समजाय तो शुं जड समजशे? चैंतन्यना ज्ञानमां न समजाय एवुं कांई छे ज नहि. चैतन्यमां बधुं समजवानी
ताकात छे. ‘न समजाय’ ए वात जडना घरनी छे, ‘आत्मा न समजाय’ एम कहेनारने आत्मानी रुचि ज
नथी पण जडनी रुचि छे. मुक्तिनो रस्तो एक सम्यग्ज्ञान ज छे. अने संसारनो रस्तो पण एक अज्ञान ज छे.
संशोधनोथी प्राप्त थाय छे, बाह्य संशोधनथी ते मळे तेम नथी. जो तने आत्मानी रुचि होय तो पहेलांं तुं ए
नक्की कर के कोई पण पर वस्तु मारी नथी, पर वस्तु मने सुख–दुःख करती नथी, हुं परनुं कांई करतो नथी. आम
बधा परनी द्रष्टि छोडीने स्वने जो. पोतानी पर्यायमां राग होय ते रागने कारणे पण परवस्तु मळती नथी माटे
राग निरर्थक छे–आम मान्यता थतां राग प्रत्येनो पुरुषार्थ लूलो थई जाय छे. परनी क्रियाथी जुदो तो जाण्यो तेथी
हवे अंतरमां रागथी जुदो जाणीने ते रागथी जुदो पडवानी क्रिया करवानुं रह्युं. आ रीते एक ज्ञानक्रिया ते ज
आत्मानुं कर्तव्य छे. परनी क्रिया तो आत्मा करी ज शकतो नथी. पण परथी जुदापणानुं भान करनार आत्मा छे,
अने प्रज्ञाछीणी वडे ज आत्मा बंधथी भिन्नपणे ओळखाय छे अने आ प्रज्ञाछीणी ज मोक्षनो उपाय छे.
तारा उपर छे, ते चिंतानुं तने दुःख छे, पण तारी ते चिंताने लीधे परनां कोई कार्य थतां नथी अने तारुं स्वकार्य
बगडे छे. माटे हे भाई! अनादिथी आज सुधीनी तारी पर संबंधीनी सर्व चिंता खोटी थई–निष्फळ गई... माटे
हवे प्रज्ञावडे तारुं भिन्न स्वरूप जाणीने तेमां एकाग्र था. परनी चिंता करवी ते तारुं स्वरूप नथी.
न हो तेनी साथे पर द्रव्योना परिणमनने कांई संबंध नथी.
चिंता छोडी स्वने जो. स्वने ओळखतां परनी चिंता छुटी जशे अने आत्मानी शांति अनुभवाशे. तारे तारा
धर्मनो संबंध आत्मा साथे राखवो छे के पर साथे? आत्माना धर्मनो संबंध कोनी साथे छे ते अहीं समजाव्युं छे.
आवी स्वाधीनतानी श्रद्धा अने ज्ञान करे तेने कये ठेकाणे आत्मा साथे संबंध न होय? अने आवी श्रद्धा ज्ञान
होय ते कया ठेकाणे शरीरादिनो संबंध माने? स्वभावनो संबंध तूटे नहि अने परनो संबंध क्यांय माने नहि–
बस, आ ज धर्म छे.