। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
वर्ष त्रीजुं संपादक जेठ
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक आंक वकील २४७२
ययोगीन्द्रोने वंदन
[राग – अपूर्व अवसर एवो.]
योगीन्द्रो! तम पुनित चरण वंदन करूं!
उन्नत गिरिशृंगोना वसनारा तमे,
आव्या रंक घरे शो पुण्य प्रभाव जो;
अर्पणता पूरी कव अमने आवडे,
क्यारे लईशुं करूण उरोनो ल्हाव जो–
योगीन्द्रो–१
सत्यामृत वरसाव्यां आ काळे तमे,
आशय अतिशय ऊंडा ने गंभीर जो;
नंदनवन सम शीतळ छांय प्रसारता,
ज्ञानप्रभाकर प्रगटी ज्योत अपार जो–
योगीन्द्रो–२
अणमूला सुतनुओ शासन देवीना!
आत्मार्थीनी एक अनुपम आंख जो!
संत सलुणा! कल्पवृक्ष! चिंतामणी!
पंचमकाळे दुर्लभ तम दिदार जो!
योगीन्द्रो–३
[श्र समवसरण स्तत प. ४०]
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
अढी रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •