Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७३ः ८३ः
अध्यात्म शास्त्रोनी कथन पद्धति अथवा साधक जीवनी द्रष्टिनुं सळंग धोरण
(परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन)
अध्यात्मशास्त्रोमां ‘अभेद ते निश्चयनय’ एम कह्युं नथी. जो अभेद ते निश्चयनय एवो अर्थ करीए तो
कोई वखते निश्चयनय मुख्य थाय अने कोई वखते व्यवहारनय मुख्य थाय, केम के आगम शास्त्रोमां कोई वखते
व्यवहारनयने मुख्य अने निश्चयनयने गौण करीने कथन करवामां आवे छे. अध्यात्मशास्त्रोमां हंमेशा ‘मुख्य ते
निश्चयनय’ छे, अने तेना ज आश्रये धर्म थाय–एम समजाववामां आवे छे; अने तेमां निश्चयनय सदा मुख्य ज
रहे छे. ज्यां विकारी पर्यायोनुं व्यवहारनयथी कथन करवामां आवे त्यां पण निश्चयनयने ज मुख्य अने
व्यवहारनयने गौण करवानो आशय छे–एम समजवुं. कारण के पुरुषार्थ वडे पोतामां शुद्धपर्याय प्रगट करवा अर्थात्
विकारी पर्याय टाळवा माटे हंमेशा निश्चयनय ज आदरणीय छे; ते वखते बंने नयोनुं ज्ञान होय छे पण धर्म
प्रगटाववा माटे बंने नयो कदी आदरणीय नथी. व्यवहारनयना आश्रये कदी धर्म अंशे पण थतो नथी, परंतु तेना
आश्रये तो राग–द्वेषना विकल्पो ज ऊठे छे. छए द्रव्यो तेना गुणो अने तेनी पर्यायोना स्वरूपनुं ज्ञान कराववा माटे
कोई वखते निश्चयनयनी मुख्यता अने व्यवहारनयनी गौणता राखीने कथन करवामां आवे, अने कोई वखते
व्यवहारनयने मुख्य करीने तथा निश्चयनयने गौण राखीने कथन करवामां आवे; पोते विचार करे तेमां पण कोई
वखते निश्चयनयनी मुख्यता अने कोई वखते व्यवहारनयनी मुख्यता करवामां आवे. अध्यात्मशास्त्रमां पण जीवनी
विकारी–पर्याय जीव स्वयं करे छे तेथी थाय छे अने ते जीवनां अनन्य परिणाम छे–एम व्यवहारनये कहेवामां–
समजाववामां आवे, पण ते दरेक वखते निश्चयनय एक ज मुख्य अने आदरणीय छे एम ज्ञानीओनुं कथन छे. कोई
वखते निश्चयनय आदरणीय छे अने कोई वखते व्यवहारनय आदरणीय छे–एम मानवुं ते भूल छे. त्रणे काळे
एकला निश्चयनयना आश्रये ज धर्म प्रगटे छे एम समजवुं.
प्रश्नः– शुं साधक जीवने नय होता ज नथी?
उत्तरः– साधक दशामां ज नय होय छे. केमके केवळीने तो प्रमाण होवाथी तेमने नय होता नथी, अज्ञानीओ
व्यवहारनयना आश्रये धर्म थाय एम माने छे तेथी तेमनो व्यवहारनय तो निश्चयनय ज थई गयो, एटले
अज्ञानीने साचा नय होता नथी. ए रीते साधक जीवोने ज तेमना श्रुतज्ञानमां नय पडे छे. निर्विकल्पदशा सिवायना
काळमां ज्यारे तेमने श्रुतज्ञानना भेदरूप उपयोग नयपणे होय छे त्यारे अने संसारना काममां होय के स्वाध्याय,
व्रत, नियमादि कार्योमां होय, त्यारे जे विकल्पो ऊठे छे ते बधा व्यवहारनयना विषय छे; परंतु ते वखते पण तेमना
ज्ञानमां निश्चयनय एक ज आदरणीय होवाथी (–अने व्यवहारनय ते वखते होवा छतां पण ते आदरणीय नहि
होवाथी–) तेमनी शुद्धता वधे छे. ए रीते सविकल्प दशामां निश्चयनय आदरणीय छे अने व्यवहारनय उपयोग रूप
होवा छतां ज्ञानमां ते ज वखते हेयपणे छे, ए रीते निश्चयनय अने व्यवहारनय–ए बंने साधक जीवोने एक वखते
होय छे.
–माटे साधक जीवोने नय होता ज नथी ए मान्यता साची नथी, पण साधक जीवोने ज निश्चय अने
व्यवहार–बंने नयो एकी साथे होय छे. निश्चयनयना आश्रय विना साचो व्यवहारनय होय ज नहि. जेने
अभिप्रायमां व्यवहारनयनो आश्रय होय तेने तो निश्चयनय रह्यो ज नहि, केमके तेने तो, जे व्यवहारनय छे ते ज
निश्चयनय थई गयो.
चारे अनुयोगमां कोई वखते व्यवहारनयने मुख्य करीने कथन करवामां आवे छे, अने कोई वखते
निश्चयनयने मुख्य करीने कथन करवामां आवे छे, पण ते दरेक अनुयोगमां कथननो सार एक ज छे अने ते ए छे
के–निश्चय अने व्यवहार नय बंने जाणवायोग्य छे, पण शुद्धता माटे आश्रय करवा योग्य निश्चयनय एक ज छे अने
व्यवहारनय कदी पण आश्रय करवा योग्य नथी–ते हंमेशा हेय ज छे. एम समजवुं.
व्यवहारनयना ज्ञाननुं फळ तेनो आश्रय छोडीने निश्चयनयनो आश्रय करवो ते छे. जो व्यवहारनयने
उपादेय मानवामां आवे तो ते व्यवहारनयना साचा ज्ञाननुं फळ नथी पण व्यवहारनयना अज्ञाननुं एटले के
मिथ्याज्ञाननुं फळ छे.
निश्चयनयनो आश्रय करवो–तेनो अर्थ ए छे के, निश्चयनयना विषयभूत आत्माना त्रिकाळी चैतन्यस्वरूपनो
आश्रय करवो; अने व्यवहारनयनो