जेने देव–गुरु–धर्म प्रत्येनुं वलण तथा भक्ति नथी अने जे मात्र संसार–पापमां ज लीन वर्ते छे ते तो तीव्र
परंतु ते दयादि शुभभावथी धर्म मानवो तेमां तो मिथ्यात्वनुं अनंतदुःख छे. जे आत्मार्थी जीव होय तेने लक्ष्मी
वगेरेनी रुचि छूटी जाय, संसार तरफनो उल्लासभाव छूटीने सत्स्वभाव प्रत्ये उल्लासभाव आवे; स्वभावनुं
बहुमान आवतां सत्नी प्रभावनानो भाव आवे के अहो, आवा सत् स्वभावनी जगतमां जाहेरात थाय, सत्नी
प्रभावना खातर मारुं सर्वस्व अर्पी दउं! सत्नी प्रभावना खातर मारां तन–मन–धन काम आवे तेमां हुं मने धन्य
समजुं छुं. आम स्वभाव प्रत्येनो साचो उल्लास आवे त्यारे तो ते आत्मार्थी कहेवाय अर्थात् तेने हजी तो धर्म
पामवानी पात्रता प्रगटी छे. पछी स्वभावनी ज रुचि अने बहुमान लावीने तेनो अभ्यास करे, तेनुं ज श्रवण–
करे एम बने नहि; जिज्ञासु जीवने विषय–कषायादिनी तीव्र लीनता टळीने देव–गुरु–धर्म प्रत्ये रागनी दिशा वळे.
भगवाननो साचो भक्त केवो होय? के जेम भगवान परिपूर्णदशाने पाम्या छे तेम हुं पण मारी शक्तिथी
ओळखनारो होय छे, पण ते भगवान पासेथी आशा राखतो नथी. हे नाथ! हे वीतरागी परमात्मा! आपे रागादि
टाळीने सत् स्वरूप प्रगट कर्युं छे, तमे तमारा स्वभावमांथी भगवान थया छो, मारा पूरा स्वभावनी प्रतीत वडे
हवे हुं भगवान थवानो छुं. प्रभो, आप विकार अने भावरहित छो तेम हुं पण एवा ज स्वरूपे छुं. अविनाशी
स्वभावमां स्थिर रहीने आपे नाशवानभावोनो नाश करीने पूर्ण पद प्रगट कर्युं तेम हे नाथ! हुं पण स्वभावना
भानपूर्वक आ नाशवान भावोनो नाश करीने अविनाशीपद प्रगट करवानो ज कामी छुं. जेवी पूर्णता आपे प्रगट
करी छे तेवी ज पूर्णता माटे मारो आत्मा लायक छे, पण हजी तेवी पूर्णता प्रगटी नथी तेथी पूर्णता प्रत्येनी रुचि वडे
शुद्धस्वरूपनी भावना वाळो भगवाननो भक्त कहे छे के–हे जिनेश्वरदेव! आप सर्व प्रकारे शुद्ध छो, अचिंत्य
शुद्धात्मानुं चिंतवन थई शके तेम नथी, पण शुद्धात्मस्वरूप मन–वाणी–देह अने विकल्पथी पार छे–एवुं स्वरूप आपे
प्रगट कर्युं छे. हे नाथ! अत्यारे मारुं ज्ञान अपूर्ण छे–अल्प छे, ते अल्पज्ञानवडे केवळज्ञानादि संपूर्ण जणातां नथी.–
एम जाणीने भक्तो केवळज्ञाननी भावना करे छे. आत्मानो स्वभाव कल्पनामां आवी शके नहि, कल्पना तो राग
छे, रागवडे अरागी स्वभाव प्रतीतमां आवे नहि. आ रीते स्वभाव अने रागवच्चे भेद पाडीने स्वभावनुं
माहात्म्य भक्तो करे छे. आत्माने अचिंत्य कह्यो एटले मन–वाणी–देहथी के विकल्पथी तेनुं चिंतवन थई शकतुं नथी
पण ज्ञानवडे चैतन्यनुं चिंतवन थई शके छे. जे आवा अचिंत्यस्वभावने जाणे ते ज भगवाननी अचिंत्य भक्ति