Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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४२. प्र.–स्वभावनो नाश थाय के नहि? –शा माटे?
उ–जे वस्तुनो जे स्वभाव होय तेनो कदी नाश थाय नहि; जो स्वभावनो नाश थाय तो वस्तुनो ज नाश थाय,
केमके वस्तु अने वस्तुनो स्वभाव जुदा नथी. जेमके–ज्ञान ते आत्मानो स्वभाव छे, जो ज्ञाननो नाश थाय तो आत्मानो
ज नाश थाय; केमके ज्ञान अने आत्मा जुदां नथी.
४३. प्र. –कार्माण वर्गणा अने कार्माण शरीरमां शुं फेर छे?
उ–कार्माण वर्गणाना जे परमाणुओ छे तेओ हजी कर्मरूपे थया नथी पण कर्मरूपे थवानी तेनामां लायकात छे. अने
जे परमाणुओ कर्मरूपे शरीराकारे परिणम्या छे ते कर्मोना समूहने कार्माणशरीर कहेवामां आवे छे.
४४. प्र.–अरिहंतने कया कर्मो बाकी छे? –शा माटे?
उ–अरिहंतने चार अघाति कर्मो–वेदनी, आयु, नाम, अने गोत्रकर्म बाकी छे, केमके हजी तेमने योगनुं कंपन थाय छे.
४५. प्र.–पहेलांं केवळज्ञान थाय के केवळदर्शन? शा माटे?
उ–केवळज्ञान अने केवळदर्शन एक साथे ज (एक ज समये) थाय छे, केमके पूरी दशामां उपयोगना क्रम पडता नथी.
४६. प्र–धर्मद्रव्य चाले त्यारे तेने कोण निमित्त थाय?
उ–धर्मद्रव्य स्वभावथी ज स्थिर छे, ते कदी चालतुं ज नथी.
४७. प्र–धर्मद्रव्य केटला द्रव्योने स्थिर थवामां निमित्त थाय?
उ–धर्मद्रव्य स्थिर थवामां निमित्त थतुं नथी, पण जीव अने पुद्गल द्रव्य ज्यारे गति करे त्यारे तेने धर्मद्रव्य
निमित्त कहेवाय छे.
४८. प्र–संसारी जीवोने केटला प्रकारना शरीर होय छे?
उ–संसारी जीवोमां कुल पांच प्रकारना शरीर होय छे–औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस अने कार्माण.
४९. प्र–उपरना पांचमांथी ओछामां ओछा केटला शरीर होई शके? –कया जीवने?
उ–एक भवमांथी बीजा भवमां गति करता जीवने घणो ज अल्पकाळ फक्त कार्माण अने तैजस ए बे ज शरीर
होय छे.
५०. प्र– ‘काळो रंग’ ते अनुजीवी गुण छे के प्रतिजीवी गुण?
उ– ‘काळो रंग’ ते गुण नथी पण गुणनी पर्याय छे. पुद्गल द्रव्यमां रंग नामना गुणनी काळी हालत छे तेने
काळो रंग कहेवाय छे.
५१. प्र–द्रव्यत्व गुणमां उत्पाद–व्यय–धु्रव कई रीते छे?
उ–द्रव्यमां नवी अवस्था उपजे छे जुनी अवस्थानो नाश थाय छे, अने वस्तुपणे कायम टकी रहे छे–ए रीते
द्रव्यत्वगुणमां उत्पाद–व्यय–धु्रव छे; जेमके जीव द्रव्यमां सिद्धदशानुं उत्पन्न थवुं, संसारदशानो नाश थवो अने द्रव्यत्वगुण
तेनुं टकी रहेवुं ए द्रव्यत्वगुणना उत्पाद–व्यय धु्रव छे.
५२. प्र.–‘एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करी शके’ –ए वात खरी छे? –केम?
उ–हा, एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करी शके ए वात खरी छे केमके दरेक वस्तुमां अगुरुलघुत्व–नामनी शक्ति
रहेली छे, तेथी कोई एक पदार्थ अन्य पदार्थरूपे परिणमतो नथी. वळी वस्तुमां अस्ति–नास्ति धर्म छे, दरेक वस्तु पोताना
स्वरूपे छे अने परना स्वरूपे नथी एटले के दरेक वस्तु जुदी जुदी स्वतंत्र छे तेथी कोई वस्तु एक बीजानुं कांई पण करी
शकती नथी.
–अने–द्रव्यत्व नामनी शक्ति दरेक पदार्थमां छे, ते शक्तिथी दरेक वस्तुनुं कार्य स्वयं पोत पोताथी थया करे छे; तेथी
पण एक वस्तु बीजी वस्तुनुं कांई करी शकती नथी.
५३. प्र–अवधिज्ञानी जीवने पहेलांं केवळदर्शन थाय के नहि? –शा माटे?
उ–ते जीवने अवधिज्ञान पहेलांं अवधिदर्शन थाय, पण केवळदर्शन न थाय, केमके अवधिज्ञानी जीवने केवळदर्शन
होई शके नहि; केवळदर्शन तो केवळज्ञान साथे ज होय छे.
५४. प्र– ‘बधा जीवोने दर्शनपूर्वक ज ज्ञान (अर्थात् पहेलांं दर्शन अने पछी ज्ञान) होय छे’ ए वात बराबर छे?
उ–ना, बधाय जीवोने माटे तेम नथी. अपूर्ण ज्ञानवाळा जीवने दर्शनपूर्वक ज ज्ञान होय छे, परंतु जेमने पूर्णज्ञान
(केवळज्ञान) प्रगटी गयुं होय तेने तो दर्शन अने ज्ञान बंने एक साथे ज होय छे.
५५. प्र– ‘मुनिराज ध्यानस्थ बेठा छे’ –आ प्रसंगे छए द्रव्यनी क्रियानुं टूंक वर्णन करो.
उ– (१) ध्यानस्थ मुनिराजनो आत्मा ते वखते परम आनंदमां लीन छे, अर्थात् तेमने शुद्ध ज्ञान क्रिया वर्ते छे,.
(२) जड शरीरना परमाणुओनी क्रिया ते वखते स्थिर रहेवा लायक छे, (३) अधर्मास्तिकाय द्रव्य ते जीव अने
परमाणुओने स्थिर रहेवामां निमित्तरूप छे, (४) काळद्रव्य परिणमनमां निमित्त छे; (५) आकाश द्रव्य ते जग्या
आपवामां निमित्त छे, अने (६) धर्मास्तिकाय द्रव्यनी त्यां हाजरी छे पण तेने स्थितिमां निमित्त कही शकातुं नथी.
५६. प्र–ध्यान दशा वखते आत्मामां कई कई जातनी पर्याय होय?