ॐ।। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।।
आत्मधर्म
वर्ष चोथुंकारतक
अंक पहेलो
संपादक
रामजी माणेकचंद दोशी
वकीलर४७३
.... स्वभावनी भावना ....
हे आत्मन्! हे धर्ममूर्ति! जेमां अमर्यादित गुणो भर्या छे एवा तारा गाणां रंगथी
गावाने ऊभो थयो छुं; तारी प्रीत, तारी रुचि अने तारा भानमां हुं आत्मानुं गान करवा
नीकळ्यो तेमां भंग पडशो नहि, तेमां विघ्न हशो नहि.
है चैतन्यदेव! तारा गुणनी प्रीतिमां जागृत थयो हवे चैतन्यभाव सिवाय अन्य
कोई भावनो आदर नहि थवा दउं–ए जवाबदारी लईने कहुं छुं के हे जिन! तारी प्रीतिमां
अने मारा आत्मस्वभावमां भंग न पडशो. जे आत्मप्रित जागी तेमां सादि अनंतकाळमां
भंग न पडशो.
हे आनंदघन! तुं तीर्थंकरोना कुळनो छो. तारा कुळनो वट छे के जे भावे उपडया ते
भावथी पाछा न फरे. सम्यग्दर्शन प्रगटयुं ते अप्रतिहतपणे केवळज्ञान लीधे ज
छूटको.......आवी ज तारा कुळनी रीत छे.
जेमना पवित्र आत्मामां शुद्ध सम्यग्दर्शनरूपी वेणलां वायां छे तेओ भावना करे छे
के अहो! धन्य ते काळ अने धन्य ते भाव! मारा आत्मामां केवळज्ञान प्रगट थवानां
परोढिया थई गयां छे..... मारा आत्माने नमस्कार हो.... आवी भावना वडे गृहस्थाश्रममां
रहेला सम्यग्द्रष्टि जीवो तथा संतमुनिओ पोताना आत्मस्वभाव प्रत्ये ढळी जाय छे अने
अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगट करे छे.
आ रीते सुमंगळप्रभाते आचार्यदेव अने ज्ञानीओ स्वभावना
स्वचतुष्टयनी भावना भावे छे.
कारतक सुद ७
जैन शासनने खातर जीवन अर्पण करनार पंडित
प्रवर श्री टोडरमलजीनो देहांत का. गु. ७ ना रोज
थयो हतो.... तेओ महा धर्मात्मा हता... दुष्ट जीवोना
कावतरानो भोग बनीने मात्र
र८ वर्ष जेटली अल्प वयमां ज तेमनो देहांत थयो
हतो. तेओए मोक्षमार्ग प्रकाशक वगेरे शास्त्रनी
रचना करीने जैनशासन पर महान उपकार कर्यो छे.
जेनो का. सु. ७ मे श्रद्धांजलि अर्पे.
वार्षिक लवाजम३७छुटक अंक
अढी रूपियाशाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक पत्रचार आना
* आत्मधर्म कार्यालय–मोटा आंकडिया काठियावाड *