Atmadharma magazine - Ank 029
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १०६ : आत्मधर्म : फागण : २४७२ :
३०. प्र–मिथ्याद्रष्टि मुनिने वधारे पाप के लडाईमां उभेला सम्यग्द्रष्टि चक्रवर्तीने वधारे पाप?
उ–मिथ्याद्रष्टि मुनिने मिथ्यात्वनुं अनंत पाप क्षणे क्षणे लागे छे अने सम्यग्द्रष्टिने लडाई वखते पण ते अनंत
पाप तो टळी ज गयुं छे तेथी ते बेमांथी मिथ्याद्रष्टि मुनिने ज वधारे पाप छे. मिथ्याद्रष्टिने साचुं मुनिपणुं होय नहि.
३१. प्र–जीव अरूपी छे अने धर्म–अधर्म–आकाश–काळ द्रव्यो पण अरूपी छे तो पछी तेमने जीव केम न
कहेवाय?
उ–जीव अरूपी छे ए खरूं, परंतु जीवनुं लक्षण अरूपीपणुं नथी, जीवनुं लक्षण तो चेतना छे; बीजा चार अरूपी
द्रव्योमां चेतना नथी माटे ते जीव नथी.
३२. प्र– ‘कागळमां अक्षर लखाणा’ त्यां कागळमां उत्पाद–व्यय–धु्रव थयुं के नहि? कई रीते?
उ–उत्पाद–व्यय–धु्रव तो बधी वस्तुमां होय ज छे. कागळमां ज्यारे अक्षर लखाणा त्यारे तेमां लखाणरूप
दशानी उत्पत्ति थई, कोरी दशानो व्यय थयो अने कागळपणे धु्रवपणे टकी रह्यो छे; आ रीते उत्पाद–व्यय–धु्रव थया छे.
३३. प्र–छ द्रव्यना लक्षण शुं? छए द्रव्योना लक्षण जुदा शा माटे?
उ–जीवनुं लक्षण चेतना, पुद्गलनुं लक्षण वर्ण–गंध–रस–स्पर्श, धर्मास्तिकायनुं लक्षण गतिमां निमित्त थवुं ते,
अधर्मास्तिकायनुं लक्षण स्थिर थवामां निमित्त थवुं ते, आकाश द्रव्यनुं लक्षण बधाने जग्या आपवी ते अने काळ
द्रव्यनुं लक्षण परिणमनमां निमित्त थवुं ते छे; छए द्रव्यो जुदा जुदा होवाथी ते छएनां लक्षण जुदां छे. जुदी जुदी
वस्तुनुं लक्षण जुदुं जुदुं ज होय.
३४. प्र–काळ द्रव्यनी केटली संख्या छे अने ते कई रीते रहे छे? तथा काळ द्रव्यना केटला भेद छे?
उ–लोकाकाशना जेटला असंख्य प्रदेशो छे तेटला काळ द्रव्यो छे अने एक लोकाकाशना एक प्रदेश उपर एकेक
काळ द्रव्य रहेल छे. काळ द्रव्यना बे भेद छे, काळ द्रव्यने निश्चयकाळ कहे छे अने मिनिट, कलाक, दिवस वगेरे काळ
द्रव्यना स्थूळ भेदो छे तेने व्यवहारकाळ कहे छे.
३५. प्र–अस्तित्व गुणमां उत्पाद–व्यय–धु्रव होय के नहि?
उ–होय; नवी पर्यायना अस्तित्वनो उत्पाद, जुनी पर्यायना अस्तित्वनो व्यय अने अस्तित्वगुणनुं सळंग
धु्रवपणे टकी रहेवुं–आ रीते अस्तित्वगुणमां उत्पाद–व्यय–धु्रव थाय छे.
३६. –कोईए तमने मोक्षना बे रस्ता बताव्या, एक बलुन अने बीजुं सलुन, तमे क्यो रस्तो पसंद करशो?
उ–मोक्षनो साचो मार्ग एक ज प्रकारनो छे अने ते आत्मामां ज छे, मोक्षनो मार्ग बहारनी कोई वस्तुमां–
बलुनमां के सलुनमां–क्यांय नथी. बहारना कोई साधनथी जे मोक्षनो मार्ग बतावे ते अज्ञानी छे.
मोक्ष कोई बहारना क्षेत्रमां नथी तेथी मोक्ष माटे बहारना साधननी जरूर नथी. मोक्ष तो आत्मामां थाय छे
अने तेथी आत्मानी साची समजण ए ज मोक्षनो मार्ग छे.
३७. प्र–परमाणुना जथ्थाने स्कंध कहेवाय छे तो पछी स्कंधना जथ्थाने शुं कहेवाय?
उ–स्कंधना जथ्थाने स्कंधो (पण) कहेवाय छे.
३८. प्र–छ द्रव्यो छे तेमांथी अरूपी केटला अने जड केटला? अरूपी अने जडमां शुं फेर? ते फेर क्यां पड्यो?
उ–छ द्रव्योमां पुद्गल सिवायना पांच द्रव्यो अरूपी छे अने जीव सिवायना पांच द्रव्यो जड छे; अरूपी एटले
वर्ण–गंध–रस–स्पर्श जेमां न होय ते, अने जड एटले जेमां ज्ञान न होय ते, जीव द्रव्य अरूपी छे पण जड नथी,
पुद्गल द्रव्य जड छे पण अरूपी नथी, अन्य चारे द्रव्यो जड अने अरूपी छे.
३९. प्र–अरिहंतप्रभुने केटला प्रतिजीवी गुणो प्रगट्या होय? –शा माटे?
उ–अरिहंतप्रभुने एकेय प्रतिजीवी गुणो प्रगट्या होय नहि केमके तेमने हजी चार अघाति कर्मनो सद्भाव छे;
प्रतिजीवी गुण तो सर्व कर्मना नाशथी प्रगटे छे.
४०. प्र.–ज्ञान अने चेतनामां शुं फेर?
उ–ज्ञान ते चेतनानो एक भाग छे; चेतनाना बे प्रकार छे एक दर्शन अने बीजो ज्ञान.
४१. प्र–अस्तित्व अने ध्रौव्यमां शुं फेर छे?
उ–अस्तित्वमां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य त्रणे आवी जाय छे, पण ‘ध्रौव्य’ कहेतां तेमां उत्पाद–व्यय आवतां नथी.