Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ८२ः आत्मधर्मः ४१
वर्ष चोथुंसळंग अंकफागणआत्मधर्म
अंक पांचमो४१र४७३
दरेक द्रव्य अने तेनी दरेक पर्यायनी स्वतंत्रतानो
ढंढेरो
(ता. १६–१–४७नी वहेली सवारे पूज्य सद्गुरुदेवना उद्गारोने आधारे)
१. दरेक द्रव्य ते त्रिकाळी पर्यायोनो पिंड छे, अने तेथी त्रणेकाळनी वर्तमान पर्यायोने लायक छे; अने पर्याय
एक एक समयनी छे तेथी दरेक द्रव्य दरेक समये ते ते समयनी पर्यायने लायक छे; अने ते ते समयनी पर्याय ते ते
समये थवा लायक होवाथी थाय छे; कोई द्रव्यनी पर्याय आघी पाछी थती ज नथी.
२. माटी द्रव्य(–माटीना परमाणुओ) पोतानी त्रणे काळनी पर्यायोने लायक छे, छतां त्रणे काळे ते घडो
थवानी ज तेमां लायकात छे एम मानवामां आवे तो, माटी द्रव्य एक पर्याय पूरतुं ज थई जाय अने तेना
द्रव्यपणानो नाश थाय.
३. माटी द्रव्य त्रणे काळे घडो थवाने लायक छे एम कहेवामां आवे छे ते, परद्रव्योथी माटीने जुदी पाडीने
एम बताववा माटे छे के माटी सिवाय बीजां द्रव्यो माटीनो घडो थवाने कोई काळे लायक नथी. परंतु जे वखते माटी
द्रव्यनी तथा तेनी पर्यायनी लायकातनो निर्णय करवानो होय त्यारे, ‘माटी द्रव्य त्रणे काळे घडो थवाने लायक छे’
एम मानवुं ते मिथ्या छे; केम के तेम मानतां, माटी द्रव्यनी बीजी जे जे पर्यायो थाय छे ते पर्यायो थवाने माटी द्रव्य
लायक नथी तोपण थाय छे–एम थयुं, के जे सर्वथा खोटुं छे.
४. उपरनां कारणोए, ‘माटी द्रव्य त्रणेकाळ घडो थवाने लायक छे अने कुंभार न आवे त्यांसुधी घडो थतो
नथी’ एम मानवुं ते मिथ्या छे; पण माटी द्रव्यनी पर्याय जे समये घडापणे थवाने लायक छे ते एक समयनी ज
लायकात होवाथी ते ज समये घडारूप पर्याय थाय, आघी–पाछी थाय नहि. अने ते वखते कुंभार वगेरे निमित्तो
स्वयं योग्य स्थळे होय ज.
प. दरेक द्रव्य पोते ज पोतानी पर्यायनुं स्वामी होवाथी तेनी पर्याय ते ते समयनी लायकात प्रमाणे स्वयं
थया ज करे छे; ए रीते दरेक द्रव्यनी पोतानी पर्याय दरेक समये ते ते द्रव्यने ज आधीन छे, बीजा कोई द्रव्यने
आधीन ते पर्याय नथी.
६. जीवद्रव्य त्रिकाळ पर्यायोनो पिंड छे तेथी ते त्रिकाळ वर्तमान पर्यायोने लायक छे. अने प्रगट पर्याय एक
समयनी होवाथी ते ते पर्यायने पोते लायक छे.
७. जो एम न मानवामां आवे तो, एक पर्याय पुरतुं ज द्रव्य थई जाय. दरेक द्रव्य पोतानी पर्यायनुं स्वामी
होवाथी तेनी वर्तमान वर्तती एक एक समयनी पर्याय छे ते ते द्रव्यने हाथ छे–आधिन छे,
८. जीवने ‘पराधीन’ कहेवामां आवे छे तेनो अर्थ ‘परद्रव्यो तेने आधीन करे छे अथवा तो परद्रव्यो तेने
पोतानुं रमकडुं बनावे छे’ एम नथी, पण ते ते समयनी पर्याय जीव पोते परद्रव्यनी पर्यायने आधीन थई करे छे.
परद्रव्यो के तेनी कोई पर्याय जीवने कदी पण आश्रय आपी शके, तेने रमाडी शके, हेरान करी शके के सुखी–दुःखी करी
शके–ए मान्यता जुठ्ठी छे.
९. दरेक द्रव्य सत् छे, माटे ते द्रव्ये–गुणे ने पर्याये पण सत् छे अने तेथी ते हंमेशा स्वतंत्र छे. जीव
पराधीन थाय छे ते पण स्वतंत्रपणे पराधीन थाय छे. कोई परद्रव्य के तेनी पर्याय तेने पराधीन के परतंत्र
बनावतां नथी.
१०. ए रीते श्रीवीतरागदेवोए संपूर्ण स्वतंत्रतानो ढंढेरो पीटयो छे.