Atmadharma magazine - Ank 042
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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चैत्रः २४७३ः १०३ः
क्रमांक श्री सर्वज्ञाय नमः।। ।। श्री वीतरागाय नमः (६)
श्रावण वद १३ थी भादरवा सुद प सुधीना धार्मिक दिवसो दरमियान थयेला श्री समयसारजी गाथा १३ तथा श्री
पद्मनंदी पंचविंशतिका शास्त्रना ऋषभजिनस्तोत्र उपरनां व्याख्यानो अने चर्चाओनो
टूंकसार
(आ लेखना नं. ९६ सुधीना फकरा अंक ४१मां आवी गया छे त्यार पछी अहीं आपवामां आवे छे)
(९७) वीतरागधर्म ए कोई पक्ष नथी, वाडो नथी, कल्पना नथी, पण आत्मानुं स्वरूप ज वीतराग छे.
आत्मानो वीतराग स्वभाव पोते ज एम कहे छे के वीतरागता ए ज धर्म छे, जेटली व्रत वगेरेनी लागणी ऊठे ते
राग छे–धर्म नथी. आवुं वीतरागधर्म अने रागनुं भिन्नपणुं समजीने जो वीतरागने स्तवे तो तेनी स्तुति साची छे.
जेने वीतराग स्वभावनुं भान छे अने रागने धर्म मानता नथी एवा जीवोने साधकदशामां ज्यारे भक्ति–स्तुतिनो
भाव आवे त्यारे तेमां वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनुं ज निमित्त होय, रागी, देव, कुगुरु के कुशास्त्र प्रत्ये तेमने कदापि
भक्ति जागे ज नहि.
(९८) तत्त्वना भान वगर भगवाननी स्तुतिना पाठ बोले पण तेना भाव तो समजे नहि. भाव
समज्या वगर मात्र शब्दो बोली जाय तेनाथी लाभ थाय नहि. ‘लोगस्ससूत्र’ मां चोवीस तीर्थंकरोनुं स्तवन छे
तेमां आवे छे के ‘
विहुयरयमला.’ आ प्राकृत भाषा छे तेनुं संस्कृत ‘विधुय रजमला’ ए प्रमाणे छे. एटले के हे
वीतराग देव! आपे पूर्ण आत्मस्वभावनी श्रद्धा ज्ञान अने स्थिरता वडे ‘विधुय’ एटले धोई नाख्युं छे, शुं धोई
नाख्युं छे? के ‘रजमला’ एटले रज अने मळने धोई नाख्यां छे. रज एटले द्रव्यकर्म अने मळ एटले भावकर्म.
आम अर्थ समजे नहि अने रयमलाने बदले कांईना कांई पाठ बोले ते भगवाननी स्तुति कहेवाय नहि. अने जेम
होय तेम पाठ बोले तोपण, जो भाव न समजे तो, ते पण भगवाननी स्तुति नथी. हे जिन! जेम आप रागादि
मळनो नाश करीने रागादिथी रहित थया छो तेम मारो स्वभाव पण तेवो ज छे अने हुं पण ते ज स्वभावनी
भावना वडे रागादि मळने धोईने जे परमात्मपदने आप पाम्या छो ते ज परमात्मपदने पामवानो छुं. आवी
यथार्थ समजण जेने होय ते ज जीव भगवाननी साची स्तुति करवाने लायक छे. भयथी, डरथी के लोकसंज्ञाथी कोई
पण कुदेवादिने माने, तेने माथुं नमावे ते केवळी भगवाननो दुश्मन छे, सत्यनो अनादर करनार छे. अंशे पण
वीतरागनी भक्ति तेने नथी. सत् अने असत् बंने मार्गमां एक साथे पग नहि चाले. जेने सत्नुं सेवन करवुं होय
तेणे असत्नुं सेवन छोडवुं पडशे. जेम अडधुं दूध अने अडधुं झेर एम बंने भेगा करीने सेवन करे तो ते एकला
झेररूपे ज परिणमे, तेम सत् अने असत् बंनेने जे माने तेने एकला असत्नुं ज सेवन छे. संसारना लौकिक कार्यो
खातर जे सत्ने गौण करीने असत्नो आदर करे छे तेने सत्ना अनादरनुं महापाप छे.
(९९) वीतराग–सर्वज्ञ भगवानने कोईनी दरकार न हती, तेमणे पोताना सर्वज्ञपणामां जेवो
आत्मस्वभाव जाण्यो तेवो ज वाणी द्वारा कहेवायो छे. सर्वज्ञ भगवाने कहेली आत्मस्वभावनी वात त्रणकाळमां फरे
तेम नथी. एनाथी अंश मात्र पण जे विरुद्ध माने ते वीतरागदेवनो पाको दुश्मन छे. दुश्मन कई रीते? वीतरागदेवने
तो नुकशान करवानो कोई समर्थ नथी परंतु ज्यारे वीतरागदेवने एकेय भव नथी त्यारे आने अनंत भव छे.
वीतरागदेवने अनंत सुख छे त्यारे आने अनंतदुख छे, ए रीते वीतरागदेवने जेटला गुणो छे तेनाथी विरुद्ध दोषो
तेनामां (ऊंधी मान्यतावाळा जीवमां) छे माटे ते वीतरागनो वेरी छे.
(१००) आत्मा वस्तु त्रिकाळ सत् स्वयंसिद्ध छे, ते परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप छे, तेना स्वरूपमां रागादि विकार
नथी. देहनी क्रियाथी के रागभावथी जेओ आत्मानो धर्म माने तेओ आत्मस्वरूपने जाणनारा नथी, तेओ
वीतरागना साचा भक्त नथी. वीतरागता अने राग तो एकबीजाथी विरुद्ध छे, जे वीतरागतानो उपासक छे तेने
रागनो आदर नथी अने जेने रागनो आदर छे ते वीतरागतानो उपासक नथी. वीतरागतानो आदर करनार
मोक्षने साधे छे अने रागनो आदर करनार संसारने वधारे छे. वीतराग स्वभावी आत्मतत्त्वनो विरोध करनारने
एक पण भव सारो मळवानो नथी.
(१०१) आ श्रीऋषभदेव भगवाननी स्तुति चाले छे, भगवानना गुणोनी ओळखाण सहित स्तुति केवी
होय अने स्तुति करनार भक्त केवा होय तेनुं वर्णन घणुं कहेवायुं छे. आ स्तुति (ऋषभजिनस्तोत्र) ना रचनार
श्री पद्मनंदि