Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA With the permission of Baroda Govt. Regd No. B. 4787
Order No. 30-24 date 31-10-44
उ–अर्थपर्याय अने व्यंजनपर्याय बंने होय छे.
५७. प्र.–अरूपी वस्तुने आकृति होय?
उ–हा, प्रदेशत्व गुणने लीधे दरेक वस्तुने आकृति होय ज; तेने व्यंजनपर्याय कहेवाय छे.
५८. प्र.–धर्म–अधर्म–आकाश अने काळ ए चार द्रव्यने स्वभावव्यंजन पर्याय छे के विभाव व्यंजन पर्याय छे?
उ–ए चारे द्रव्योने सदाय स्वभावव्यंजन पर्याय ज होय छे, तेनी पर्यायमां कदी विकार थतो नथी, संसारी जीव
अने परमाणुओने ज विभावव्यंजनपर्याय होय छे.
५९. प्र.–अगुरुलघुत्वगुण प्रतिजीवी के अनुजीवी?
उ–अगुरुलघुत्वगुण बे प्रकारना छे; तेमां जे सामान्य अगुरुलघुगुण छे ते अनुजीवी छे अने जे विशेष
अगुरुलघुगुण छे ते प्रतिजीवी छे.
६०. प्र.–बंने अगुरुलघु गुणमां अभावसूचक ‘अ’ आवे छे छतां बंनेमां भेद केम?
उ–सामान्य अगुरुलघुगुण तो बधी वस्तुओमां त्रिकाळ छे, ते गुण कोई बीजाना अभावनी अपेक्षा राखतो
नथी माटे ते अनुजीवी छे अने विशेष अगुरुलघुगुण तो गोत्र कर्मनो अभाव थतां सिद्धदशामां प्रगटे छे–कर्मना
अभावनी अपेक्षा राखतो होवाथी ते प्रतिजीवी गुण छे.
अभावसूचक ‘अ’ आवे माटे ते गुणने प्रतिजीवी कहेवो एवी तेनी व्याख्या नथी, पण कोई बीजा पदार्थना
अभावनी अपेक्षा राखे ते गुण प्रतिजीवी छे.
६१. प्र.–मन ज्ञान करतां अटकावे छे के मदद करे छे?
उ–मन तो जड छे, ते ज्ञानथी जुदुं छे तेथी ते ज्ञान करवामां मदद पण न करे अने अटकावे पण नहि. ज्यारे
ज्ञान पर पदार्थने जाणे छे त्यारे मन निमित्तरूप हाजरमात्र होय छे अने ज्यारे ज्ञानवडे पोताना आत्माने ज जाणे छे
त्यारे तो मन निमित्तरूप पण होतुं नथी.
६२. प्र.– ‘आत्मा देह छोडीने चाल्यो गयो’ –त्यारे अहींथी छ द्रव्योमांथी केटला द्रव्यो गया?
उ–एक तो जीव अने तेनी साथे कार्माण तथा तैजस शरीरना रजकणो; एटले के जीव अने पुद्गल द्रव्यो गयां.
जीव अने पुद्गल द्रव्य सिवायनां चारे द्रव्यो तो सदा स्थिर छे तेओमां कदी क्षेत्रांतर थतुं ज नथी.
६३. प्र.– ‘शरीरने छोडीने जीवना प्रदेशोनुं बहार फेलावुं तेने समुद्घात कहे छे’ –आ व्याख्या बराबर छे?
उ–ना, ए व्याख्या बराबर नथी. शरीरने छोडीने आत्मप्रदेश बहार नीकळी जाय तो ते मरण कहेवाय,
समुद्घातमां तो मूळ शरीरने छोडया वगर आत्मप्रदेशो बहार फेलाय छे.
६४. प्र–राग–द्वेष आत्माना छे के जडना छे?
उ–राग–द्वेषभाव आत्मानी पर्यायमां थाय छे ते अपेक्षाए तो ते आत्माना छे; परंतु राग–द्वेषभाव ते
आत्मानुं स्वरूप नथी–तेथी आत्माना शुद्धस्वरूपनी अपेक्षाए तेने जडना पण कहेवाय छे.
६५. प्र–ईन्द्रिय सिवाय जीव होई शके के नहि?
उ–हा, सिद्ध दशामां अनंत जीवो छे तेओने ईन्द्रिय के शरीर नथी, तेमज जीव ज्यारे एक गतिमांथी बीजी
गतिमां गमन (विग्रह गति) करे छे त्यारे पण तेने ईन्द्रिय के स्थूळ शरीर होतां नथी; अने खरी रीते तो बधा ज
जीवो ईन्द्रिय अने शरीर वगरनां ज छे, ईन्द्रिय अने शरीर तो जड छे, ज्ञानस्वरूप आत्मा ते नथी जुदो ज छे.
व्यवहारथी जीवने ओळखवा माटे एकेन्द्रिय वगेरे नाम आप्यां छे.
६६. प्र–जड अने पुद्गलमां शुं फेर छे?
उ–जडनुं लक्षण अचेतनपणुं छे तेथी ‘जड’ कहेतां तेमां जीव सिवायना पांचे द्रव्यनो समावेश थई जाय छे
अने पुद्गलनुं लक्षण रूपीपणुं छे तेथी पुद्गल कहेतां एकलुं पुद्गल द्रव्य लक्षमां आवे छे; जड तो रूपी पण होय अने
अरूपी पण होय, परंतु पुद्गल तो रूपी ज होय छे.
६७. प्र–सत्देवनुं टुंकामां टूंकुं स्वरूप शुं?
उ–सर्वज्ञता; ज्यां सर्वज्ञता होय त्यां वीतरागता होय ज.
६८. प्र– ‘अर्हंतदेव’ अने ‘स्वर्गना देव’ ए बे देवोमां शुं फेर छे?
उ–अर्हंतदेव पूजनीक छे, तेओ पूर्णज्ञानी छे, विकार रहित छे, जीवन्मुक्त छे; भव रहित छे. पण स्वर्गना देव
तो अपूर्णज्ञानवाळां छे; विकार सहित छे, संसारी छे, भव सहित छे; अर्हंतप्रभुने देवपणुं गुणना कारणे छे तेथी
पूजनीक छे, अने स्वर्गनुं देवपणुं ते तो पुण्यना विकारनुं फळ छे. तेथी ते देवपद पूजनीक नथी. (अपूणर्)