Atmadharma magazine - Ank 033
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
वर्ष त्रीजुं संपादक अषाढ
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक नव वकील २४७२
वीरशासन जयंति महोत्सव
आ मासमां आषाढ वद १ ना सुप्रभाते
जगतकल्याणकारी श्री वीरशासन जयंतिना २५०१
वर्ष पूर्ण थाय छे अने ते दिवसे शासननुं २५०२ मुं
वर्ष बेसे छे.
श्री महावीर भगवानने केवळज्ञान प्रगट्या
पछी दिव्यध्वनिना अखंड प्रवाह छूटया, श्री गौतम
प्रभुए गणधरपद शोभाव्युं अने परमागम शास्त्रनी
रचना थई–ए पवित्र प्रसंगोनो महान दिवस एटले
आषाढ वद एकम....
अहो! आजना ज दिवसे वीर शासननो
दिव्यध्वनि छूटयो.... पोताना ज्ञानमां केवळज्ञान
साथेनी संधि करीने जीवो एकावतारी थई जाय एवो
आजनो दिवस छे. आजे वीरशासननो जीवंत दिवस
छे.... ठेठ केवळज्ञानथी परंपरा चाली आवती वाणी
महाभाग्ये आजे पण सांभळवा मळे छे....
अनेकान्तनुं प्रयोजन
“बाह्य व्यवहारना घणा विधिनिषेधना
कर्तृत्वना महात्म्यमां कंई कल्याण नथी; एम अमने तो
लागे छे. आ कंई एकान्तिक द्रष्टिए लख्युं छे अथवा
अन्य कंई हेतु छे एम विचारवुं छोडी दई, जे कंई ते
वचनोथी अंतरमुख वृत्ति थवानी प्रेरणा थाय ते
करवानो विचार राखवो ए ज सुविचारद्रष्टि छे..........
बाह्य क्रियाना अंतर्मुखद्रष्टि वगरना विधि निषेधमां
कंई पण वास्तव्य कल्याण रह्युं नथी.......... अनेकांतिक
मार्ग पण सम्यक् एकांत एवा निज पदनी प्राप्ति
कराववा सिवाय बीजा अन्य हेतुए उपकारी नथी, एम
जाणी लख्युं छे. ते मात्र अनुकंपा बुद्धिए, निराग्रहथी
निष्कपटताथी, निर्दंभताथी अने हितार्थे लख्युं छे; एम
जो तमे यथार्थ विचारशो तो द्रष्टिगोचर थशे....”
[श्रीमद् राजचंद्र, गुजराती आवृत्ति बीजी, पा – ३४६ – ३४७]
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
अढी रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •