: २१६ : आत्मधर्म आसो : २४७२
आवी हती. ज्ञान–पूजा वखते ज्यारे भाईओ
‘जयसमयसार’ अने ‘जय गुरुदेव’ नी भक्तिनी
धूननो रास लेता हता ते वखतनुं द्रश्य जोनारने,
मुमुक्षुओनी सत्शास्त्र अने सद्गुरुदेव प्रत्येनी अपार
भक्तिनो ख्याल आव्या वगर रहेतो नहि.
आलोचना
बपोरे २।। थी ३।। ना व्याख्यानमां श्री
पद्मनंदी आचार्य कृत आलोचना अधिकार–जेनुं
गुजराती भाषांतर थई गयुं छे ते वांची समजाववामां
आव्यो हतो.
आजीवन ब्रह्मचर्य
आलोचना पछी तुरत ज, अहींना श्री
सनातन जैन ब्रह्मचर्य आश्रममां अभ्यास करता
विद्यार्थी भाई श्री चंदुलालभाईए पू. गुरुदेवश्री पासे
आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं हतुं. तेओश्री
‘कुमार–ब्रह्मचारी’ छे. आ ब्रह्मचर्य संबंधी विशेष
समाचार आ अंकमां अन्यत्र आप्या छे.
प्रतिक्रमण
५।। थी ८ प्रतिक्रमण करवामां आव्युं हतुं.
प्रतिक्रमण घणा उत्साहथी अने शांतिथी थयुं हतुं.
प्रतिक्रमण वखते दरेकना हाथमां ‘प्रतिक्रमण’ नुं पुस्तक
होय छे अने तेनी भाषा गुजराती होवाथी
प्रतिक्रमणमां बोलवामां आवता पाठोनो भाव
मुमुक्षुओ सहेलाईथी समजी शके छे.
शास्त्रजीनी रथयात्रा
भादरवा सुद ६ ना रोज सवारमां ८ थी ९ श्री
समयसारादि सत्शास्त्रोनी रथयात्रा काढवामां आवी
हती. रथयात्रा फरीने आव्या पछी सकलसंघे
श्रीसद्गुरुदेवनी स्तुति करी हती.
पवित्र पर्युषणपर्वनो उत्तम दिवस
भादरवा सुद १४ एटले के अनंत चतुर्दशी–
पर्युषणपर्वनो अर्थात् दशलाक्षणिक धर्मनो अंतिम
दिवस छे, ते दिवस ‘उत्तम ब्रह्मचर्य दिन’ कहेवाय छे.
आ मंगळिक दिवस घणी धामधूमपूर्वक उजववामां
आव्यो हतो.
प्रभातमां–श्री सत्धर्मनो जयनाद गर्जावती
नोबत जिनमंदिरमां वागी हती. ६ थी ६। श्री देव–
गुरु शास्त्र वंदन तथा स्तुति. ६। थी ७।। श्री
जिनमंदिरमां समूह पूजन अने भक्ति. ८ थी ९
व्याख्यान; त्यार बाद पू. गुरुदेवश्री पासे भाईश्री
जमादास रवाणीए आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं
हतुं. त्यारबाद ९।। सुधी देव गुरु धर्मना जयनादनी
धून लेवामां आवी हती.
९।। थी १० श्री समयसारजी शास्त्रनी
रथयात्रा गाजते वाजते नीकळी हती. आ वखते
रथयात्राने वधाववा माटे आकाशमांथी मेघराजा पण
पधार्यां हता.... ३ थी ४ व्याख्यान; ४ थी ५
जिनमंदिरमां भक्ति. भक्ति वखते अनंत चतुर्दशीना
मंगळ दिवस संबंधी भक्ति अने देव गुरु शास्त्र
धर्मनी ‘जय बोलो’ नी धून घणा उत्साहथी थई
हती. सांजे ६।। थी ७ आरती थई ७ थी ८ प्रतिक्रमण
अने ८ थी ९ चर्चा हती. आ रीते पर्युषणपर्वनो
अंतिम दिवस शानदार रीते उजवायो हतो.
आ वखतना आठे दिवसना व्याख्यानोमां
कुदेव–कुगुरु अने कुशास्त्रनी मान्यतारूप गृहीत महा
मिथ्यात्व छोडाववा माटे जे जोरदार एकधारी रमझट
बोली हती ते वाणी सांभळनारना हृदयमां हजी
गूंजती हशे. अने श्री ऋषभदेव प्रभुनी भक्तिनुं
ज्यारे वर्णन चालतुं त्यारे, जाणे के अमे पोते ज
अत्यारे प्रभु सन्मुख आ भक्ति करी रह्या छीए–एम
श्रोताओ लीन थई जता हता.
आ रीते सुवर्णपुरीना धर्मक्षेत्रमां धर्म–
महोत्सवो घणा ज उल्लासपूर्वक उजवाय छे. धर्मना
अपूर्व माहात्म्यनुं भान करावनार तो पू. गुरुदेवश्री
ज छे, तेओश्रीनी परम करुणावडे मुमुक्षुओने जे
पवित्र धर्म लाभ मळ्यो छे ते प्रगट छे.
परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री सुवर्णपुरीमां हमेशांं
धर्मनो उपदेश आपीने शासन पर अपार उपकार करी
रह्या छे. तेमनी वाणी सांभळनार जिज्ञासुओनां
जीवन पलटाई जाय छे. तेओश्रीनी वाणी भव्यात्माने
मोक्ष पामवा माटे उत्साह जागृत करे छे. तेमना
उपदेशनो मूळ पायो ए छे के ‘तमे आत्मानी साची
समजण करो. ’
अहो! मुमुक्षुओनां महा भाग्ये आ
पंचमकाळमां अजोड गुरुदेवश्री मळी गयां छे.
भरतक्षेत्रमां धर्मकाळ वर्तावीने अमारा जेवा पामर
जीवोनो उद्धार करनार हे सद्गुरुदेव आप त्रिकाळ
जयवंत वर्तो......... आपना चरणारविंदमां अमारा
नमस्कार हो.........