Atmadharma magazine - Ank 037
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 21

background image
कारतकः २४७३ १९
भावनावडे उछळी पडया. पोतानी पूर्ण पवित्र दशा थशे–एना जेवुं उत्तम मंगळ बीजुं शुं होय? ते वखते आत्मानुं
भान हतुं अने पूर्णदशाना हरखमां ते वखते राज्यमां पंचकल्याण महोत्सव धामधूमथी कराव्यो. आम ज्ञानीओने
पोतानी पूर्णदशा सांभळतां होंश आवे छे, अने भविष्यनी पूर्णताने भावथी नजीक लावीने तेनुं बहुमान करे छे, ए
रीते पूर्णता प्रत्येना पोताना पुरुषार्थने लंबावे छे.
(४०) संसार–चक्र
सर्व पापोमां सौथी मोटुं पाप मिथ्यात्वनुं छे. अनंत संसारमां रखडतां, मिथ्याद्रष्टि जीव अनंतवार
द्रव्यलिंगी पंचमहाव्रतधारी मुनि थयो अने त्यांथी रखडतां रखडतां ते ज जीव एक सेकंडमां करोडो गायोने कापी
नाखे एवा कसाईखानानो मालिक थयो. तत्त्वनी यथार्थ वात जो नहि समजे तो संसार चक्रमां फरी अनंतवार एवुं
करशे. नवतत्त्वोने जाणे नहि अने नव तत्त्वोथी पार आत्माने माने नहि तथा पुण्यमां धर्म मानीने तेनां अभिमान
करे एवो जीव दयादि पाळीने स्वर्गमां जाय तोपण त्यांथी नीकळीने संसार चक्रमां रखडतां अनंतवार कसाई थशे
अने नरक–निगोदमां अनंतकाळ काढशे. नवमी ग्रैवेयके जाय एवा शुभभाव अने सातमी नरके जाय एवा
अशुभभाव ए बन्ने आस्रव होवाथी एक ज जात छे. निगोदना जीवने पण अल्प शुभ भाव तो होय छे तेना
शुभभाव अने द्रव्यलिंगी मुनिना शुभभाव ए बन्नेनी एक ज जात छे. मिथ्याद्रष्टि जीव पुण्य आस्रवने सारो अने
पापास्रवने खराब माने छे–ते ज मिथ्यात्व छे. पुण्य अने पाप बन्ने आस्रव होवाथी दुःखदायक–बूरां छे. आत्माना
भानवगर शुभ अने अशुभभाववडे ज संसार चक्र चाली रह्युं छे.
(४१) कुंदकुंद भगवाननो श्रीमंडप
आजे (–भादरवा सुद–१) ‘श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडप’ मां प्रवेशनुं मंगळमुहूर्त छे. आजना मंगळमुहूर्ते
समयप्राभृतमां आ तेरमी गाथा आवी छे तेमां सम्यग्दर्शननुं स्वरूप समजाव्युं छे. आ यथार्थ समजीने आत्माना
जन्ममरणनो अंत आवी जाय तेवुं कार्य करवुं ए ज मंगळ छे. पात्र थईने भगवानना श्रीमंडपे आव्यो अने
आत्मस्वरूप समज्यां वगर पाछो जाय एम बने ज नहि. भवरहित भगवानने ओळखीने जिज्ञासाथी भगवानना
श्रीमंडपे आव्यो अने तेनो मोक्ष न थाय एम ज्ञानीओ मानता नथी. तेम आ पण कुंदकुंद भगवाननो श्रीमंडप छे,
अने तेमां कुंदकुंद भगवाने कहेली आ तेरमी गाथा वंचाय छे, तेमां कहेलुं आत्मानुं स्वरूप जे समजे ते जीव अवश्य
सम्यग्दर्शन पामीने एकावतारी जेवुं महाकार्य करी जाय. समजण पूर्वक निर्णय करवो जोईए, समजीने हा पाडे तेनी
वात बराबर छे, पण समज्या वगर, नाना बाळकनी जेम हा ए हा पाडे तेम न चाले.
(४२) सम्यग्दर्शन केम थाय?
‘श्री प्रवचनमंडप’ मां जे गाथा वंचाणी ते गाथा नीचे प्रमाणे छे–
भूयत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च
आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं।। १३।।
भूतार्थथी जाणेल जीव, अजीव वळी पुण्य, पापने,
आस्त्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष ते सम्यकत्व छे. १३.
अर्थः– भूतार्थनयथी जाणेल जीव, अजीव वळी पुण्य, पाप तथा आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, अने मोक्ष
नवतत्त्व सम्यक्त्व छे.
आमां नवतत्त्वोने भूतार्थथी जाणवा ते सम्यग्दर्शन कह्युं छे, एटले पहेलां नवे तत्त्वोने यथार्थ जेम छे तेम
जाणवां जोईए, परंतु नव तत्त्वोने जाणवामात्रथी ज सम्यग्दर्शन थतुं नथी. नवतत्त्वोने ओळख्या पछी, ते नवना
विकल्पो छोडीने एक शुद्ध आत्माने ज प्रतीतमां लेवो ते भूतार्थनय छे अने तेथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
नवतत्त्वोने जेम छे तेम जाणवा ते व्यवहार छे. पण जे शरीरने आत्मा माने, पुण्यने धर्म माने, संवर–
निर्जराने कष्टदायक माने तेने तो एकेय तत्त्वनी खबर नथी. अहीं तेनी वात नथी. अहीं तो कहे छे के नवतत्त्वनी
बराबर प्रतीत ते पण खरूं सम्यग्दर्शन नथी, केमके आत्मा एक अखंड छे तेने नव भेद वडे मानवो ते मिथ्यात्व छे.
अने नवतत्त्वना विकल्पोथी पार एक अखंडस्वभावे आत्माने प्रतीतमां लेवो ते ज निश्चयथी सम्यग्दर्शन छे. जे
नवतत्त्वो जणाय छे ते नवे तत्त्वोने जाणनार पोते तो नव भेदथी रहित एकला चैतन्यस्वरूपे छे–एम जो रागथी
जरा छूटो पडीने रागरहित चैतन्यनी प्रतीत करे तो सम्यग्दर्शन छे.
ज्ञाननो स्वभाव जाणवानो छे तेने बदले नवतत्त्वना विकल्प करीने रागमां अटके तो मिथ्यात्व छे. रागनो
स्वभाव जाणवानो नथी. जीव–अजीव वगेरेने जाणनारूं ज्ञान छे, ते ज्ञान नव भेदने जाणवामां ज अटके पण
भूतार्थ स्वभावमां न ढळे तो सम्यग्दर्शन थाय नहि.
मुद्रकः चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड
प्रकाशकः जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया. ता. २३–१०–४६