Atmadharma magazine - Ank 030
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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With the permission of Baroda Govt.
ATMADHARMA order No. 30-24 date 31-10-44 Regd No. B. 4787
श्र महवर जन्म कल्यणक महत्सव
....चैत्र सुद १३....प्रभु महावीरना जन्म कल्याणकनां वधामणां....अहा! आजे भगवाननो जन्म थयो...
भगवाननुं शरीर दीपायमान तथा उद्योतमान छे....तेमनो जन्म थतां आखा विश्वमां प्रकाश फेलाय छे......
........भगवाननो जन्म फक्त मनुष्योने ज आनंदित करे छे एम नथी परंतु ते त्रणेलोकना प्राणीओने
आनंदित करे छे........ प्रभुश्रीनो जन्म कल्याणक महोत्सवने उजववा माटे मोटा मोटा ईन्द्रो अने चक्रवर्ती सर्व
परिवार सहित आवे छे अने महोत्सव उजवीने पोताने धन्य माने छे......
तीर्थंकर प्रभुनो जन्म जगतना
सर्व प्राणीओनो उद्धारक नीवडे छे........
........ जेम सूर्य प्रगट थतां जगतमां प्रकाश फेलाय छे तेम प्रभुश्रीनो जन्म थतां त्रण लोकमां शांतिनुं
साम्राज्य छवाई गयुं हतुं....अरे! जातिविरोधी प्राणी पण क्षणभरने माटे शांतिमां ओतप्रोत हतां....
पूर्वदिशा सूर्यने जन्म आपी अंधकारने नष्ट करे छे.... कुंडलपुरना महाराजा सिद्धार्थ अने महाराणी
त्रिशलादेवीए भगवानमहावीररूप तीर्थंकर–सूर्यने जन्म आपीने.... सूर्यथी पण अन्य प्रकारे घणां ज अधिक
दिव्यज्ञानप्रकाशवडे जगतना जीवोना महान अज्ञान अंधकारनो नाश कराव्यो हतो.... तेना जेवो नाश अनंत
सूर्योद्वारा त्रणे काळमां थवो सर्वथा अशक्य छे........
भगवान महावीरप्रभुना जन्मकल्याणकमहोत्सवनो महिमा जगतना प्राणीओना जन्मोत्सवोथी सर्वथा
लोकोत्तर अनुपम अने असाधारण मंगलकारी छे, प्राणीमात्रना कल्याणनुं ते कारण छे.
भगवान पोताना संपूर्ण आत्मस्वरूपने जाणीने तेमां स्थिर थया अने दिव्यवाणीवडे जगतने एज
उपदेश कर्यो के आत्मानुं स्वरूप समजो........पोतानुं स्वरूप यथार्थपणे समजीने मिथ्यादर्शन टाळ्‌या सिवाय कोई
पण जीव अहिंसक, सत्यरूप, अचौर्यरूप, ब्रह्मचर्यरूप के अपरिग्रहरूप अंशे के पूर्णताए थई शके नहि....
....आम ज्यारे तीर्थंकर प्रभुना दिव्यध्वनिवडे स्पष्टपणे जगजाहेर थतुं त्यारे शासनभक्त–देवो दुदुंभीना
नादथी तेने वधावी लेता हता....
....मुमुक्षुओ!....चालो, आपणे पण आत्मस्वरूपनी समजण करीने प्रभुश्रीना दिव्यध्वनिने
व. ध. व. अ!
ती र्थ क रो ज ग त ना ज य वं त व र्तो
“ का र ना द जि न नो ज य वं त व र्तो
जि न ना स मो स र ण सौ ज य वं त व र्तो
ने ती र्थ–चा र ज ग मां ज य वं त व र्तो
• आत्मधर्म अंक २९ सुधारो •
पानुं–कोलम–लाईन अशुद्ध शुद्ध
९६ २३ आहारनो संयोग थयो आहारनो संयोग न थयो
९७ ३३ धर्मात्माए दुःख मान्युं धर्मात्माने दुःख मान्युं
१०८ २ १६ आत्मा ते नथी आत्मा तेनाथी
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड.
प्रकाशक: जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया. ता. ३१–३–४६