बाल–पने गृहवास न कीना। बाल–ब्रह्मचारी–रस भीना।।
हुये दिगम्बर यती महान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
मन इन्द्रिय को वश निज किना। रागद्वेष का रस नहीं लीना।।
हना मोह सुभट बलवान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
घाति–कर्मका नाश हुआ जब। लोकालोक प्रकाश ज्ञान तब।।
भये आप अरहंत महान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
समवसरण की हुई तियारी। ऋषि मुनि खग सब मंझारी।।
खिरै अनक्षर ध्वनि अमलान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
सब जन सुनें वैर नहिं आनें। वाणी सब के चित्त में सानै।।
सुनै अहिंसा–धर्म प्रधान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
कर विहार जिन धर्म बताया। धर्मादिक पुरुषार्थ सुझाया।।
किया अपूर्व जगत कल्यान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
शुक्ल ध्यान से लीन हुये जब। पंच–लघुक्षर शेष समय तब।।
हुये आप सब सिद्ध–समान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०
देख जयन्ती का उत्सव दिन। गावो सब मिल निज गुण निशिदिन।।
भक्त–जन्म का हो अवसान। सदा तुम चरणाम्बुज का ध्यान।। जय०