नहि होय...चेतन!
अर्थ–अहो! सम्यग्ज्ञाननो महिमा जुओ! राग प्रत्ये अरुचिना बळथी अल्प राग क्रिया करवा छतां तेना फळने
सम्यग्ज्ञान भूंसी नांखे छे [एटले के सम्यग्ज्ञानी जीव रागनो स्वामी थतो नथी तेथी तेने रागनुं फळ पण आवतुं नथी]
रीते तेने कर्मनो बंध थतो नथी, माटे हे चेतन! तुं अज्ञानने छोड अने आवा सम्यग्ज्ञानने धारण कर.
१०. भेदज्ञान तबलों भलो रे, जबलों मुक्त न होय;
परम ज्योति परगट जिहांरे, तिहां विकल्प नहि कोय...चेतन!
अर्थ–आ भेदज्ञाननो अभ्यास ज्यां सुधी मुक्ति न थाय त्यां सुधी करवा योग्य छे. अने ए रीते भेदज्ञाननो अभ्यास
करतां करतां ज्यारे केवळज्ञानरूपी परम ज्योति प्रगट थाय छे त्यारे त्यां कांई विकल्प होतो नथी...माटे हे चेतन! अज्ञानना
संगने छोडीने भेदज्ञानरूपी सुधारसने धारण कर.