Atmadharma magazine - Ank 036
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष त्रीजाुं : संपादक : आसो
अंक बार रामजी माणेकचंद दोशी २४७२
वकील
जागर जाग!
कोईने फुंफाडा मारतो सर्प करडयो होय अने गारूडी एवो जोरदार
मंत्र फेंके के ते सर्प बहार आवीने सामाने चडेलुं झेर पाछुं चूसी ले. तेम
चैतन्यभगवाने अनादिथी अज्ञानरूपी झेर चडयां छे, श्री कुंदकुंद प्रभु
तेने जगाडे छे के, अरे चैतन्य जाग रे जाग, आ समयसारना दैवी मंत्रो
आव्या छे ते तारा शुद्धात्म स्वरूपने दर्शावीने अनादिथी चडेलां झेर
उतारी नाखे छे. हवे सुवुं नहि पालवे, जाग रे जाग, तारा चैतन्यने जो.
[पूज्य सद्गुरुदेवश्रीना व्याख्यानमांथी]
• सचन •
आ अंके तमाम ग्राहकोनुं लवाजम पूरुं थाय
छे. एथी नवा वर्षनुं एटले अंक ३७ थी ४८ सुधी
एक वर्षनुं वार्षिक लवाजम हिंदमां रूपिया अढी–
परदेशनां रूपिया त्रण तुरत ज मोकलावी आपशो.
लवाजम मोकलती वखते दरेक ग्राहके
पोतानो ग्राहक नंबर अवश्य लखवो के जेथी ३७ मो
अंक वखतसर मोकलावी शकाय, नहितर अंक मोडो
मळवानो अथवा तो भूलथी वी. पी. थवानो पूरो
संभव रहेशे. माटे ग्राहक नंबर लखवानुं भूलशो
नहि.
आसो वद १३ सुधीमां आपनुं लवाजम अहीं
नहि आवे तो ३७ मो अंक आपने वी. पी. थी
मोकलवामां आवशे जेना आपे बे रूपिया चौद आना
भरवा पडशे.
कोईपण कारणसर जे ग्राहकोने ग्राहक तरीके
चालु रहेवा ईच्छा न होय तेमणे ते प्रमाणे कृपा करी
एक पोस्टकार्ड लखी मोकलवुं जेथी अमने वी. पी.
करवानो खोटो खर्च तेम ज परिश्रम न थाय.
आशा छे के तमाम ग्राहको उपरनी सूचनाओनो
बराबर अमल करशे. –रवाणी
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
अढी रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया काठियावाड •