Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ९६ः आत्मधर्मः ४१
श्रीकुंदकुंद भगवानने नमस्कार श्रीमंडपमां मांगळिक प्रवचन
फागण सुद १ ता. २१–२–४७ नुं पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान
आजे भगवानश्री कुंदकुंद प्रवचन मंडपना उद्घाटननो मांगळिक दिवस छे, मंगळ एटले के पवित्रताने
पमाडे ते; आ आत्मा पोते ज्ञान अने आनंद स्वरूप छे, ते त्रिकाळ मंगळस्वरूप छे. ए आत्मानी रुचि अने
अनुभवथी पर्यायमां आनंद अने पवित्रता पमाय छे, ते ज मांगळिक छे.
आत्मा सिवाय बहारना कोई साधनथी आनंद पमाय एम कहेवुं ते उपचार कथन छे; आत्मा तो मन,
वाणी, देहथी पार ज्ञान, दर्शन, आनंदनी मूर्ति छे. शरीरादि बाह्य पदार्थोनी क्रिया तो जड छे, तेनो कर्ता तो
अज्ञानभावे पण आत्मा कदी नथी. शरीर वगेरे सर्वे पदार्थो सत्तावाळा छे, आत्मानी सत्ता तेनाथी भिन्न छे.
परद्रव्योमां कांई घाल–मेल करवा आत्मा समर्थ नथी.
आत्मानी पर्यायमां जे दयादि तथा हिंसादिना शुभ–अशुभ भावो थाय ते विकार छे, अज्ञानी जीव पोताना
स्वभावने चूकीने ते क्षणिक विकारी भावोनो कर्ता थाय छे अने ते विकारी भावोने आत्मानुं कर्म (–कर्तव्य) माने
छे. पण आत्मानी पर्यायमां जे विकार थाय छे तेना आश्रये कदी पण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट थता नथी.
धर्म ए आत्मानो स्वभाव छे; जीव पोते पात्र थईने सत्समागमे ते स्वभाव समजे तो तेने धर्म प्रगटे,
पण अन्य कोई–तीर्थंकर पण समजाववा समर्थ नथी. दरेक पदार्थ सत् छे, आत्मा पण पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायथी
सत् छे. ‘हुं सत् छुं, मारुं ज्ञान, आनंद वगेरे मारामां सत् छे, परद्रव्यो तेनामां सत् छे, परद्रव्यमां मारो कांई
अधिकार नथी, मारी सत्ता परथी भिन्न छे, पर्यायमां जे पुण्य–पाप थाय ते विकार छे, ए पण एक समय पूरता
सत् छे अने मारो त्रिकाळी सत् स्वभाव तो पुण्य–पापथी रहित छे’ एम पोताना शुद्ध स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने
रमणता ते ज अपूर्व आत्मधर्म छे, अने ते पोते ज मंगळ छे.
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेवना अंतर हृदयमां अनंत सर्वज्ञ तीर्थंकरोनो आशय भरेलो छे. अनंत तीर्थंकरो
अने केवळी संतोए जे अनुभवीने कह्युं छे ते ज जातनी वात पोताना अंतर अनुभवमां उतारीने आचार्यदेवे करी
छे. तेओ मुनिदशामां वर्तता हता. मात्र शरीरनी नग्न दशा ते मुनिपणुं नथी, पण आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान
पूर्वक ते स्वभावमां लीनतारूप स्थिर पर्याय थतां त्रण कषायना अभावपूर्वक जे अंतर अनुभव दशा प्रगटी एवी
आत्मपर्याय ते ज मुनिदशा छे. क्षणे क्षणे अंतर आत्मअनुभवमां उतरी जाय छे अने विकल्परहित थई जाय छे
आवी भावलिंगी मुनिदशामां श्रीकुंदप्रभु झुलता हता.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, तेनामां पुरेपुरुं ज्ञानसामर्थ्य छे, तेनी श्रद्धा अने एकाग्रता पूर्वक ते पूरुं सामर्थ्य
जेमने पर्यायमां प्रगट थयुं होय तेमने सर्वज्ञ कहेवाय छे. वर्तमानमां महाविदेहक्षेत्रे श्री सीमंधर भगवान वगेरे
सर्वज्ञदेवो बिराजे छे. श्री सीमंधर परमात्मा पासे कुंदकुंदाचार्यदेव गया हता अने त्यां आठ दिवस रह्या हता. आमां
शंकाने कदी स्थान नथी, श्रीकुंदकुंद भगवानने अंतर अनुभव तो हतो ज, अने श्री सीमंधर भगवान पासेथी विशेष
समाधान मेळवीने भरतक्षेत्रे आव्या; त्यार पछी समयप्राभृत, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड
वगेरे महान शास्त्रोनी रचना शासनना महद्भाग्ये, कुंदकुंदप्रभुना विकल्पना निमित्तथी अने पुद्गल परावर्तनना
स्वतंत्र परिणमनथी थई गई. एमनी दशा केवळज्ञाननी अत्यंत निकट वर्ती रही हती. एवा श्रीकुंदकुंदभगवाननो
अनंत अनंत उपकार वर्ते छे. तेमना अपार उपकारोनी जगतने जाहेरात थाय ए माटे आ प्रवचन–मंडप साथे
श्रीकुंदकुंद– भगवाननुं पवित्र नाम जोडीने ‘भगवानश्री कुंदकुंद–प्रवचन मंडप’ एम नाम राख्युं छे. तेओश्रीए आ
भरतक्षेत्रमां अपूर्व श्रुतनी प्रतिष्ठा करी छे.
आत्मा ज्ञानानंदमूर्ति छे, ते त्रण काळ त्रण लोकमां देहादि जड पदार्थोनो कर्ता नथी. जडपदार्थोनुं होवापणुं
स्वतंत्र छे. जे जीव पोताने जडनो कर्ता माने अने