वगेरेनी तकलीफ वहोरीने पण अमारुं आमंत्रण स्वीकार्युं ते माटे अमे आप सौना ऋणी छीए.
पवित्र चरणकमळनी रजथी जे भूमि पुनित थई हती, प्रसिद्ध कथानुसार जे भूमिमां आचार्य महाराजश्री
उमास्वामीना पवित्र हस्तथी महान मोक्षशास्त्रनी रचना थई हती, ते भूमिमां, खेदनो विषय छे के, काळ जतां
यथार्थ जैन दर्शननी भारे ओट आवी. ते एटले सुधी के दिगंबर जैन धर्म लगभग नष्ट जेवो थयो. एम धर्मना
लांबा विरहकाळ पछी (वि. सं. १९२४मां) मोरबी पासे ववाणिया गाममां महान तत्त्वज्ञानी श्रीमद् राजचंद्रजी
नामना एक नररत्ननो जन्म थयो–जेमणे यथार्थ जैन दर्शनना रहस्यने पामी, तेमनां पत्रो द्वारा तेमज परमश्रुत
प्रभावक मंडळनी स्थापना द्वारा वास्तविक जैन दर्शनना प्रचारनां प्रगरण मांडयां.
आनंदोदधि उल्लस्यो; समयसारना परम गंभीर भावो भावुक हृदयमां पचावतां अमृतसागरनो अनुभव थयो.
‘अहो! स्वतंत्र द्रव्य, स्वतंत्र गुण, स्वतंत्र पर्याय! देहथी भिन्न, विकारथी भिन्न, परम अद्भुत आनंदनिधान!’
ते आनंदनिधान बतावनार श्री समयसारनुं अने दिगंबर जैन धर्मनुं साम्राज्य गुरुदेवना हृदयकमळमां स्थपायुं.
बस, ए पवित्र प्रसंगरूप मूळियामांथी दिगंबर धर्मना व्यापक प्रचारनुं वृक्ष आजे फाल्युं छे–जेना परिणामे हजारो
भव्य जीवो सत्धर्म प्रत्ये प्रेराया छे, लाख उपरांत सत्धर्मनां पुस्तको प्रकाशन पाम्यां छे अने जेना परिणामे अमारा
आंगणे आजे दिगंबर जैन धर्मना अग्रणी विद्वानोनो वात्सल्यपूर्ण सत्कार करवा अमे भाग्यशाळी थया छीए.
अहो! जैन दर्शन ए तो वस्तुदर्शन छे के जेनुं ज्ञान थतां जीव पराधीन द्रष्टिथी छूटी स्वद्रव्यमां संतुष्ट थई शाश्वत
सुखनिधिने पामे छे. ए परम कल्याणकारी दर्शननुं हार्द दरेक द्रव्यनी स्वतंत्रता छे. ते स्वतंत्रताने प्रकाशित करनार
ज्ञानांशनुं–निश्चयनयनुं–निरूपण करीने वीतराग भगवंतोए आपणा पर परम उपकार कर्यो छे. आपणने सौने
खेदनी वात छे के जैन दर्शननुं ए एक मुख्य अंग–निश्चयनय–आजे पक्षघातथी पीडाई रह्युं छे. जैनसमाजमां ए
निश्चयनयना ज्ञाननी भारे उणप वर्ती रही छे. समाजनो मोटो भाग एवी भ्रमणामां पडयो छे के ‘जड कर्म
आत्माने हेरान करे छे,’ ‘व्यवहार करतां करतां निश्चय पमाशे,’ ‘शुभ करतां करतां शुद्धता थशे,’ ‘उपादानमां
कार्य थवा माटे निमित्तनी राह जोवी पडे छे.’ आवी अनेक मान्यताओ लोकोमां जड घालीने पडी छे. आपणे
जाणीए छीए के ज्यां सुधी लोकोने निश्चयनुं ज्ञान नहि थाय त्यांसुधी द्रव्यनुं परम स्वातंत्र्य तेमने ख्यालमां नहि
आवे अने त्यांसुधी आवी भ्रामक मान्यताओ नहि टळे तथा खरुं जैनत्व प्राप्त नहि थाय. माटे जीवना
त्रसस्थावरादि अने गुणस्थानमार्गणादि भेदो उपर तेम ज कर्मनी स्थिति वगेरे उपर जे लक्ष अपाय छे ते करतां
घणुं वधारे लक्ष ज्यारे भेदविज्ञानना कारणभूत अध्यात्मशास्त्रोना ज्ञान उपर अपाशे ते दिवस धन्य हशे, ते दिवसे
ज जैन धर्मनी संस्कृतिनो खरो प्रचार थशे. अमारी प्रभावना प्रेम प्रेरित ए भावना छे के आप समा जैन दर्शनना
विद्वानो द्वारा स्वतंत्र द्रव्य–गुण–पर्यायनुं ज्ञान विशेष विशेष प्रचार पामो, नानी नानी पुस्तिकाओना प्रकाशक
मारफत पाठशाळाना विद्यार्थीओ पण ए