Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७३ः ९१ः
चर्चा समजतां घणो प्रमोद थयो हतो अने घणा उल्लासथी अनेक वखत पू. गुरुदेव प्रत्ये तेओ बोल्या हता के
अमारुं तो बधुं भूलवाळुं हतुं, आपे ज सत्य समजाव्युं छे. अत्यार सुधी अमारी द्रष्टिए शास्त्रना अर्थो बेसाडता,
पण शास्त्रना वास्तविक अर्थ शुं छे–ते आपे ज शीखव्युं छे. अमारा श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र, व्रत, त्याग वगेरे बधुं
भूलवाळुं हतुं; तेमने त्रण दिवसना परिचयथी घणो संतोष अने आदरभाव थयो छे.
पू. गुरुदेवश्री पण कहेता हता के–अत्यार सुधीमां घणा पंडितो मळ्‌या छे, पण आवा सरळ कोई जोया नथी.
सत्य वातने स्वीकारता तेमने वार लागती नथी.
आ उपरांत रायबहादुर राजकुमारसिंहजी पण तत्त्वचर्चामां झीणवटथी भाग लेता हता, अने सूक्ष्म
न्यायोने बराबर बुद्धिग्राह्य करता हता. शेठश्रीना सुपुत्री चंदाबहेने पण तत्त्वस्वरूपनुं घणुं सुंदर ग्रहण कर्युं हतुं
अने सत् प्रत्येनो उल्लास आवतां तेमणे पू. गुरुदेवश्री प्रत्येनी भक्तिभावना दर्शावतुं एक घणा भाववाळुं काव्य
बनावीने फागण सुद ३ नी रात्रे गायुं हतुं. अने त्यारपछी ते रात्रे स्पेश्यल ट्रेईनद्वारा तेओ बधा वींछीया पधार्या
हता.
* * *
वींछीयामां श्री जिनमंदिर अने श्रीस्वाध्यायमंदिरनुं
खातमुहूर्त
सोनगढथी फागण सुद ३ नी रात्रे १० वागे स्पेश्यल ट्रेईन द्वारा रवाना थईने सर शेठ हुकमीचंदजी वगेरे
वींछीया पधार्या हता. अने त्यां तेमना तथा पोरबंदरना श्रीमान शेठ नेमिदास खुशालचंदना शुभ हस्ते श्री
जिनमंदिर तथा श्री जैन स्वाध्यायमंदिरनुं खात मुहूर्त थयुं हतुं.
वींछीयामां भव्य स्वागत थया बाद त्यां रचवामां आवेला मंडपमां श्रीमान रामजीभाईए भाषण करतां
श्री जिनमंदिर अने श्री जैन स्वाध्यायमंदिरनुं खास महत्व समजावीने एवी मतलबे कह्युं के–मारी द्रष्टिए, आ
वींछीया जेवा नाना गाममां श्रीमान सर हुकमचंदजी शेठ अने श्रीमान नेमिचंदभाई शेठ जेवा बे महान शेठीयाओनुं
सहकुटुंब पधारवुं अने तेमना शुभहस्ते श्रीजिनमंदिर अने स्वाध्यायमंदिरनुं खातमुहूर्त थयुं–ए तो घणा काळमां
नहि बनेलो एवो अद्वितीयप्रसंग छे. जैन धर्म सनातन वस्तुस्वभावरूप सत्यमार्ग छे. ते सत्यधर्मनो प्रकाश अने
विस्तार पू. सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामी करी रह्या छे. तेनो जे विस्तृत प्रचार थवा मांडयो छे ते वृद्धिगत थईने
समग्र हिन्दुस्तानमां फेलाशे एम केवळज्ञानी भगवानना दिव्यज्ञानमां भासेलुं छे–एमां शंकाने स्थान नथी.
त्यारबाद सर हुकमीचंदजी शेठ भाषण करतां एवी मतलबे बोल्या हता के आवा पवित्र धर्मप्रसंग माटे
भाग लेवा हुं दिन–रात तैयार छुं. तमो ज्यारे कहो त्यारे आववा तैयार छुं. हुं दरेक स्थाने मारी यत्किंचित् सेवा
आपीश. मारी तो भावना छे के आखा काठियावाडमां जिनमंदिर तथा स्वाध्याय मंदिर बनी जाय अने जैनधर्मना
डंका सारा हिन्दुस्तानमां वागी जाय. आप लोकोनो अति उत्साह अने उत्कट धर्मप्रेम जोईने मारा हृदयमां हर्ष
समातो नथी. जीवनभरमां में आवी धर्मभक्ति देखी नथी. महाराजजीए मोक्षमार्गनुं वास्तविक स्वरूप स्पष्टपणे
निरूपण करीने हजारो भव्यजनोने सत्धर्ममां आकर्षीत कर्या छे. अमे हंमेशां तेमनी तारीफ करीए छीए.
महाराजश्रीना परिचयथी अमारा कुटुंबने धर्मरुचिमां वृद्धि थई छे–ए वातनो भारे हर्ष छे. आप लोको गामेगाम
जिनमंदिर अने स्वाध्याय मंदिर बनावो एवी भावना छे. ज्यारे मने याद करशो त्यारे अर्धी राते ऊठीने पण
आववा तैयार छुं. आवा धर्मकार्य तो महाभाग्यथी मळे छे. महाराजश्री बधा आत्माने भगवान कहे छे, पोतानी
साची प्रभुतानो ख्याल करावीने जे स्वतंत्र वस्तुस्वरूप छे ते ज प्रकाशित करे छे.
त्यारबाद श्रीमान पं. देवकीनंदनजीए उभा थई खूब हर्ष जाहेर कर्यो अने पू. महाराजश्री विशे बोलतां
एवी मतलबे जणाव्युं के आवा धर्मप्रभावक, महान तत्त्वज्ञ, तीर्थस्थापक, युगप्रधान, महर्षी पुरुष घणा वर्षोमां