Atmadharma magazine - Ank 038
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४७३ः २३ः
क्रिया
(‘पंडितप्रवर वीर टोडरमल्लजी स्मृति दिन’ ना व्याख्यानमांथी)
क्रियानी सामान्य व्याख्या
पर्यायनुं बदलवुं ते क्रिया छे; दरेक द्रव्यनी पर्याय समये समये बदलाया ज करे छे. दरेक द्रव्यनी पर्याय ते ज
तेनी क्रिया छे. दरेक द्रव्यनी पर्याय पोतामां ज थाय छे परंतु एक द्रव्यनी पर्याय बीजा द्रव्यमां थती नथी, तेथी एक
द्रव्यनी क्रिया बीजा द्रव्यमां होय नहि तेम ज एक द्रव्यनी क्रिया बीजुं द्रव्य करे नहि.
क्रियाना प्रकार
आ जगतमां जड अने चेतन एम बे प्रकारना द्रव्यो छे. द्रव्यनी पर्याय ते ज क्रिया होवाथी क्रिया पण जड
अने चेतन एम बे प्रकारनी छे. जड द्रव्यनी अवस्था ते जडनी क्रिया छे अने चेतन द्रव्यनी (–जीवनी) अवस्था ते
चेतननी क्रिया अर्थात् जीवनी क्रिया छे.
जीवनी क्रिया बे प्रकार छे–(१) रागादि भावरूप विकारी क्रिया अने (२) रागादि भावरहित सम्यग्दर्शन
ज्ञान–चारित्ररूप अविकारी क्रिया. विकारी क्रिया ते बंधनुं कारण छे, तेथी तेने ‘बंधनी क्रिया’ पण कहेवाय छे अने
अविकारी क्रिया ते मोक्षनुं कारण छे, तेने ‘मोक्षनी क्रिया’ कहेवाय छे.
आ रीते कुल त्रण प्रकारनी क्रिया थई– १. जडनी क्रिया. २. जीवनी विकारी क्रिया अने ३. जीवनी अविकारी क्रिया.
जडनी क्रिया
शरीर जड छे, तेनी दरेक क्रिया ते जडनी क्रिया छे. शरीरनुं हलन–चलन के स्थिर रहेवुं ते जडनी क्रिया छे,
तेना कर्ता जड परमाणुओ छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी. जडनी क्रिया साथे बंध के मोक्षनो संबंध नथी. शरीरनी
हलनचलनरूप दशा के स्थिर रहेवारूप दशा तेमां बंधनी क्रिया के मोक्षनी क्रिया नथी एटले के शरीरनी कोईपण
क्रियाथी आत्माने बंध के मोक्ष, लाभ के अलाभ, सुख के दुःख थतां नथी, केमके शरीरनी क्रिया ते जडनी क्रिया छे.
पहेलां शरीरनी अवस्था घेर रहेवारूप होय अने हलन चलनादिरूप होय, पछी शरीरनी अवस्था बदलीने
धर्मस्थानके स्थिर रहेवारूप थाय–त्यां ते फेरफारथी अज्ञानी धर्म माने छे. परंतु जडनी क्रिया फरी तेनाथी आत्माने
धर्म नथी, पुण्य नथी तेम ज पाप पण नथी. शरीरनी माफक पैसा, वस्त्र के आहारादिना संयोग–वियोग ते पण
जडनी क्रिया छे, तेनाथी धर्म, पुण्य के पाप थतुं नथी. ते कोई क्रियानो कर्ता आत्मा नथी.
विकारी क्रिया
जीवनी पर्यायमां जे रागद्वेष–अज्ञानरूप भाव थाय ते जीवनी विकारी क्रिया छे, आ क्रियाने बंधनी क्रिया
कहेवामां आवे छे. शरीरादि जडनी क्रियाथी विकारी क्रिया थती नथी अने जीवनी विकारी क्रियाथी शरीरादि जडनी
क्रिया थती नथी. राग–द्वेष–अज्ञानरूप भावो आत्मानी पर्यायमां थाय छे तेथी आत्मानी ज पर्यायमां ते विकारी
क्रिया करवानी योग्यता छे. शरीरनी क्रियाथी पुण्य–पाप थता नथी. पुण्य–पापरूप विकारी क्रिया बंधननी क्रिया छे, ते
क्रियावडे संसार मळे, मोक्ष टळे, आत्माना गुणनी पर्याय बळे. आ क्रियाथी धर्म थतो नथी.
दरेक क्रियानी स्वतंत्रता
प्रश्नः– पहेलां जडनी क्रिया करे पछी धर्म थाय ने? जेम के पहेलां शरीरने घरेथी धर्मस्थानक सुधी लई आवे,
पछी धर्म सांभळे अने पछी साची समजणथी धर्म थाय. ए रीते जडनी क्रिया करवानुं आव्युं के नहि?
उत्तरः– जडनी क्रियावडे धर्म थतो नथी. जडनी क्रिया आत्मा करतो ज नथी तेथी जडनी क्रिया साथे आत्माने
संबंध नथी. उपरना द्रष्टांतमां शरीरनी क्रिया फरी ते कारणे धर्म थयो नथी. ‘तत्त्व समजवा जवुं छे’ एवो
शुभभाव थयो अने घरेथी धर्म स्थानके गया, त्यां नीचे मुजबनी क्रियाओ थई छे. (१) शुभभाव थयो ते पुण्य छे,
ते विकारी क्रिया छे. (२) शरीरनुं क्षेत्रांतर थयुं ते जडनी क्रिया छे. (३) आत्माना प्रदेशोनुं क्षेत्रांतर थयुं ते
आत्मानी विकारी क्रिया छे. (४) सत् श्रवण प्रत्येनुं लक्ष ते शुभभावरूप विकारी क्रिया छे. आ चार क्रियाओ थई
त्यां सुधी हजी धर्म थयो नथी. धर्म–श्रवणना लक्षथी पण खसीने स्व लक्ष तरफ ढळे अने पोताना शुद्ध
आत्मस्वभावनो महिमा लावीने निर्णय करे तो ते अविकारी क्रिया छे, ते ज धर्म छे. जडनी क्रिया, आत्म प्रदेशोनी
क्षेत्रांतररूप क्रिया अने शुभरागरूप विकारी क्रिया ए बधाथी आ धर्मनी क्रिया भिन्न छे.
आ ज रीते कोई जीवने पैसा कमावा वगेरेनी अशुभ भावना थई अने शरीरनी क्रिया पाप कार्योमां थई,
तो त्यां पण शरीरनी क्रिया ते जडनी स्वतंत्र क्रिया छे, तेनाथी जीवने लाभ के नुकशान नथी; अने अशुभभाव थया
ते जीवनी विकारी क्रिया छे तेनाथी जीवने नुकशान छे. अशुभभावने कारणे पण शरीरनी क्रिया थती नथी.
अशुभ परिणामथी पाप, शुभ परिणामथी पुण्य, ए बन्नेनो समावेश विकारी क्रियामां थाय छे अने ए
बन्ने वखते शरीरनी क्रिया ते स्वतंत्र जडनी क्रिया छे. मारा परिणामने कारणे जडनी क्रिया थई एम माने तो खोटुं
छे, अने पुण्य परिणामने कारणे धर्मनी क्रिया थई एम माने तो पण खोटुं छे.
शरीर धर्मस्थानके बे घडी स्थिर बेठुं ते जडनी क्रिया छे, ते वखते