आ काळे केवळज्ञान थतुं नथी अने आ काळे मोक्ष थतो नथी एवी ओथ लईने केटलाक पुरुषार्थहीन
मोक्षदशा तरफ प्रयाण करी शके छे अर्थात् केवळज्ञान अने मोक्षनो उपाय आ काळे पण साची समजण द्वारा थई
शके छे; आ बाबतमां महान तत्त्वज्ञानी श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के––
कांई नथी; वहेला चाले तो वहेला जवाय; कांई रस्तो बंध नथी. आ रीते मोक्षमार्ग छे तेनो नाश नथी. अज्ञानी
अकल्याणना मार्गमां कल्याण मानी, स्वछंदे कल्पना करी, जीवोने तरवानुं बंध करावी दे छे. अज्ञानीना रागी
बाळाभोळा जीवो अज्ञानीना कह्या प्रमाणे चाले छे; अने तेवां कर्मनां बांधेलां बन्ने माठी गतिने प्राप्त थाय छे.
आवो कुटारो जैनमां विशेष थयो छे.
वर्तमानमां भान थयुं छे माटे ‘देशे केवळज्ञान’ थयुं कहेवाय; बाकी तो आत्मानुं भान थयुं एटले केवळज्ञान. ते
आ रीते कहेवाय:– समकितद्रष्टिने आत्मानुं भान थाय त्यारे तेने केवळज्ञाननुं भान प्रगट्युं; अने भान
प्रगट्युं एटले केवळज्ञान अवश्य थवानुं; माटे आ अपेक्षाए समकितद्रष्टिने केवळज्ञान कह्युं छे. सम्यक्त्व थयुं
एटले जमीन खेडी झाड वाव्युं, झाड थयुं, फळ थयां, फळ थोडा खाधां, खातां खातां आयुष पूरूं थयुं; तो पछी
बीजे भव फळ खवाय. माटे ‘केवळज्ञान’ आ काळमां नथी. एवुं अवळुं मानी लेवुं नहि, अने कहेवुं नहि.
सम्यक्त्व प्राप्त थतां अनंता भव मटी एक भव आडो रह्यो. माटे सम्यक्त्व उत्कृष्ट छे. आत्मामां केवळज्ञान छे,
पण आवरण टळ्ये केवळज्ञान होय. आ काळमां संपूर्ण आवरण टळे नहि, एक भव बाकी रहे; एटले जेटलुं
केवळज्ञानावरणीय जाय तेटलुं केवळज्ञान थाय छे. समकित आव्ये मांही–अंतरमां–दशा फरे; केवळज्ञाननुं बीज
प्रगट थयुं. सद्गुरु विना मार्ग नथी, एम मोटा पुरुषोए कह्युं छे. आ उपदेश वगर कारणे कर्यो नथी.
केवळज्ञान नथी’ एम मानीने समजणना प्रयत्नमां अटकवुं नहीं...
द्रष्टिमां लीधो छे तेने पर्यायनो मोक्ष तो ते द्रव्यना जोरे थई ज जाय छे; माटे ‘मोक्ष नथी’ ए वात ज द्रष्टिमांथी
छोडी दे अने द्रव्यनी द्रष्टि कर. जेने सम्यग्दर्शन थयुं तेने केवळज्ञान अने मोक्ष थाय ज... माटे सौथी पहेलांं
आत्मानी साची समजण वडे सम्यग्दर्शन प्रगट करो.”