Atmadharma magazine - Ank 033
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४७२ : आत्मधर्म : १७१ :
(ख) अगृहितमिथ्यात्व= जे मिथ्यात्व अनादि काळथी चाल्युं आवतुं होय तेने अगृहितमिथ्यात्व कहेवाय छे.
प्रतिजीवीगुण= वस्तुना अभावस्वरूप धर्मने प्रतिजीवी गुण कहे छे–जेमके नास्तित्व.
बंध=अनेक चीजोमां एकपणानुं ज्ञान कराववावाळा संबंध विशेषने बंध कहे छे.
भावहिंसा=आत्मामां अज्ञान, राग, द्वेष आदि विकारी भावो थाय ते भावहिंसा छे.
समुद्घात=मूळ शरीरने छोडया वगर आत्मप्रदेशोनुं बहार नीकळवुं ते समुद्घात छे.
प्रश्न – ५
नीचेनुं दरेक वाक्य समजपूर्वक कहेनार, द्रव्यना सामान्य गुणोमांथी कया गुणनो स्वीकार करे छे ते लखो:–
(१) सुख प्राप्त करवुं ते दरेक जीवनुं प्रयोजन छे.
(२) हुं नानो हतो त्यारे मारामां ओछुं ज्ञान हतुं, पण धीमे धीमे तेमां विकास थई रह्यो छे.
(३) सिद्धत्वने प्राप्त थयेल दरेक आत्माने पोतानो आकार होय छे.
(४) गमे तेवो आकरो रोग शरीरमां आवी पडे छतां मारा एक पण गुणनो ते नाश करी शके नहि.
(५) विकार क्षणिक होवाथी तेने टाळीने हुं निर्विकारी थई शकुं छुं.
(६) आ जगतनो कोई पण कर्ता नथी.
(७) कर्मनो तीव्र उदय होवा छतां आत्मानो ज्ञानगुण क्यारेय पण सर्वथा नाश पामतो नथी.
(८) मारो आत्मा मारुं ज्ञेय छे तेथी हुं मने जाणी शकुं.
उत्तर – ५
(१) ‘सुख प्राप्त करवुं ते दरेक जीवनुं प्रयोजन छे’ एम समजनार वस्तुत्वगुणने स्वीकारे छे.
(२) ‘हुं नानो हतो त्यारे मारामां ओछुं ज्ञान हतुं, पण धीमे धीमे तेमां विकास थई रह्यो छे’ एम समजनार
द्रव्यत्वगुणने स्वीकारे छे.
(३) ‘सिद्धत्वने प्राप्त थयेल दरेक आत्माने पोतानो आकार होय छे’ एम समजनार प्रदेशत्वगुणने स्वीकारे छे.
(४) ‘गमे तेवो आकरो रोग शरीरमां आवी पडे छतां मारा एक पण गुणनो ते नाश करी शके नहि’ एम
समजनार अगुरु लघुत्वगुणने स्वीकारे छे.
(५) ‘विकार क्षणिक होवाथी तेने टाळीने हुं निर्विकारी थई शकुं छुं’ एम समजनार द्रव्यत्वगुणने स्वीकारे छे.
(६) ‘आ जगतनो कोई पण कर्ता नथी’ एम समजनार अस्तित्वगुणने स्वीकारे छे.
(७) ‘कर्मनो तीव्र उदय होवा छतां आत्मानो ज्ञान गुण क्यारेय पण सर्वथा नाश पामतो नथी’ एम
समजनार अगुरुलघुत्वगुणने स्वीकारे छे.
(८) ‘मारो आत्मा मारुं ज्ञेय छे तेथी हुं मने जाणी शकुं’ एम समजनार प्रमेयत्वगुणने स्वीकारे छे.
(नोंध:– अहीं आपवामां आवेला उत्तरो नीचेना विद्यार्थीओ तरफथी मळेला जवाबोमांथी आपवामां आव्या छे.)
१. प्राणलाल पोपटलाल शाह लाठी मार्क ४७
२. प्रवीणचंद्र शामजी पारेख लाठी मार्क ४७
३. बिपिनचंद्र लाभशंकर महेता राजकोट मार्क ४६
४. महासुख भाईचंद शाह वींछीया मार्क ४६
नाना विद्यार्थीओ माटे कुल मार्क–४०
प्र. (१) द्रव्यनां भेद केटलां छे, तेनां नाम आपो.
उ. (१) द्रव्यनां छ भेद छे, १. जीव २. पुद्गल ३. धर्मास्तिकाय ४. अधर्मास्तिकाय ५. आकाश अने ६. काळ.
प्र. (२) मुख्य सामान्यगुणोनां नाम लखो.
उ. (२) अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व अने प्रदेशत्व ए मुख्य सामान्यगुणो छे.
प्र. (३) वर्गणा केटला प्रकारनी छे, तेमांनी मुख्य वर्गणानां नाम जणावो.
उ. (३) वर्गणा बावीस प्रकारनी छे, तेमां आहार–वर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा अने
कार्मणवर्गणा मुख्य छे.
प्र. (४) अस्तिकाय द्रव्यो कया कया छे?
उ. (४) जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म अने आकाश ए पांच द्रव्यो अस्तिकाय छे.
प्र. (५) परिणमनहेतुत्व कया द्रव्यनो विशेषगुण छे?
उ. (५) परिणमनहेतुत्व ए काळद्रव्यनो विशेषगुण छे.
प्र. (६) जे द्रव्यमां बधां बाकीनां द्रव्यो रहेतां होय तेनुं नाम जणावो.
उ. (६) आकाशद्रव्यमां बधां द्रव्यो रहे छे. खरेखर तो दरेक द्रव्य पोत पोतामां ज रह्युं छे, कोई द्रव्य बीजा
द्रव्यमां रहेतुं नथी, पण व्यवहारे बोलाय छे.