Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 21

background image
वार्षिक लवाजम
अढी रूपिया
छुटक अंक
चार आना र् म्ग्र्
वर्ष त्रीजुं : संपादक : भाद्रपद
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक अगियार वकील २४७२
अलौकि आत्मधर्ममां
पुण्यनी कांई किंमत नथी
प्रश्न:– धर्ममां कोनां वखाण कराय छे?
उत्तर:– धर्ममां धर्मीना वखाण कराय छे, परंतु पुण्यना
के पुण्यना फळ–पैसा वगेरेनां वखाण धर्ममां होता नथी, केमके
पुण्यना आधारे के पैसा वगेरेना आधारे धर्म नथी पण
धर्मीना आधारे धर्म छे. धर्मी एटले आत्मा. पोते पोताना
आत्मस्वभावने ओळखीने तेनो महिमा करे, अने विकल्प ऊठे
तो बहारमां पण धर्मात्मानां ज वखाण करे. जेने आत्मानो
धर्मस्वभाव रुचे ते बहारमां पण धर्मात्मानो ज महिमा करे
अने अंतरमां विकार रहित स्वभावनो ज महिमा करे. जेने
पुण्यनो महिमा छे तेने धर्मनो महिमा नथी केमके पुण्य ते
विकार छे अने जेने विकारनो महिमा छे तेने अधर्मनो महिमा
छे पण अविकारी आत्मधर्मनो महिमा नथी. लौकिकमां पुण्यथी
जे मोटो होय ते मोटो गणाय छे परंतु अलौकिक धर्म मार्गमां
तो आत्माना गुणोमां जे मोटा होय ते ज मोटा छे; अलौकिक
आत्मधर्ममां पुण्यनी कांई किंमत नथी........
(समयसारजी मोक्ष अधिकारना व्याख्यानमांथी)
: : भगवन श्र कदकद प्रवचनमडप : :
‘श्रीमंडप’ उपर मोभ चडाववानुं मंगलमुहुर्त श्रावण सुद १५
(–रक्षाबंधन) सोमवारना दिवसे सवारे सात वागे थयुं हतुं.
मुमुक्षुओए ते प्रसंग होंशथी उजव्यो हतो. पर्युषणना दिवसो
दरमियान ‘श्रीमंडप’मां प्रवचनो थाय ते माटे तैयारी चाले छे.
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •