: पोष : २४७२ : आत्मधर्म : ७५ :
(अनुसंधान पान छेल्लेथी)
व्यक्त करीने शिलान्यास मुहूर्त विधिनुं कार्य पूरूं थयुं हतुं. अने तरत ज स्वाध्याय मंदिरमां व्याख्यान थयुं हतुं.
पूज्य गुरुदेवना व्याख्याननो आजनो ढंग जुदो ज हतो, आजे तेमनां अंतरनी सीमंधरप्रभु अने
कुंदकुंदाचार्यदेव प्रत्येनी भक्ति बहार व्यक्त थई जती हती. तेओश्रीए करेल मंगळिक प्रवचननो एक नानो
भाग अहीं आपवामां आवे छे:–
आजे मुक्तिमंडपनां मंगळिक छे; सर्वज्ञ भगवान त्रिलोकनाथ परमात्मा सीमंधरदेव पासे कुंदकुंद
भगवान गया हता. ८ दिवस रह्या हता अने साक्षात् दिव्यध्वनि सांभळी अंतरथी विशेष अनुभवमां स्थिरता
करी, जे शास्त्रो रच्यां छे तेमां अपूर्व अप्रतिहतभावो उतार्या छे, ते भावोनी जे प्रतीत करे ते पोतानी मोक्ष
परिणतिने लेतां वच्चे सीमंधर परमात्माने उतारे छे के हे परमात्मा! आप पूरी परिणति पाम्या छो, अने
आपने साथे राखीने अमे पण साधकमांथी पूरा थवाना छीए, वच्चे विघ्न ज नथी–वच्चे विघ्न आववानुं नथी.
जे भावे साधकदशामां उपड्या छीए ते ज भावे पूरूं करवानां छीए तेमां फेर नथी–नथी–नथी...
“कार ध्वनिमांथी कुंदकुंद भगवान वस्तुनो स्वभाव लईने आव्या अने तेनी ज कांईक प्रसादी अहीं
भव्य मुमुक्षुओने पीरसाय छे, आ तो हजी बीजडां रोपाणां छे. आ बीजडांमांथी ज केवळज्ञानना पाक पाकवानां
छे; आवो स्वभावनो भरोसो थयो छे ते ज महा मंगळिक छे.
व्याख्यान सांभळतां शेठजी वारंवार ऊछळी जता हता अने बोल्या हता के–महाराजजी! मेरे
आनंदका पार नहि है, आप तो श्री वीर भगवान और कुंदकुंदाचार्यका मार्ग प्रकाशीत कर रहा हो, मेरा
आनंदकी क्या बात करुं!! !
आजीवन ब्रह्मचर्य :– देहगामना भाई श्री बाबुलाल डायाभाई शाह [उमर
वर्ष–२८] तेमणे मागसर सुद–११ ता. १प–१२–४प ना रोज पू. श्री
सद्गुरुदेव समीपे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे, तेओ बालब्रह्मचारी छे.
सुधारो अंक–२६ :– आत्मधर्म अंक २६ पानुं–४९ कोलम–१ लीटी–७ मां
“गृहीत मिथ्यात्व” ने बदले “अगृहीत मिथ्यात्व” एम सुधारी वांचवुं.
तात्कालिक जरूर छे. :– गुजराती, हिंदी अने अंग्रेजी भाषामां आत्मधर्म
मासिकनुं (शुद्ध प्रुफरिडींग करी)सुंदर छापकाम मोटा आंकडिया गामे रही
काळजीपूर्वक करावी शके तेवा उत्साही साथीनी तात्कालिक जरूर छे.
वेतन योग्यतानुसार. अनुभव तथा सामान्य परिचय साथे लखो.
संचालक:– आत्मधर्म कार्यालय, सुवर्णपुरी–सोनगढ–काठियावाड
व्याख्यान सिवायना टाईममां तत्त्वचर्चा थती; चर्चानो मुख्य विषय उपादान–निमित्त संबंधी हतो.
चर्चाना विषयनी ज्यारे एकदम छणावट थई त्यारे एकवार शेठजी बोली उठया के––आप निमित्तका निषेध
नहि करते हो किन्तु आप तो ऐसा दीखलाते हो कि जब उपादान स्वयं कार्य परिणत होता है तब
निमित्त द्रव्य स्वयं हाजर होता ही है.
बपोरे व्याख्यान पछी हमेशा जिनमंदिरमां भक्ति थती, भक्तिमां भक्तोनो उल्लास जोईने शेठजी पण
उल्लसी पडता हता.
छेल्ला दिवसे (मागसर सुद ११ ना रोज) ज्यारे शेठजीए सांजे जवानी ईच्छा जणावी त्यारे प्रमुखश्रीए
तेमने विशेष रोकवानी आग्रहभरी विनंति करतां शेठजीए कह्युं के–मैं महाराजजीके उपदेशका अनेकबार जरुर
लाभ उठाउंगा, और मेरी तो भावना है कि मेरा समाधि मरण महाराजजीके समीपमें हो...
सवारना व्याख्यान पछी पोते नेमनाथ भगवानना वैराग्यनुं ‘बारमासी’ नुं स्तवन गायुं हतुं.
छेल्ला व्याख्यानमां एम आव्युं के–जे भावे तीर्थंकर गोत्र बंधाय ते भावे मोक्ष न पमाय पण ते भावने
स्वभावना जोरे छेदीने मोक्ष पमाय छे.” आ सांभळतां तो शेठजी ऊछळी पड्या के अहो! सम्यग्द्रष्टि के
सिवाय कौन यह बात समझ सकता है? आपके पास तो मोक्ष जानेका सीधा रस्ता है. आ प्रमाणे त्रणे
दिवस शेठजी व्याख्यान वगेरेमां खूब उत्साहथी भाग लेता हता.
मागशर सुद ११ ना रोज रात्रिचर्चा पूरी थई अने श्री कुंदकुंद भगवानना जयजयकार साथे तेओनी
मोटर रवाना थई......