केटलाक गुणो कही शकुं? विकल्प द्वारा आत्मा खीलतो नथी. सरस्वती जे वीतरागनी वाणी तेना द्वारा पण केवळी
भगवानना गुणो पूरा कही शकाय नहि.
गुणोना पारने केम पामी शके? श्रीमद् राजचंद्रजी पण कहे छे के–
कही शक्या नहि ते पण श्री भगवान जो...
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे...
अनुभव गोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो...अपूर्व. २०
सरस्वती पण आत्माना स्वरूपने न पामी शके एटले के वाणी तरफना विकल्प वडे आत्मानो स्वभाव खीलतो
नथी, पण वाणीनो विकल्प छोडीने आत्मानो अनुभव थाय छे, तेनी अहीं भावना छे.
नथी. तारा अनंत गुणोना अपार भावने आ स्तुतिना विकल्परूप हदवाळो राग पहोंची शकतो नथी. माटे अमे
स्तुतिना विकल्पने तोडीने, आ राग टाळीने स्वरूपनी निर्विकल्प श्रेणी वडे ज्यारे केवळज्ञान प्रगट करशुं त्यारे ज
स्वभावनो पार पमाशे.
वाणीमां सर्वोत्कृष्ट एवी सरस्वती पण तारा गुणो वर्णवतां हारी जाय छे. तो पछी अमे छद्मस्थ पामर जीव तेने
केवी रीते वर्णवी शकीए? आ स्तुतिकार पोते महान संत निर्ग्रंथ मुनि छे. छतां भगवान पासे केटली पामरता
वर्णवे छे! जेने पूर्ण स्वभावनो विनय प्रगटयो होय तेने अधूरी पर्यायनो अहंकार केम होय? पंचमआराना संत
मुनि केवळज्ञान लेवानी तैयारीवाळा छे पण हजी वच्चे एक भव बाकी छे तेथी केवळ माटे झंखे छे. आचार्यदेव आ
स्तुति करतां खरेखर तो पोताना स्वभावनुं बहुमान लावीने केवळज्ञाननी भावना वधारे छे. हे नाथ! तारा अपार
केवळज्ञान पासे तो अमे मूर्ख छीए, अमारा जेवा छद्मस्थ जीवोना ज्ञान उपर हजी आवरण छे, ज्ञाननो पुरुषार्थ
ओछो छे, छतां तमारी ओथ लईने–तमारा जेवो ज परिपूर्ण स्वभाव स्वीकारीने तेना जोरे कहीए छीए के अधुरुं
ज्ञान के नबळो पुरुषार्थ ते अमारुं स्वरूप नथी. केवळज्ञान जेटलो ज अमारो स्वभाव छे. आ रीते द्रव्य अने
पर्यायनी संधि वडे पूर्णता प्रत्येनो पुरुषार्थ उपाडे छे.