Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ८४ः आत्मधर्मः ४१
आश्रय छोडवो–तेने हेय समजवो–तेनो अर्थ ए छे के, व्यवहारनयना विषयरूप विकल्प, परद्रव्यो के स्वद्रव्यनी
अधूरी अवस्था तरफनो आश्रय छोडवो.
अध्यात्मनुं रहस्य
अध्यात्मनुं मुख्य ते निश्चय अने गौण ते व्यवहार–ए धोरण होवाथी तेमां सदाय मुख्यता निश्चयनी ज छे,
ने व्यवहार सदाय गौणपणे ज छे. अर्थात् साधक जीवनुं आ धोरण छे. साधक जीवनी द्रष्टिनुं सळंग धोरण ए ज
रीते छे.
साधक जीवो शरूआतथी अंत सुधी निश्चयथी ज मुख्यता राखीने व्यवहारने गौण ज करता जाय छे, तेथी
साधकदशामां निश्चयनी मुख्यताना जोरे साधकने शुद्धतानी वृद्धि ज थती जाय छे अने अशुद्धता टळती जाय छे. ए
रीते निश्चयनी मुख्यताना जोरे पूर्ण केवळज्ञान थतां त्यां मुख्य–गौणपणुं होतुं नथी अने नय पण होता नथी.
वस्तुस्वभाव अने तेमां कई तरफ ढळवुं
वस्तुमां द्रव्य अने पर्याय, नित्यपणुं अने अनित्यपणुं इत्यादि जे विरुद्ध धर्मस्वभाव छे ते कदी टळतो नथी.
पण जे बे विरुद्ध धर्मो छे तेमां एकना लक्षे विकल्प तूटे छे अने बीजाना लक्षे राग थाय छे, अर्थात् द्रव्यना लक्षे
विकल्प तूटे छे अने पर्यायना लक्षे राग थाय छे, एथी बे नयोनो विरोध छे. हवे, द्रव्यस्वभावनी मुख्यता अने
अवस्थानी गौणता करीने साधक जीव ज्यारे स्वभाव तरफ ढळी गयो त्यारे विकल्प तूटीने स्वभावमां अभेद थतां
ज्ञान प्रमाण थई गयुं. हवे ते ज्ञान जो पर्यायने जाणे तोपण त्यां मुख्यता तो सदाय द्रव्यस्वभावनी ज रहे छे. ए
रीते, जे द्रव्यस्वभावनी मुख्यता करीने ढळतां ज्ञान प्रमाण थयुं ते ज द्रव्यस्वभावनी मुख्यता साधकदशानी पूर्णता
सुधी निरंतर रह्या करे छे. अने ज्यां द्रव्यस्वभावनी ज मुख्यता छे त्यां सम्यग्दर्शनथी पाछा पडवानुं कदी होतुं ज
नथी; तेथी साधकजीवने सळंगपणे द्रव्यस्वभावनी मुख्यताना जोरे शुद्धता वधतां वधतां ज्यारे केवळज्ञान थाय छे
त्यारे वस्तुना परस्पर विरुद्ध बंने धर्मोने (द्रव्य अने पर्यायने) एक साथे जाणे छे, पण त्यां हवे एकनी मुख्यता ने
बीजानी गौणता करीने ढळवानुं रह्युं नथी. त्यां संपूर्ण प्रमाण थई जतां बे नयोनो विरोध टळी गयो (अर्थात् नयो
ज टळी गया) तोपण वस्तुमां जे विरुद्ध–धर्मस्वभाव छे ते तो टळता नथी.
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निवृत्ति परायण श्री वनेचंदभाई शेठ
“श्री लीलाधरभाई पारेख जेवी मारी स्थिति थाय तेवुं लागे छे”–एम, जाणे पोताना देहविलयनुं आगाही सूचक
आ कथन न होय, तेम श्री वनेचंदभाई शेठ पोष सुद २ बुधवारे सवारे उपरोक्त वाक्य बोलेला, ने ते ज दिवसे सांजे (६८
वर्षनी वये) स्वर्गवास पाम्या. ते केटलाकने अकस्मात जेवुं लागे पण ते तो क्रमबद्धपर्यायना नियम अनुसार ज बनवा
पाम्युं हतुं. आवा प्रसंगो तो आपणने संसारनी अनित्यता–अशरणताना बोधपाठ शीखवे छे.
तेओए पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामी पासे सं. १९८१मां ब्रह्मचर्य अंगीकार करेलुं, अने त्यार पहेलां (सं.
१९७९) थी तेओ निवृत्तिपरायण जीवन गाळता हता. पूज्य श्रीसद्गुरुदेवश्रीनुं चातुर्मास ज्यां ज्यां थतुं त्यां त्यां बनी
शकतुं त्यारे तेओश्रीना सदुपदेशामृतनो लाभ लेवा माटे तेओ आवता. तत्त्व समजवानी तेमनी जिज्ञासुवृत्ति आथी जणाई
आवती हती. तत्त्वज्ञानना ऊंडा न्यायो समजीने तेओ प्रमोद दर्शावता हता. श्रीमान् समीप समयवर्ती समयज्ञ श्रीमद्
राजचंद्रजी प्रत्ये तेमने उच्च भक्तिभाव तो हतो ज, तेम छतां तेओ व्यक्तिपूजामां मानता न होता पण गुण पूजामां
मानता हता. तेथी पूज्य सद्गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने आंतरिक भक्ति अत्यंत हती ज अने कोई प्रसंगे तो ते भक्तिभाव
एटलो उछळी जतो के तेओ नाची ऊठता.
तेओ छेल्ला संवत २००२ना अषाढ मासमां ११ दिवस सोनगढ रह्या हता त्यारे पण एक वखत जिनमंदिरमां
भक्ति वखते पूज्य गुरुदेवश्रीनी समीपमां हाथमां चामर लईने घणा उत्साहथी नाची ऊठया हता, ते वखतनुं द्रश्य अत्यंत
भक्ति प्रेरक हतुं अने जोनारना हृदयमां पण भक्ति उछळी जती हती.
धर्म जिज्ञासुओ प्रत्ये तेमनो अत्यंत वात्सल्यभाव हतो तेथी तेमने माटे तेमना द्वार सदा खुल्लां ज हतां. शास्त्रमां
श्रावकना अभंग द्वारनी वात आवे छे तेनुं आथी स्मरण थतुं हतुं. तेओनो शास्त्राभ्यास पण सारो हतो, चर्चा तथा
वार्तालाप पण तेने लगतो करता हता.
तेमनी धर्मरुचि, सज्जनता, नम्रता, निरभिमानता, उदारता, सरळता, गंभीरता अनुकरणीय हती. तेमनी बुद्धि
अने स्मरण शक्ति तेजस्वी हती तेथी अध्यात्म शास्त्रोना ऊंडा न्यायो पण तेओ ग्राह्य करी लेता. तेमनुं जीवन शुद्ध अने
सादुं हतुं.
तेओ वांकानेरना रहीश हता; तेमनी नगर शेठाई, व्यापारी नीति, समाधान शक्ति, कुटुंब प्रेम, राज्यमान्यपणुं
अने बीजी अनेक उच्च सज्जनने छाजे तेवी योग्यता दर्शाववानुं आ आध्यात्मिक पत्रमां अस्थाने होवाथी ते छोडी देवामां
आवेल छे.
तेमना कुटुंबीओए मोकलावेल पत्रिकामां लखेलुं के “अमारे भाई वनेचंदभाई पोष सुद २ ना रोज स्वर्गवास
थतां तेमनो महोत्सव माह वद ८ ना रोज करवानुं राखेल छे.” अने ए साचुं ज छे केः–