आत्मसिद्धि ७०
: चैत्र : २४७२ : आत्मधर्म : १२३ :
छे के जे वस्तु होय तेनो कदी नाश न थाय, जे वस्तु न होय तेनी कदी उत्पत्ति न थाय; अने जे वस्तु होय तेमां
रूपांतर थया ज करे, अर्थात् टकीने बदलवुं (permanency with a change) ते वस्तुनुं स्वरूप छे.
शास्त्रभाषामां आ नियमने ‘उत्पादव्ययत्रौव्ययुकतं सत्” ए रीते बताववामां आवे छे. उत्पादव्यय एटले
के अवस्थानुं रूपांतर अने धु्रव एटले वस्तुनुं टकवुं–ते द्रव्यनो स्वभाव छे.
– अस्ति नास्ति –
द्रव्य अने पर्याय ए बेना स्वरूपमां एवो फेर छे के द्रव्य त्रिकाळ छे ते बदली जतुं नथी, पण पर्याय
क्षणिक छे. ते क्षणेक्षणे बदल्या करे छे. पर्याय बदलवा छतां द्रव्यनो नाश थतो नथी. द्रव्य पोताना स्वरूपे
त्रिकाळ टकतुं होवाथी बीजामां ते कदी भळी जतुं नथी. आने अनेकांत स्वरूप कहेवाय छे एटले के वस्तु पोताना
स्वरूपथी छे अने ते बीजाना स्वरूपे नथी, जेम लोढुं ते लोढा स्वरूपे छे अने लोढुं ते लाकडास्वरूपे नथी; जीव ते
जीव स्वरूपे छे पण जीव ते जड स्वरूपे नथी. आवो स्वभाव होवाथी कोई वस्तु अन्यवस्तुमां भळी जती नथी,
पण दरेक पोतपोताना स्वरूपे जुदी ज रहे छे.
– नित्य – अनित्य –
जीव पोताना वस्तु स्वरूपे टकीने अवस्थाथी बदल्या करे छे, परंतु जीव जीवरूपे ज बदले छे. जीवनी
अवस्था बदलती होवाथी संसार–दशानो नाश करीने सिद्धदशा थई शके छे. अज्ञानदशानो नाश करी ज्ञानदशा
थई शके छे; अने जीव नित्य होवाथी संसारदशानो नाश थवा छतां ते मोक्षदशापणे टकी रहे छे. आ रीते
वस्तुथी अने पर्यायथी नित्य–अनित्य स्वरूप छे ते समजवुं जोईए.मोक्षशास्त्र, अध्याय प सूत्र २९
परमाणुमां पण तेनी अवस्था बदले छे पण कोई वस्तुनो नाश थतो नथी. दूध वगेरेनो नाश थतो
देखाय छे त्यां वस्तुनो नाश नथी. दूध कांई मूळ वस्तु नथी पण ते तो घणा परमाणुओनी स्कंधरूप अवस्था छे
अने ते अवस्था बदलीने बीजी दहीं वगेरे अवस्था थाय छे–परंतु तेमां परमाणु वस्तु तो टकी ज रहे छे. वळी
दूध बदलीने दहीं थवाथी वस्तु अन्यरूपे थई जती नथी, परमाणु वस्तु छे ते तो बधी दशामां परमाणुरूपे ज रहे
छे. वस्तु कदी पण पोताना स्वरूपने छोडती नथी. श्रीमद्राजचंद्रजीए कह्युं छे के–
क्यारे कोई वस्तुनो केवळ होय न नाश
चेतन पामे नाश तो केमां भळे तपास?
जड के चेतन कोई वस्तुनो सर्वथा नाश कदी पण थतो नथी. जो ज्ञान स्वरूप चेतन वस्तु नाश पामे तो
ते शेमां भळे? चेतननो नाश थईने शुं ते जडमां पेसी जाय? एम कदी न बने. तेथी चेतन ते सदाकाळ
चेतनपणे परिणमे छे, जड ते सदाकाळ जडपणे परिणमे छे, पण वस्तु कदी नाश पामती नथी.
पर्याय बदलतां वस्तुनो नाश मानी लेवो ते अज्ञान छे, अने वस्तुनी पर्याय बीजो बदलावे एम मानवुं ते
पण अज्ञान छे, वस्तु कदी पर्याय वगर होती नथी अने पर्याय कदी वस्तु वगर होती नथी. जे अनेक प्रकारनी
अवस्थाओ थाय छे ते नित्य टकती वस्तु वगर न होय. जो नित्य टकतो पदार्थ न होय तो अवस्था क्यांथी आवे?
दूध, दहीं, माखण, घी वगेरे सर्व अवस्थाओ छे तेमां नित्य टकती मूळ वस्तु परमाणु छे. दूध वगेरे पर्याय होवाथी
ते बदली जाय छे पण ते कोई पण अवस्थामां परमाणु पोतानुं परमाणुपणुं छोडतुं नथी, केमके ते वस्तु छे–द्रव्य छे.
– सामान्य – विशेष –
द्रव्य एटले वस्तु अने पर्याय एटले वस्तुनी वर्तमान हालत; द्रव्य ते अंशी (आखी वस्तु) छे अने
पर्याय तेनो अंक अंश छे. ‘अंशी’ ने सामान्य कहेवाय छे अने ‘अंश’ ने विशेष कहेवाय छे, आ सामान्य–
विशेष मळीने वस्तुनुं होवापणुं छे. सामान्य–विशेष वगर कोई सत् पदार्थ होतो नथी. सामान्य ते धु्रव छे अने
विशेष ते उत्पाद व्यय छे–“उत्पाद व्ययधु्रवयुक्तं सत्”
जे वस्तु एक समय छे ते वस्तु त्रिकाळ छे केमके वस्तुनो नाश नथी पण रूपांतर छे. वस्तु पोतानी
शक्तिथी– [सत्ताथी–अस्तित्वथी] टके छे, तेने कोई परवस्तुनी मदद नथी, आ नियमने सहेली भाषामां
कहेवामां आवे तो ‘एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शकतुं नथी.’
छेवट
प्रश्न:– आ बधुं शा माटे समजवुं?
उत्तर:– अनादिथी चाल्युं आवतुं अनंत दुःखनुं कारण, महापापरूप, मिथ्यात्व टाळवा माटे आ बधुं
समजवुं जरूरी छे. आ समजतां आत्मस्वरूपनी साची ओळखाण थईने सम्यग्दर्शन थाय छे अने साचुं सुख
प्रगटे छे, माटे आ बराबर समजवानो प्रयत्न करवो. • • • •