
अनुभवथी पर्यायमां आनंद अने पवित्रता पमाय छे, ते ज मांगळिक छे.
अज्ञानभावे पण आत्मा कदी नथी. शरीर वगेरे सर्वे पदार्थो सत्तावाळा छे, आत्मानी सत्ता तेनाथी भिन्न छे.
परद्रव्योमां कांई घाल–मेल करवा आत्मा समर्थ नथी.
छे. पण आत्मानी पर्यायमां जे विकार थाय छे तेना आश्रये कदी पण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट थता नथी.
सत् छे. ‘हुं सत् छुं, मारुं ज्ञान, आनंद वगेरे मारामां सत् छे, परद्रव्यो तेनामां सत् छे, परद्रव्यमां मारो कांई
अधिकार नथी, मारी सत्ता परथी भिन्न छे, पर्यायमां जे पुण्य–पाप थाय ते विकार छे, ए पण एक समय पूरता
सत् छे अने मारो त्रिकाळी सत् स्वभाव तो पुण्य–पापथी रहित छे’ एम पोताना शुद्ध स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने
रमणता ते ज अपूर्व आत्मधर्म छे, अने ते पोते ज मंगळ छे.
छे. तेओ मुनिदशामां वर्तता हता. मात्र शरीरनी नग्न दशा ते मुनिपणुं नथी, पण आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान
पूर्वक ते स्वभावमां लीनतारूप स्थिर पर्याय थतां त्रण कषायना अभावपूर्वक जे अंतर अनुभव दशा प्रगटी एवी
आत्मपर्याय ते ज मुनिदशा छे. क्षणे क्षणे अंतर आत्मअनुभवमां उतरी जाय छे अने विकल्परहित थई जाय छे
आवी भावलिंगी मुनिदशामां श्रीकुंदप्रभु झुलता हता.
सर्वज्ञदेवो बिराजे छे. श्री सीमंधर परमात्मा पासे कुंदकुंदाचार्यदेव गया हता अने त्यां आठ दिवस रह्या हता. आमां
शंकाने कदी स्थान नथी, श्रीकुंदकुंद भगवानने अंतर अनुभव तो हतो ज, अने श्री सीमंधर भगवान पासेथी विशेष
समाधान मेळवीने भरतक्षेत्रे आव्या; त्यार पछी समयप्राभृत, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड
वगेरे महान शास्त्रोनी रचना शासनना महद्भाग्ये, कुंदकुंदप्रभुना विकल्पना निमित्तथी अने पुद्गल परावर्तनना
स्वतंत्र परिणमनथी थई गई. एमनी दशा केवळज्ञाननी अत्यंत निकट वर्ती रही हती. एवा श्रीकुंदकुंदभगवाननो
अनंत अनंत उपकार वर्ते छे. तेमना अपार उपकारोनी जगतने जाहेरात थाय ए माटे आ प्रवचन–मंडप साथे
श्रीकुंदकुंद– भगवाननुं पवित्र नाम जोडीने ‘भगवानश्री कुंदकुंद–प्रवचन मंडप’ एम नाम राख्युं छे. तेओश्रीए आ
भरतक्षेत्रमां अपूर्व श्रुतनी प्रतिष्ठा करी छे.