ATMADHARMA With the permison of the Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
Order No. 30 - 24 date 31 - 10 - 4
प्र. (७) दरेक द्रव्यमां एवो क्यो गुण छे–जेथी ते
जणाय छे?
उ. (७) दरेक द्रव्यमां प्रमेयत्व गुण होवाथी ते जणाय
छे.
प्र. (८) आकार विनानी कई वस्तु छे? तमारा
जवाबनुं कारण आपो.
उ. (८) आकार विनानी कोई वस्तु नथी केमके दरेक
द्रव्यमां ‘प्रदेशत्व’ गुण रहेलो छे तेथी वस्तुनो कोईने कोई
आकार अवश्य होय छे.
नोंध:– अहीं आपेला जवाबो नीचेना विद्यार्थीओ
तरफथी मळेला छे:–
१. किशोरचंद्र शांतिलाल देसाई सोनगढ मार्क ४०
२. कान्तिलाल रामजी शाह लाठी मार्क ४०
३. चंद्रकान्त चंदुलाल शाह मोरबी मार्क ४०
(अनुसंधान पान १५८ थी चालु)
कुर्मोन्नत=काचबा जेवा आकारनी; वंशपत्र=वांसना
पांदडा जेवा आकारनी.
९. कूळनुं स्वरूप अने तेना भेदोनी संख्या
जे पुद्गलो स्वयं जीवना शरीरमय परिणमे ते
शरीरना आकारादिने कूळ कहेवाय छे. जेम के पंचेन्द्रिय
तिर्यंचोमां शरीरना पुद्गलोना आकारादिना भेदथी हाथी,
घोडा वगेरे भेद छे तेने कूळ कही शकाय. तेम अन्यत्र आ
भेदो यथासंभव जाणवा, आवी रीते शरीरना आकारादिना
कुल भेदो नीचे प्रमाणे छे:–
(१) पृथ्वीकाय २२ लाख करोड
(२) जळकाय ७ ,, ,,
(३) अग्निकाय ३ ,, ,,
(४) वायुकाय ७ ,, ,,
(प) वनस्पतिकाय २८ ,, ,,
(६) बेईन्द्रिय ७ ,, ,,
(७) त्रेईन्द्रिय ८ ,, ,,
(८) चतुरेन्द्रिय ९ ,, ,,
(९) पंचेन्द्रिय जळचर तिर्यंचो १२।। ,, ,,
(१०) भूमिमां रहेनारा सर्पादिक ९ ,, ,,
(११) गाय वगेरे पशुओ १० ,, ,,
(१२) पक्षीओ १२ ,, ,,
(१३) मनुष्यो १२ ,, ,,
(१४) देवो २६ ,, ,,
(१५) नारकी २५ ,, ,,
बधां मळीने १९७५००००००००००० एक क्रोडा–क्रोडी
अने ते उपरांत सताणुं लाख पचास हजार करोड (अर्थात्
बे क्रोडाक्रोडीमां अढी हजर अबज ओछा.)
तात्पर्य
श्री वीतरागनी वाणी वीतरागता प्रगट करवानुं
साधन छे, माटे आ कथनने पण मुमुक्षुओए वीतरागतानुं
साधन बनाववुं जोईए.
जीव अनादिथी मिथ्यादर्शनरूप पोताना महा भयंकर
दोषना कारणे पोताना स्वरूपनी अन्यथा प्रतीति करी
रह्यो छे. ज्यां सुधी ए दोष राख्या करे त्यां सुधी ते
चोराशी लाख योनिना चक्रमां जन्म धारण करीने अनंत
दुःख भोगवे छे.
आ बधा चोराशीना जन्मनुं दुःख टाळवानो उपाय
पुण्य छे–एम अज्ञानी माने छे; दया, दान, जात्रा, भक्ति,
सेवा, पूजा, जप, तप वगेरेमां शुभभाव करवाथी
आत्मानुं कल्याण थई जशे एम पण अज्ञानीओ माने छे,
अने कदाच ते पुण्य वडे हालमां तुरत कल्याण नहि थाय
तो पण पुण्य करतां करतां काळांतरे कल्याण थई जशे एम
तेओ माने छे तेमज तेओनी ते मिथ्या मान्यताओने
अज्ञानी उपदेशको अनेक प्रकारे पोषे छे तथा शास्त्रोनां
नामे अनेक कुयुक्तिओ, द्रष्टांतो आपे छे; परंतु आत्मानुं
स्वरूप ज्यां सुधी न समजे त्यां सुधी चोराशीना अवतार
टळे ज नहि. पुण्य ते राग छे–विकार छे तेथी ते पण
चोराशीना अवतारनुं ज कारण छे. घणा जीवो
पुण्यभावथी संतोष मानी ले छे अने आत्माना परमार्थ
तत्त्वनुं ज्ञान करता नथी, तेमने मिथ्यात्वनुं मोटामां मोटुं
पाप छे अने ते ज चोराशीना अवतारनी जड छे. पुण्य तो
विकारी भाव छे अने धर्म तो आत्मानो अविकारीभाव
छे; विकार करतां करतां कदी पण अविकारीपणुं प्रगटे ज
नहि एटले के पुण्य वडे कदी पण धर्म थाय ज नहि.
चोराशी लाख योनिओमां थतां जन्मनुं मुळ अज्ञान
छे अने ते टाळवानो खरो उपाय सौथी प्रथम
मिथ्यादर्शनरूप पापने टाळीने सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते
ज छे. सम्यग्दर्शन ए ज धर्मनुं मूळ छे अने ते ज
संसारना नाशनो मूळ उपाय छे; सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी
शरूआत थाय छे अने संसारचक्र तूटी जाय छे. सम्यग्दर्शन
थतां केटलाक जीवो ते ज भवे मोक्ष पामे छे अने केटलाक
अल्पभवमां मोक्ष पामे छे. माटे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनी एकता वडे संपूर्ण शुद्धता प्राप्त करीने चोराशी
लाखमां जन्म, मरणनो नाश करी जन्म–मरण रहित सिद्ध
दशा प्रगट करवा माटे दरेक मुमुक्षुओए प्रथम सम्यग्दर्शन
प्रगट करवानो पुरुषार्थ निरंतर करवो जोईए.
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, ता. २८ – ६ – ४६
प्रकाशक: जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया. काठियावाड.