ATMADHARMA With the permisson of the Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
order No. 30-24 date 31-10-44
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धन्य ते धर्मकाळ
(भरत चक्रवर्ती सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा छे, आ चोवीशीना पहेला तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवानना तेओ
)
हंमेशनी जेम सम्राट भरत महेलमां बेठा छे. पासे नमिराज, विनमिराज (भरतना पुत्रोना मामा) तथा
तेओना सेंकडो पुत्रो बेठा छे.
भरते पूछयुं–आ कुमारोए शुं शुं अध्ययन कर्युं छे? त्यारे जवाब मळ्यो के–तेओ शस्त्र–शास्त्रादि अनेक
विद्याओमां निपूण छे. विद्याधर–उचित् अनेक विद्याओ सिद्ध करी छे, अने तेओ सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रथी पण
संयुक्त छे. भरते ते कुमारोने त्यां बेसाडीने पोताना पुत्रोने पण बोलाव्या. भरतना सेंकडो पुत्रो पंक्तिबद्ध थईने
आववा मांडया. पहेलां मधुराज, विधुराज नामना बे कुमारोए पिताना चरणमां नमस्कार कर्या अने बाकीना
कुमारोए पण नमस्कार कर्या. कुमारोमां कोई पंदर वर्षना छे, अने कोई तेथी पण नानी उंमरना छे.
भरते पोताना पुत्रोने कह्युं–बेटा, तमे जरा तमारा शास्त्रानुभवने तो बतावो. त्यारे ते कुशळ कुमारोए
पोताना शास्त्रानुभवने दर्शाव्यो. क्यारेक व्याकरणथी शब्दसिद्धि करी, क्यारेक न्यायशास्त्रथी तत्त्वसिद्धि करी अने
क्यारेक एकधाराप्रवाही संस्कृत बोलता थका आगमना तत्त्वोनुं प्रतिपादन कर्युं.
भरतजी तेमना बोलवाथी प्रसन्न थया. परंतु विशेष तत्त्वचर्चा कराववा खातर ते छूपावीने फरीथी कह्युं–
कुमारो! लोकरंजननी जरूर नथी, मोक्षसिद्धिने माटे शुं साधन छे ते कहो. बीजी गडबड छोडीने ए बतावो के कर्मोनो
नाश कया प्रकारे थाय छे? तेना विना आ बधुं व्यर्थ छे.
भरतना पुत्रो नानी नानी उंमरना होवा छतां पण ज्ञानी हता, तत्त्वोना जाणनारा हता, तेओ पण ते भवे
मोक्ष जनारा हता. कुमारोए जवाब आप्यो–पिताजी! पहेली भूमिकामां भेदरत्नत्रय आवे छे, खरा, पण कर्मोनो
नाश तो अभेद रत्नत्रयने धारण करवाथी ज थाय छे. अभेद रत्नत्रय ज कर्मोना नाशनो उपाय छे ज्यारे अभेद
रत्नत्रयवडे कर्मनो नाश थाय छे त्यारे मोक्षनी सिद्धि स्वयं थाय छे.
फरीथी भरत महाराजाए पूछयुं के–ते भेदरत्नत्रयनुं तथा अभेदरत्नत्रयनुं स्वरूप शुं छे ते तो कहो. त्यारे
पुत्रोए कह्युं–जिनदेव–गुरुनी भक्ति, तथा अनेक आगम–शास्त्रोनुं मननपूर्वक अध्ययन करवुं ते भेदरत्नत्रय छे.
(भेदरत्नत्रयमां शुभराग छे अने ते बंधनुं कारण छे.) तथा केवळ पोताना आत्मामां लाग्या रहेवुं ते
निश्चयरत्नत्रय (अथवा अभेदरत्नत्रय) छे अर्थात् केवळ पोताना आत्मानी श्रद्धा, पोताना आत्मानुं ज्ञान अने
पोताना आत्मामां स्थिरता ते अभेदरत्नत्रय छे. (अभेदरत्नत्रय वीतरागरूप छे अने ते ज मोक्षनुं कारण छे.)
आ सांभळीने नमिराज कह्युं–कुमारोनुं कहेवुं बिलकुल ठीक छे.
चक्रवर्तीए नमिराजने पूछयुं–शुं ठीक छे? कहो तो खरा!
नमिराजे उत्तर आप्यो के, भेदरत्नत्रय ते मुक्तिनुं कारण नथी, पण शुद्ध आत्मानी श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक तेमां ज
लीनता करवी ते अभेदरत्नत्रय ज श्रेष्ठ मुक्तिमार्ग छे–एम कुमारो कहेवा मागे छे, ते यथार्थ छे.
भरतजीए प्रश्न कर्यो–शुं व्यवहारथी ज पर्याप्ति नथी? निश्चयनी शुं जरूरियात छे?
नमिराजे कह्युं–व्यवहारथी स्वर्गनी प्राप्ति थई शके छे, पण तेनाथी मोक्षनी प्राप्ति थई शकती नथी.
मोक्षसिद्धिने माटे निश्चयनी आवश्यकता छे.
नमिराजनी वात सांभळीने चक्रवर्ती प्रसन्न तो थया परंतु पोताना कुमारोनी द्रढता जोवा माटे, ते
छूपावीने
मुद्रकः चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड
प्रकाशकः जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया. ता. २२–१२–४६