Atmadharma magazine - Ank 038
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः ३८
वर्ष चोथुंसळंग अंकमागशरआत्मधर्म
अंक बीजो३८र४७३
... एवा कुंद प्रभु अम मंदिरीये...
एवा कुंद प्रभु अम मंदिरीये...श्री सीमंधर देवना दर्शन करी
एवा आतम आवो अम मंदिरीये...सत्य संदेशा लावनार चिंतामणी
जेणे तपोवन तीर्थमां ज्ञान लाध्युंप्रभु श्रुतधारी कळिकाळ केवळी...एवा कुंदप्रभु०
जेणे वन जंगलमां शास्त्र रच्युंहे गुण निधि गुणागारी प्रभु
ॐ कार ध्वनिनुं सत्त्व साध्युं...एवा कुंदप्रभु०तारी आदर्शता न्यारी न्यारी प्रभु
जेणे आत्मवैभवथी तत्त्व सींच्या,हुं पामर ए शुं कथी शकुं...एवा कुंदप्रभु०
वळी संयम गूच्छमां गूंजी रह्याप्रभु कुंदकुंद देव सुवास तारी
जेणे जीवनमां जिनवर चिंतव्या...एवा कुंदप्रभु०प्रसरावी मुमुक्षु हृदयमांही
महा मंगळ प्रतिष्ठा महा ग्रंथनीकानदेवे मीठां मेह वरसावी...एवा कुंदप्रभु०
वळी अगम निगमना भावो भरीजिनेन्द्र स्तवनावली पा. २९.
दीसे ‘सार–समय’ नी रचना रूडी...एवा कुंदप्रभु०जिनेन्द्र स्तवनमंजरी पा. ३६९.
वीर निर्वाण कल्याणक दिन
जगतना सर्व जीवोने शांतरस– सबरसनी प्राप्ति हो!
प्रातः स्मरणीय पूज्य सद्गुरुदेवश्रीना प्रातःकालीन वचनामृतना आधारे.
वेणलां वायां एम बेनो गाय छे. वेणलां तो दररोज वाय ज छे, एवो ने एवो प्रकाश दररोज होय छे. ते
प्रभातमां कांई विशिष्टता नथी. विशिष्ट सुप्रभात तो केवळज्ञान छे, के जे ऊग्युं ते ऊग्युं ज, कदी पण अस्त थवानुं
नहि ज, पण सादि अनंतकाळ सुधी टकी रहेवानुं. स्वभावमां विकार नथी–भव नथी. माटे स्वभावनी ओळखाण
करनारने विकार न होय, भव न होय. पुरुषार्थ द्वारा स्वभावनी वृद्धि थतां थतां अल्पकाळमां केवळज्ञाननी प्राप्ति
थई जाय ए ज मंगलमय सुप्रभात छे. लोको सालमुबारक करे छे पण केवळज्ञान ज मुबारक छे–अन्य कशुं मुबारक
छे ज नहि; माटे तेनुं ज ध्यान धर, तेनुं ज गान कर अने तेनुं ज बहुमान कर.
जेम मीठानी पूतळी पाणीमां नाखता वेंत ज समाई (ओगळी) जाय छे तेम आखो लोकालोक
केवळज्ञानमां समाई जाय छे अर्थात् केवळज्ञाननी एक समयनी पर्यायमां सर्व पदार्थो जणाई जाय छे–बधा ज्ञेयो
समये समये तेमां समाता जाय छे.
स्फटिक जेम अंदर–बहार तेना आखा दळमां पूर्ण स्वच्छ छे तेम भगवान आत्मा असंख्य प्रदेशे पूर्ण
पवित्र छे. शरीरना जे भागोमां अशुचि छे ते स्थाने रहेला आत्मप्रदेशो पण अशुचिमय होता नथी परंतु पवित्र ज
होय छे. पगना भागमां रहेला आत्मप्रदेशो ओछा पवित्र ने मस्तक के जे उत्तमांग कहेवाय त्यां रहेला आत्मप्रदेशो
विशेष पवित्र–एवुं नथी. ते तो सर्वांगे पूर्ण पवित्र ज छे.
स्वच्छ मनुष्य जेम अशुचिवाळा स्थानमां जरा वार पण रहेवा इच्छतो नथी पण जलदीथी बहार नीकळी
जवा इच्छे छे तेम आस्रवो–पुण्य पापना विकारी भावो के जे अशुचिमय छे तेने आत्मशुद्धिनो इच्छक पुरुष जरावार
पण राखवा इच्छतो नथी पण तेने जलदीथी छोडी दईने पूर्ण पवित्र बनवा इच्छे छे.
आजे शुक्रवार छे माटे आत्माना शुक्र (वीर्य) मां वास करवो ने वीर्यनी वृद्धि करीने केवळज्ञाननी प्राप्ति
करी लेवी.
आत्मानो शांतरस ए ज सबरस छे–एवा सबरसनी जगतना सर्व जीवोने प्राप्ति हो!