।। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।।
वर्ष चोथुंमागशर
अंक बीजो
संपादक
रामजी माणेकचंद दोशी
वकीलर४७३
ज्ञानी स्थापे छे अज्ञानी उथापे छे
कोण क्रियाने स्थापे छे?
१. शरीरनी क्रिया ते पुद्गल परमाणुओनी अवस्था छे अने परमाणुओ स्वतंत्रपणे परिणमे
छे अर्थात् शरीरनी ते अवस्थारूप थाय छे. आत्मा तेनो खरेखर कर्ता नथी, एम ज्ञानीओ ज
शरीरनी क्रियाने जेम छे तेम स्थापे छे.
२. पुण्य क्रिया ते जीवनो विकार भाव छे, ते क्रियाथी आत्मानो अविकारी धर्म प्रगटे नहि तेम
ज ते क्रिया धर्ममां मदद करे नहि–एम ज्ञानीओ ज पुण्य क्रियाने पुण्यनी क्रिया तरीके स्थापे छे.
३. आत्मानी अविकारी क्रिया ते धर्म छे, ते क्रिया आत्माना ज अवलंबने प्रगटे छे, तेमां कोई
बीजानुं अवलंबन नथी तेम ज पुण्यनी क्रियाथी ते अविकारी क्रिया प्रगटती नथी–एम ज्ञानीओ ज
अविकारी क्रियाने बराबर स्थापे छे.
कोण क्रियाने उपाथे छे?
१. शरीरनी क्रिया आत्माथी थाय छे, पण एनी मेळे स्वतंत्र थती नथी–एम मानीने
अज्ञानीओ ज शरीरनी स्वतंत्र क्रियाने उथापे छे, केमके तेओ पुद्गल परमाणुओनी स्वतंत्र क्रियाने
स्थापता नथी.
२. पुण्य–क्रिया अर्थात् शुभरागरूप विकारी क्रियाथी धर्म थाय अथवा तो ते करतां करतां धर्म
थाय. एम मानीने अज्ञानीओ ज पुण्यनी क्रियाने उथापे छे; केम के पुण्य ते विकारी क्रिया छे, छतां
तेओ विकारी क्रियाने विकारी क्रिया तरीके स्थापता नथी.
३. आत्मानी अविकारी क्रिया पुण्य करतां करतां थाय अथवा तो कांईक परावलंबन जोईए–
एम मानीने अज्ञानीओ ज अविकारी क्रियाने उथापे छे; केमके पुण्यनी अपेक्षा रहित निरावलंबी
अविकारी क्रिया छे तेने तेओ स्थापता नथी.
वार्षिक लवाजम३८छुटक अंक
अढी रूपियाशाश्चत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक पत्रचार आना
* आत्मधर्म कार्यालय–मोटा आंकडिया काठियावाड *