Atmadharma magazine - Ank 036
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४७२ आत्मधर्म : २१७ :
।। “।।
श्री सद्गुरुदेवाय नमः
देहने अर्थे अनंत जीवन व्यतीत थयां. हवे.
आत्मार्थने खातर आ जीवन अर्पण छे.
उपर्युक्त भावना पूर्वक नागनेशना झोबालीआ खीमचंद छोटालालना सुपुत्र [छोटालाल
नारणदासभाईना पौत्र] भाईश्री चंदुलाल भाईए पू. सद्गुरुदेवश्री पासे भादरवा सुद ५ ना दिवसे
आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे. तेमनी उमर मात्र २२ वर्षनी छे, तेओ कुमार–ब्रह्मचारी छे. ‘श्री सनातन
जैन ब्रह्मचर्याश्रम’ मां रहीने तेओ छेल्लां चारेक वर्ष थयां तत्त्वनो सतत् अभ्यास पू. गुरुदेवना चरणे करी
रह्यां छे. पू. गुरुदेवश्रीनी तेमना पर कृपाद्रष्टि छे.
तेमना कुटुंबे तेमने ब्रह्मचर्य–जीवन गाळवानी रजा आपीने तेमना शुभकार्यने अनुमोदन आप्युं छे.
ज्यारे पू. गुरुदेवश्री सन्मुख तेओ उभा थया अने पू. गुरुदेवश्रीए कह्युं के ‘आ चंदुभाई आजे
जीवनभर ब्रह्मचर्य अंगीकार करे छे’ –त्यारे सभाए ताळीओना गडगडाट वडे तेमने धन्यवाद आप्या हतां. पू.
गुरुदेवश्रीए तेमना संबंधमां कह्युं हतुं के–
“आ चंदुभाई बालब्रह्मचारी तरीके आजे जावज्जीव ब्रह्मचर्य लेवा मागे छे, तेनुं मगज सारुं छे,
ब्रह्मचर्यनी प्रीति घणी छे, तत्त्वनुं श्रवण–मनन अने अभ्यास करे छे, चार वर्षथी ब्रह्मचर्याश्रममां रही
अभ्यास करे छे अने आजे जीवनभर ब्रह्मचर्यनो नियम ले छे. कूळ–कुटुंबनी सगवडता छे, खानदान–
साधनसंपन्न माणस छे छतां ब्रह्मचर्यजीवन गाळवा मागे छे ते महामंगळिक प्रसंग छे. आवा ब्रह्मचर्यनो आ
पहेलो प्रसंग छे अने ‘श्री कुंदकुंदप्रवचनमंडप’ मां ब्रह्मचर्यनो पहेलो प्रसंग छे. घणो सारो प्रसंग छे–महा काम
कर्युं छे. मुख उपर वैराग्यनी छाया छवाई गई छे. आवी नानी उमरे आ कार्य करीने उदाहरण बताव्युं छे तेनुं
बधाए अनुकरण करवा जेवुं छे.
समुद्रनां पाणीथी पण जेनी तृषा न छीपी तेनी तृषा एक टीपुं पाणीथी तूटवानी नथी; तेम आ जीवे
स्वर्गादि भोग अनंतवार भोगव्या छतां तृप्ति थई नहि, तो सडेला ढींगला समान आ मानव देहना भोगथी
तेने कदापि तुप्ति थवानी नथी. माटे भोग खातर जिंदगी गाळवा करतां मनुष्यजीवनमां ब्रह्मचर्य पाळवुं अने
तत्त्वनो अभ्यास करवो ते ज मानवजीवननुं उत्कृष्ट कर्तव्य छे.
घणा भूख्या गीध पक्षीने रोटलानो कटको मळ्‌यो, पण मांसना कटकानी लालचे ते पण खोयो. तेम आ
संसारमां अनंत जन्म–मरणना प्रवाहमां तणातां जीवने अल्प मानवजीवननो कटको मळ्‌यो, ते जीवनने
विषयभोगनी लालसामां वेडफी नाखवा करतां वैराग्य लावी ब्रह्मचर्य पाळवुं अने तत्त्वनो अभ्यास करवो ते
जीवननुं महा कर्तव्य छे.” आटलुं कह्या पछी पू. गुरुदेवश्रीए मंगळिक वगेरे संभळावीने ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा
आपी हती.
तेमणे ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लीधी ते बदल श्री जैन अतिथि सेवा समिति तरफथी धन्यवाद साथे रूा. १०१–
पाघडीना (खास प्रसंग तरीके) आपवामां आव्या हता अने तेमना कुटुंबीओए आ प्रसंगनी खुशालीमां रू।।
१६००–उपरांत शुभखातामां वापर्या हता. आ रीते भाईश्री चंदुलाल भाईए ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं ते घणी
प्रभावनानुं कारण थयुं छे अने तेमणे पोताना जीवनने सफळ कर्युं छे–ते बदल तेमने अभिनंदन घटे छे.
आजीवन ब्रह्मचर्य
भादरवा सुद–१४ (अनंत चतुर्दशी) ता. १०–९–४६ ना रोज आ पत्रना प्रकाशक मोटा आंकडियाना
रहीश भाई श्री जमनादास माणेकचंद रवाणीए [उ. व. ३३] पू. सद्गुरुदेव समीपे आजीवन ब्रह्मचर्य
अंगीकार कर्युं छे, तेओ उत्साही कार्यकर छे. तेमनुं आ कार्य अभिनंदनने पात्र छे.