राग छे–धर्म नथी. आवुं वीतरागधर्म अने रागनुं भिन्नपणुं समजीने जो वीतरागने स्तवे तो तेनी स्तुति साची छे.
जेने वीतराग स्वभावनुं भान छे अने रागने धर्म मानता नथी एवा जीवोने साधकदशामां ज्यारे भक्ति–स्तुतिनो
भाव आवे त्यारे तेमां वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनुं ज निमित्त होय, रागी, देव, कुगुरु के कुशास्त्र प्रत्ये तेमने कदापि
भक्ति जागे ज नहि.
तेमां आवे छे के ‘
मळनो नाश करीने रागादिथी रहित थया छो तेम मारो स्वभाव पण तेवो ज छे अने हुं पण ते ज स्वभावनी
भावना वडे रागादि मळने धोईने जे परमात्मपदने आप पाम्या छो ते ज परमात्मपदने पामवानो छुं. आवी
यथार्थ समजण जेने होय ते ज जीव भगवाननी साची स्तुति करवाने लायक छे. भयथी, डरथी के लोकसंज्ञाथी कोई
पण कुदेवादिने माने, तेने माथुं नमावे ते केवळी भगवाननो दुश्मन छे, सत्यनो अनादर करनार छे. अंशे पण
वीतरागनी भक्ति तेने नथी. सत् अने असत् बंने मार्गमां एक साथे पग नहि चाले. जेने सत्नुं सेवन करवुं होय
तेणे असत्नुं सेवन छोडवुं पडशे. जेम अडधुं दूध अने अडधुं झेर एम बंने भेगा करीने सेवन करे तो ते एकला
झेररूपे ज परिणमे, तेम सत् अने असत् बंनेने जे माने तेने एकला असत्नुं ज सेवन छे. संसारना लौकिक कार्यो
खातर जे सत्ने गौण करीने असत्नो आदर करे छे तेने सत्ना अनादरनुं महापाप छे.
तेम नथी. एनाथी अंश मात्र पण जे विरुद्ध माने ते वीतरागदेवनो पाको दुश्मन छे. दुश्मन कई रीते? वीतरागदेवने
तो नुकशान करवानो कोई समर्थ नथी परंतु ज्यारे वीतरागदेवने एकेय भव नथी त्यारे आने अनंत भव छे.
वीतरागदेवने अनंत सुख छे त्यारे आने अनंतदुख छे, ए रीते वीतरागदेवने जेटला गुणो छे तेनाथी विरुद्ध दोषो
तेनामां (ऊंधी मान्यतावाळा जीवमां) छे माटे ते वीतरागनो वेरी छे.
वीतरागना साचा भक्त नथी. वीतरागता अने राग तो एकबीजाथी विरुद्ध छे, जे वीतरागतानो उपासक छे तेने
रागनो आदर नथी अने जेने रागनो आदर छे ते वीतरागतानो उपासक नथी. वीतरागतानो आदर करनार
मोक्षने साधे छे अने रागनो आदर करनार संसारने वधारे छे. वीतराग स्वभावी आत्मतत्त्वनो विरोध करनारने
एक पण भव सारो मळवानो नथी.
श्री पद्मनंदि