उ–जे वस्तुनो जे स्वभाव होय तेनो कदी नाश थाय नहि; जो स्वभावनो नाश थाय तो वस्तुनो ज नाश थाय,
ज नाश थाय; केमके ज्ञान अने आत्मा जुदां नथी.
उ–कार्माण वर्गणाना जे परमाणुओ छे तेओ हजी कर्मरूपे थया नथी पण कर्मरूपे थवानी तेनामां लायकात छे. अने
उ–अरिहंतने चार अघाति कर्मो–वेदनी, आयु, नाम, अने गोत्रकर्म बाकी छे, केमके हजी तेमने योगनुं कंपन थाय छे.
४५. प्र.–पहेलांं केवळज्ञान थाय के केवळदर्शन? शा माटे?
उ–केवळज्ञान अने केवळदर्शन एक साथे ज (एक ज समये) थाय छे, केमके पूरी दशामां उपयोगना क्रम पडता नथी.
४६. प्र–धर्मद्रव्य चाले त्यारे तेने कोण निमित्त थाय?
उ–धर्मद्रव्य स्वभावथी ज स्थिर छे, ते कदी चालतुं ज नथी.
४७. प्र–धर्मद्रव्य केटला द्रव्योने स्थिर थवामां निमित्त थाय?
उ–धर्मद्रव्य स्थिर थवामां निमित्त थतुं नथी, पण जीव अने पुद्गल द्रव्य ज्यारे गति करे त्यारे तेने धर्मद्रव्य
उ–संसारी जीवोमां कुल पांच प्रकारना शरीर होय छे–औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस अने कार्माण.
४९. प्र–उपरना पांचमांथी ओछामां ओछा केटला शरीर होई शके? –कया जीवने?
उ–एक भवमांथी बीजा भवमां गति करता जीवने घणो ज अल्पकाळ फक्त कार्माण अने तैजस ए बे ज शरीर
उ– ‘काळो रंग’ ते गुण नथी पण गुणनी पर्याय छे. पुद्गल द्रव्यमां रंग नामना गुणनी काळी हालत छे तेने
उ–द्रव्यमां नवी अवस्था उपजे छे जुनी अवस्थानो नाश थाय छे, अने वस्तुपणे कायम टकी रहे छे–ए रीते
तेनुं टकी रहेवुं ए द्रव्यत्वगुणना उत्पाद–व्यय धु्रव छे.
उ–हा, एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करी शके ए वात खरी छे केमके दरेक वस्तुमां अगुरुलघुत्व–नामनी शक्ति
स्वरूपे छे अने परना स्वरूपे नथी एटले के दरेक वस्तु जुदी जुदी स्वतंत्र छे तेथी कोई वस्तु एक बीजानुं कांई पण करी
शकती नथी.
उ–ते जीवने अवधिज्ञान पहेलांं अवधिदर्शन थाय, पण केवळदर्शन न थाय, केमके अवधिज्ञानी जीवने केवळदर्शन
उ–ना, बधाय जीवोने माटे तेम नथी. अपूर्ण ज्ञानवाळा जीवने दर्शनपूर्वक ज ज्ञान होय छे, परंतु जेमने पूर्णज्ञान
उ– (१) ध्यानस्थ मुनिराजनो आत्मा ते वखते परम आनंदमां लीन छे, अर्थात् तेमने शुद्ध ज्ञान क्रिया वर्ते छे,.
परमाणुओने स्थिर रहेवामां निमित्तरूप छे, (४) काळद्रव्य परिणमनमां निमित्त छे; (५) आकाश द्रव्य ते जग्या