वर्ष पूर्ण थाय छे अने ते दिवसे शासननुं २५०२ मुं
वर्ष बेसे छे.
प्रभुए गणधरपद शोभाव्युं अने परमागम शास्त्रनी
रचना थई–ए पवित्र प्रसंगोनो महान दिवस एटले
साथेनी संधि करीने जीवो एकावतारी थई जाय एवो
आजनो दिवस छे. आजे वीरशासननो जीवंत दिवस
छे.... ठेठ केवळज्ञानथी परंपरा चाली आवती वाणी
महाभाग्ये आजे पण सांभळवा मळे छे....
लागे छे. आ कंई एकान्तिक द्रष्टिए लख्युं छे अथवा
अन्य कंई हेतु छे एम विचारवुं छोडी दई, जे कंई ते
वचनोथी अंतरमुख वृत्ति थवानी प्रेरणा थाय ते
करवानो विचार राखवो ए ज सुविचारद्रष्टि छे..........
बाह्य क्रियाना अंतर्मुखद्रष्टि वगरना विधि निषेधमां
कंई पण वास्तव्य कल्याण रह्युं नथी.......... अनेकांतिक
कराववा सिवाय बीजा अन्य हेतुए उपकारी नथी, एम
जाणी लख्युं छे. ते मात्र अनुकंपा बुद्धिए, निराग्रहथी
निष्कपटताथी, निर्दंभताथी अने हितार्थे लख्युं छे; एम
जो तमे यथार्थ विचारशो तो द्रष्टिगोचर थशे....”