Atmadharma magazine - Ank 036
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: २२६ : आत्मधर्म आसो : २४७२
२३. वीतरागना भक्तोने स्वर्ग–मोक्षनो संगम
वीर सं. २४७१ ना वैशाख वद ८ ना रोज श्री
जैन स्वाध्याय मंदिरने श्रीमंत शेठ सर हुकमीचंदजी ना
हस्ते (श्री नानालाल भाई जसाणी तरफथी) चांदीनुं
समयसारजी अर्पण करवामां आव्युं हतुं. ज्यारे शेठजीना
हाथमां श्री समयसारनुं चांदीनुं पानुं आव्युं त्यारे शास्त्र
भक्तिथी तेओ बोली उठया के
धन्य सरस्वती मात!
आप मेरा शिरछत्र हो. एम कहीने भक्तिवडे बे हाथमां
ते पानुं लईने शीर पर चडाव्युं हतुं.
अहीं ऋषभदेव भगवाननी भक्ति करतां
महान संतमुनि कहे छे के हे नाथ! तारा भक्तो तने
नमस्कार करतां बे हाथ जोडीने शीरपर चडावे छे तेथी
अमे एम जाणीए छीए के तेमने ऊंची बे दशानो
संगम थवानो छे. हे नाथ! तारा भक्तोने स्वर्ग अने
मोक्षनो संगम थाय छे. प्रभो! तारी भक्ति करतां जे
शुभराग छे ते वडे ऊंचा पुण्य बंधाई जाय छे तेथी
एकाद भव ऊंची देवगतिनो थाय छे अने तारी भक्ति
करतां जे वीतरागतानी ओळखाण अने बहुमान छे ते
अल्पकाळमां मोक्ष आपे छे. आ रीते तारा भक्तोने
स्वर्ग–मोक्षनो संगम थाय छे. पण जे कुदेवादिने माने
छे तेओ वीतरागनो अनादर करनारा छे, तेओने
नरक अने निगोद ए बेनो संगम थाय छे.
२४. –भक्तनी नम्रता–
हुं मोटो राजा अने भगवान पासे केम नमुं?
अथवा तो पूजनादि कार्यो मारी जाते केम करुं?
भक्तोने आवुं मान देव–गुरु–शास्त्र पासे केम होय!
अरे भाई! तुं जडनो–धूळनो राजा छो भगवान पासे
तो दासानु दास छो, दीन छो, भिखारी छो. महान
राजा पण भक्तिथी कहे छे के हे नाथ, हुं तारो पामर
दास छुं, तारा चरणो ज्यां पड्या त्यांनी धूळ मारा
मस्तके चडे तो हुं मने धन्यभाग्य मानुं छुं. अबजोनी
मिल्कतना धणी राजकुमारो कहे छे–हे जिनदेव, हे
तारणहार, हे केवळज्ञान लक्ष्मीना धणी! अमे आपने
शुं आपीए! लक्ष्मीवंत तो आप ज छो, अमे दीन
छीए. महा वीर्यवान शार्दुल सिंहोना टोळां पण
भगवान प्रत्ये भक्तिथी बे हाथ (आगळनां बे पग)
जोडीने नमस्कार करी ऊठे छे.
देव–गुरु–शास्त्र भक्तिना प्रसंगे भक्तने
भक्ति उछळे, शास्त्रनुं पण बहुमान करे के–धन्य
अवतार धन्य धन्य सरस्वती देवी, (शास्त्रोने अर्थात्
जिनवाणीने सरस्वती देवी कहेवाय छे) आप मारा
शिरछत्र छो. आप ज्ञानभंडार छो मारा सम्यग्ज्ञानना
दातार आप ज छो आपने मारुं सर्वस्व अर्पण छे.
२५. –भक्तोनो विश्वास–
हे भगवान! भक्तो बे हाथ जोडीने आपने
नमस्कार करे छे तेथी तेमने स्वर्ग–मोक्षनी प्राप्ति
थाय छे. जुओ, आ भगवानना भक्तोनो विश्वास.
“मारुं शुं थशे, मारे अनंत भव करवानां हशे तो”
हजी आवी शंकामां पड्यो होय ए तो भव रहित
भगवाननी भक्ति शुं करशे? भगवानना भक्तोने
निःशंकता होय छे के–“हवे वीतरागभावनो ज
आदर कर्यो छे, हवे नरक अने तीर्यंच ए बे गतिना
द्वारने तो ताळां देवाई गयां छे–ए बे गतिमां
अवतार होई शके नहि. अने भव होय तो हवे
स्वर्ग–मनुष्य सिवाय बीजो भव नथी. अने
अल्पकाळे वीतरागभावनी पूर्णता करीने हुं मुक्त
थवानो छुं, हवे लांबो संसार होई शके नहि.” आनुं
नाम वीतरागनो भक्त अने ए ज तेनी
वीतरागभक्तिनुं फळ. [चालु]
. स्वाधीन धर्म.
सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक स्वरूपस्थिरतानी
श्रेणीमांडीने जीव केवळज्ञान ले छे; तेने कोई कर्म के
संयोग रोकतां नथी. शरीरमां रोग होय, निर्धनता
होय, छोकरो मरे छतां ते वखते जीव सम्यग्दर्शन–
ज्ञान पामीने–निर्ग्रंथ मुनि थई–स्वरूप स्थिरतानी
श्रेणीवडे केवळज्ञान पामीने सिद्ध थाय छे. शरीरनी
अवस्था बदलवा टाणे आत्मा क्यां बदलाई जाय छे?
आत्मानो स्वभाव तो सदाय शुद्धरूप पूर्ण छे. ज्यारे
पोते तेनी द्रष्टि अने स्थिरता करे त्यारे थई शके छे.
परद्रव्यनी अवस्था अनुकूळ होय तो धर्म थाय
एम माननार धर्मने पराधीन माने छे. धर्म पराधीन
नथी. धर्म माटे एकवार शरीर, कुटुंब, स्त्री, पुत्र,
पैसा, आबरू अने राग–द्वेषना विकल्प ए बधानी
अर्पणता करी दे–कोई सामुं न जो. धर्म माटे जे
परद्रव्यनी आशा राखे छे तेने पोताना स्वाधीन ज्ञान
स्वभावनी खबर नथी. जगतना बधा पर पदार्थो
बदले तेने लीधे मारी अवस्था बदले तेम नथी. पर
वस्तु गमे तेम परिणमो पण हुं तो मारा स्वभवमां
ज ज्ञातापणे परिणमुं छुं–आम ज्ञानी पुरुषो जाणे छे.