Atmadharma magazine - Ank 026
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म मागशर : २४७२
नमुं नमुं श्री सीमंधर नाथने! वी.सं. २४७१ आसो
नमुं नमुं श्री कुंदकुंद देवने ! वदी ०)) रविवार
नमुं नमुं श्री समयसारने ! ता. ४ – ११ – १९४५
परम पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
“श्री महावीर स्वामी आजे निर्वाण पधार्या सिद्ध थया अने श्री गौतमस्वामीने केवळज्ञान प्रगट्युं”–आ
प्रमाणे ज्ञानमां लईने जीवो निर्वाण कल्याणक महोत्सव उजवे छे. महावीर प्रभुजी तो २४७१ वर्ष पहेलांं
निर्वाणदशाने पाम्या हता छतां ‘आजे ज प्रभुजी निर्वाण पाम्या’ एम शा माटे कहे छे? खरी रीते कोई जीव
केवळज्ञानीने के सिद्ध भगवानने जाणता नथी, पण पोतानी पूर्णताने जाणे छे, पोतानी पर्यायनुं सामर्थ्य पण
तेवुं ज छे तेने वर्तमान करीने जाणे छे. केवळज्ञान अने सिद्धदशाना सामर्थ्यने नक्की करनारुं ज्ञान पोते
वर्तमानरूप छे अने ते वर्तमानथी ज जाणे छे तेथी सामा ज्ञेयने पण वर्तमानरूप करीने ज जाणे छे. ‘सिद्ध
भगवंतो गया काळे थई गया’ एम नहि पण ‘वर्तमान ज छे’ एम, वचला काळने काढी नाखीने ज्ञेयरूप सिद्ध
भगवानने पण वर्तमान ज कर्या.
२. द्रव्य अने गुण तो दरेक पर्याय साथे ज वर्तमान अखंड छे, मारा द्रव्य–गुण अने तेनी जाणवारूप
पर्याय ए त्रणे वर्तमानमां ज रहे अने सामा ज्ञेयमां द्रव्य–गुण–पर्यायना खंड पडी जाय एम बने ज नहि
अर्थात् ज्ञेयरूप सिद्ध भगवाननी पर्याय वर्तमान अने द्रव्य–गुण भूतकाळमां–एम होय नहि. परंतु जेम अहीं
ज्ञान वर्तमानरूप ज छे तेम सामे ज्ञेय पण वर्तमानरूपे ज छे. ज्ञान आखा ज्ञेय द्रव्यने वर्तमान करीने जाणे छे
एटले के पर्यायना भूत–भविष्य एवा भेदने छोडीने, बधी पर्यायोथी अभेदरूप आखुं ज द्रव्य वर्तमान छे एम
ज्ञान जाणे छे; ‘भूतकाळमां महावीर भगवान सिद्ध थया’ एम ज्ञान जाणतुं नथी पण ‘वर्तमान ज सिद्ध थया’
एम जाणे छे तेमां ज्ञान अने ज्ञेय बंने द्रव्यनी अखंडताने लक्षमां लीधी छे. भूत के भविष्यनी अवस्थाथी ज्ञान
जाणतुं नथी परंतु वर्तमान अवस्थाथी ज जाणवानुं काम करे छे अने द्रव्य–गुण तो वर्तमानरूप ज छे ए रीते
द्रव्य–गुण–पर्यायथी अखंड वस्तु वर्तमानरूप छे अने जो सामी ज्ञेय वस्तु आखी वर्तमान न होय तो उपादान–
निमित्तनो
[ज्ञान–ज्ञेयनो] मेळ ज थतो नथी.
३. भूत–भविष्यकाळनी पर्यायो छे खरी, तेनी ना नथी, परंतु अहीं तो बीजो न्याय कहेवो छे. आजे कई
शैलिथी आवे छे ते ध्यान राखजो! ख्याल करनार वर्तमानथी ख्याल करे छे के भूत–भविष्यनी पर्यायथी ख्याल
करे छे? सामा ज्ञेयनो ख्याल तो वर्तमानमां ज करे छे ने! जेम अहीं ज्ञान वर्तमान ज छे तेम सामा ज्ञेयमां पण
भूत–भविष्यने भूली जा (भूत–भविष्य पर्यायना भेदने छोडीने सर्व पर्यायोथी अखंडरूप वस्तुने वर्तमान
ज्ञेयरूप करीने जाण!). अहीं उपादानमां एक समयमां अखंड ज्ञान सामर्थ्य छे अने सामे निमित्तरूप लोकालोक
पण एक समयमां पूरा छे. अहीं ज्ञान वर्तमानरूप पूरुं होय अने सामे ज्ञेय वर्तमानरूप पूरां न होय एम बने
ज नहि. ‘एक समय ते सौ समय’ एटले शुं? के एक समयमां ज वस्तु पूरी छे, बीजा समयनी पूर्णता बीजा
समये छे अने त्रीजा समयनी त्रीजा समये छे, एम दरेक समये वस्तु पूरी छे, पण घणा समय भेगा थया पछी
वस्तुनी पूर्णता थाय छे–एम नथी.
४. वर्तमान ज्ञान वर्तमान ज्ञेयने अखंड करीने जाणे छे एटले खरेखर तो पोते एक समयमां आखो
वर्तमान छे तेनी कबुलात छे. शुं ज्ञेय वस्तुनो कोई भाग भूत भविष्यमां वर्ते छे के वर्तमान ज आखुं छे?
वर्तमान ज आखुं छे तेथी ज्ञानमां आखुं ज्ञेय आवी जाय छे. काळनुं लंबाण करीने भूत भविष्य पर्यायना
भेदने लक्षमां लेवा ते व्यवहार छे. परमार्थथी गुण–पर्यायो सहित एक ज समयमां आखुं द्रव्य वर्तमान छे.
समये समये थती पर्याय ते अखंड गुण–द्रव्यने एकेक समयमां वर्तमानरूप टकावी राखे छे. जेम कोई वस्तुनी
पर्यायने जोतां ज ज्ञानमां अखंडने प्रतीतमां लईने कहे छे के –आखी वस्तु देखाय छे; एम जेनुं जेनुं ज्ञान करे
छे तेने वर्तमान आखुं बनावे छे, भूत–भविष्य बाकी रही जता नथी; आवो ज्ञान स्वभाव छे तेथी, महावीर
प्रभुजी पूर्वे सिद्धदशा पाम्या एम भूतथी ख्याल नहि करतां, प्रभुजी आजे ज सिद्ध दशा पाम्या एम वर्तमान
ख्याल करे छे.