श्रीमंत शेठ सर हुकमीचंदजीना वरद हस्ते मंगल
मुहूर्त मागशर सुद १० वीर संवत् २४७२
ATMADHARMA With the permisson of The Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
order No. 30-24 date 31-10-44
सुवर्णपुरीमां मुक्तिना
पवित्र जैनदर्शनना परम सत्य अध्यात्म तत्त्वोना अजोड प्रचारस्थान
तरीके जाहेर थयेल सुवर्णपुरी (सोनगढ)मां मागशर सुद १० रविवारना
रोज तत्त्वप्रेमी मुमुक्षुओना मोटा समूहनां अति–अति उत्साह वच्चे महान
शासन प्रभावक प्रसंग बन्यो छे; तेनी टूंकी माहिती अत्रे आपवामां आवे छे.
‘भगवानश्री कुंदकुंद प्रवचन मंडपन’ना खातमुहूर्त प्रसंगे इंदोरथी श्रीमंत शेठ सर हुकमीचंदजी तथा
तेमनी साथे शेठ नाथालालजी पं. बंसीधरजी, पं. जीवधरजी अने पं. नाथुलालजी मागशर सुद ९ ना रोज
आव्या हता. तेमनुं भावभर्युं स्वागत करीने स्वाध्याय मंदिरे लाववामां आव्या हता, त्यारबाद प्रवचनसारजी
पर व्याख्यान थयुं हतुं.
‘व्यवहार रत्नत्रय ते निश्चय रत्नत्रयनुं खरूं कारण नथी केमके व्यवहार रत्नत्रय तो विकल्परूप छे,
शुभराग छे, तेमां पुण्य छे पण धर्म नथी’–आम जयारे व्याख्यानमां आव्युं त्यारे शेठजी बोल्या के–‘पुण्य से
धर्म नहि होता’ यह कहकर आप पुण्य से जीबोंको छुडाते नहि हो, लेकिन धर्म और पुण्यका सच्चा
स्वरूप दीखला कर धर्ममें आगे बढने के लिये आप फरमाते हो...
त्यार पछी व्याख्यान आगळ चालता एम आव्युं के ‘जैन एटले पूर्ण स्वभावना सामर्थ्य द्वारा
विकारने जीतीने पूर्ण स्वभाव प्रगट करनार ते जैन छे. जीव जयारे पूर्ण स्वभावनो निर्णय करे त्यारथी तेने
जैनपणानी शरूआत थाय छे, ते सिवाय जैनपणुं नथी.’ –आ वखते शेठजी बोली ऊठया के... ‘बिलकुल ठीक
है, जैन कोई बाडा के वेष नहि है लेकिन आत्मस्वरूप ही जैन है ऐसा आप कहते हैं.’ आ प्रमाणे तेओ
व्याख्यान वच्चे अनेकवार उत्साहमां आवीने बोलता हता.
पहेले दिवसे पोताना तरफथी रूा. प०१/– जैन अतिथि सेवा समितिने जाहेर कर्या हता.
बीजा दिवसे [मागशर सुद १० ना रोज] सवारे ८ वागे ‘मंडप’ नुं खातमुहूर्त हतुं. पहेलांं श्री
‘सिद्धचक्र’ नुं पूजन थयुं हतुं. पूजन पछी पू. गुरुदेवश्रीए मंगळिक तरीके कह्युं हतुं के– ‘आ कुंदकुंद प्रवचन
मंडपनुं मूरत छे एटले कुंदकुंद भगवानना कहेला शास्त्रना प्रवचनने जे समजे तेनी मुक्ति ज थाय छे, ए
“मुक्तिनां मांडवा” नुं आजे मंगळ मूरत छे, हजारो मुमुक्षुओ हवे तो तैयार थई गया छे.’.....
... ... त्यार बाद मुमुक्षुओना जयजयकार ध्वनि वच्चे शेठजी द्वारा खातमुहूर्त विधि थयो हतो. खातमुहूर्त
विधि पूर्ण थतां शेठजीए कह्युं हतुं के––यह भगवानश्री कुंदकुंद प्रवचनमंडपका शिलान्यास मुहूर्तका
सुअवसर प्राप्त होनेसे मैं मुझको भाग्यशाली मानता हूं...
...यह महाराजजीके उपदेशके प्रभाव से बहोत जीवोंको लाभ हूआ है...मेरा भी महाभाग्य है कि
मूझे महाराजश्रीके चरणोंकी सेवा का लाभ प्राप्त हूआ है......आप सब लोग महाराजजी से प्रकाशीत
सच्चा मोक्षमार्गके उपदेशका निरंतर लाभ ले रहे हैं इसलिये आपको धन्य है...भविष्यमें हजारो जीवों
इस तत्त्वका लाभ लेवे ऐसी हमारी भावना है...इस कार्यकी निर्विघ्न समाप्तिके लिये मैं रूा. ११००१/–
(अगीआर हजार एक), अर्पण करता हूं. यह कार्य शीघ्र पूर्ण होवे यह मेरी भावना है.
... त्यारबाद स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी आभार (वधु माटे जुओ पा. ७प)
महान उपकारी प्रभु कुंदकुंदाचार्य
मागसर वद ८ ना रोज भगवान श्री कुंदकुंदप्रभुने आचार्य पदवी एटलेके शासनना रक्षकनी पदवी
मळ्यानो महामंगळिक दिवस छे, शासन पर आचार्य प्रभुना अपार उपकारो छे, तेथी सुवर्णपुरीमां ते दिवस
मंगळिक दिवस तरीके उल्लासपूर्वक उजववामां आव्यो हतो; कुंदकुंदाचार्य प्रभुश्रीनुं पूजन तेमज अपूर्व उल्लास
भरेली भक्ति करीने तेओश्री प्रत्ये अंजलि अर्पवामां आवी हती.....