Atmadharma magazine - Ank 036
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: २१० : आत्मधर्म आसो : २४७२
अनेकांत संबंधी व्याख्याना आधारे
– केटलाक प्रश्नोत्तर
[श्री समयसारजी पानुं ५०२]
१. प्र. –जेना वडे ओळखाय ते शुं? अने जे ओळखाय ते शुं?
उ. –जेना वडे ओळखाय ते ज्ञान छे अने जे ओळखाय ते ज्ञेय छे. ज्ञान पोताना आत्माने ओळखी शके छे.
२. प्र. –आत्मा अनेकांतमय छे छतां तेने ज्ञानमात्र केम कह्यो? ज्ञान सिवायना बीजा अनंत धर्मो
आत्मामां छे तेनुं शुं?
उ. –आत्माना अनंत धर्मोमां ज्ञान मुख्य छे तेथी ते ज्ञानने प्रधान करीने आत्माने ज्ञानमात्र कहेवामां
आवे छे. ज्ञान लक्षण प्रसिद्ध होवाथी ते वडे आत्माने ओळखावमां आवे छे. ज्ञानमात्र कहेतां आत्माना अनंत
धर्मो ज्ञान साथे ज आवी जाय छे.
३. प्र. –ज्ञान लक्षण वडे आत्मानी प्रसिद्धि करवानुं शुं प्रयोजन छे?
उ. –अज्ञानीने आत्माना स्वरूपनी ओळखाण नथी तेथी आत्माना अनंत धर्मोमांथी एक धर्मने भेद
पाडीने ओळखावे छे के–जे जाणे छे ते आत्मा छे. ज्यारे आम भेदथी समजाववामां आवे त्यारे ज अज्ञानी
जीवो आत्माने समजी शके छे; तेथी ज्ञान लक्षण वडे आत्मानुं लक्ष (प्रसिद्धि) करवामां आवे छे. ज्ञानने
आत्मानुं लक्षण कहेवाथी कांई ज्ञान अने आत्मा जुदा पडी जता नथी. ज्ञान ते ज आत्मा छे तेथी ज्ञाननुं लक्ष
करतां खरेखर आत्मा ज लक्षमां आवे छे.
४. प्र. –आत्मामां तो अनंत धर्मो छे तेमां बीजा कोई धर्मोने आत्मानुं लक्षण न कहेतां ज्ञानने ज केम कह्युं?
उ. –बीजा अनंत धर्मो छे परंतु तेओ ज्ञाननी जेम प्रसिद्ध नथी. अनंत धर्मोमां एक ज्ञान ज एवुं छे के
जे स्व–परने जाणे छे. पर द्रव्यो सौने प्रगट देखाय छे अने तेथी तेने जोनारुं ज्ञान प्रसिद्ध छे, बीजा धर्मो
स्वपरने जाणता नथी ते अपेक्षाए तेओ अप्रसिद्ध छे माटे ज्ञानने आत्मानुं लक्षण कह्युं छे. छतां अनंत धर्मो छे
ते ज्ञानथी जुदा नथी.
प. प्र.–आत्मा अने ज्ञान जुदा न होवा छतां तेमनी वच्चे लक्ष्य लक्षण भेद शा माटे पाडवामां आवे छे?
उ. –आत्मा अने ज्ञान खरेखर जुदां नथी, परंतु अज्ञानीने आत्मानुं लक्ष नथी अने तेमने लक्षणनी ज
प्रसिद्धि छे एटले के मात्र ‘आत्मा’ कहेवाथी ते समजी शकता नथी पण लक्षण द्वारा ज तेओ लक्ष्यने समजी शके
छे तेथी अज्ञानीओने आत्मानी ओळखाण कराववा माटे लक्ष्य–लक्षणना भेद वडे समजाववामां आवे छे. त्यां
ज्ञान प्रसिद्ध छे अने तेना वडे प्रासाध्यमान आत्मा छे एटले के ज्ञानद्वारा आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे.
६. प्र. –ज्ञान लक्षणवडे लक्ष्यनी ओळखाण कराववामां आवे छे तो शुं लक्ष्य एवो आत्मा भिन्न छे?
उ. –ज्ञान लक्षणथी लक्ष्य आत्मा भिन्न नथी. ज्ञान पोते ज आत्मा छे, ज्ञानने अने आत्माने द्रव्यपणे
अभेद छे. पहेलांं समजावतां भेद पाड्या हता परंतु ते लक्ष्य–लक्षणना भेदनुं लक्ष छोडीने जे अभेद आत्माने
लक्षमां ले छे तेने ज आत्मानी प्रसिद्धि (आत्मानी ओळखाण–सम्यग्दर्शन) थाय छे; परंतु जो भेद उपर ज
लक्ष करीने अटकी जाय तो आत्मानी प्रसिद्धि थती नथी. आथी सिद्ध थाय छे के भेदना लक्षमां अटकवाथी
आत्मानी प्राप्ति थती नथी माटे भेदरूप व्यवहार छोडवा योग्य छे.
७. प्र. –ज्ञप्तिक्रिया एटले शुं?
उ. –आत्माना ज्ञाननी निर्मळ क्रिया ते ज्ञप्तिक्रिया छे. आ क्रिया मोक्षनुं कारण छे.
८. प्र. –अज्ञानीओ ज्ञप्तिक्रियाने बदले व्रत–तपादिनी क्रियाने मोक्षमार्ग शा माटे माने छे?
उ. –अज्ञानीने ज्ञानस्वरूप आत्मानी खबर नथी एटले आत्मानी अंतरंग ज्ञानरूप ज्ञप्ति क्रियाने ते
ओळखतो नथी तेथी तेनी द्रष्टि शरीरनी क्रिया उपर अने शुभराग उपर ज होय छे अने ते व्रत–तपादिनी शुभ
क्रियामां तेमज शरीरनी क्रियामां मोक्षमार्ग माने छे. अज्ञानीनी ते क्रियाने करोति क्रिया कहेवाय छे, ते संसारनुं
कारण छे.
जेओने आत्मस्वरूपनुं भान होय तेओने ज ज्ञप्ति क्रिया होय छे; तेओ करोति क्रियाने पोतानुं स्वरूप
मानता नथी. अज्ञानीने भेदज्ञाननो अभाव होवाथी तेने ज्ञान क्रिया अघरी लागे छे. अने व्रत–तपादिना
शुभ–रागनी क्रिया सहेली लागे छे तेथी ते शुभरागने मोक्षमार्ग माने छे.