ः १०८ः आत्मधर्मः ४२
–तीर्थधाम श्री ‘सोनगढ’ मां दि. जैन विद्वत् परिषदना त्रीजा अधिवेशननी–
.... अभूतपूर्व सफळता
ता. ७–८–९ मार्च १९४७
महान उपकारी श्री सद्गुरुदेवना पुनित् प्रतापे आजे पवित्र जैनदर्शननी जे महा प्रभावना थई रही छे
तेने लीधे सोनगढ सर्वत्र प्रसिद्धि पाम्युं छे; अने तेथी ज पू. सद्गुरुदेवश्रीना पवित्र अध्यात्म उपदेशनो लाभ मळे
एवी उत्कंठाथी आकर्षाईने, श्री दि. जैन विद्वत् परिषदे पोतानुं त्रीजुं वार्षिक अधिवेशन ता. ७–८–९ मार्चना रोज
सोनगढना सुवर्ण आंगणे भर्युं हतुं. परिषदनुं स्वागत करतां स्वागत प्रमुखश्रीए करेलुं भाषण पण आ अंकमां
आप्युं छे.
परिषदमां ३२ विद्वान भाईओ आव्या हता, जेओ बनारस, कटनी, मथुरा, सरसावा (सहारनपुर),
आरा, दिल्ही, बीना, कोसीकलां, बडौत (मेरठ), रोहतक (पंजाब), सागर, लखनौ, उजेडिया, महरौनी, ललितपुर
(झांसी), सुरत, जसवंतनगर अने अम्बाला छावणी (पंजाब)–ए शहेरोना हता. बनारसना
स्याद्वाद्महाविद्यालयना प्रधान अध्यापक पं. कैलासचंद्रजी शास्त्रीने प्रमुख तरीके चूंटवामां आव्या हता. पधारेला
विद्वान भाईओना नामनी यादी आ अंकमां आपवामां आवी छे.
परिषदना त्रण दिवसो दरमियान पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनो सांभळीने अने सतत् तत्त्वचर्चाथी सर्वे विद्वान
भाईओए घणो ज प्रमोद अने आदरभाव व्यक्त कर्यो छे. कदी नहि सांभळेला अपूर्व न्यायो सांभळीने तेओ घणा
प्रभावित थया छे. घणी वार विद्वान भाईओ कहेता हता के अहीं सोनगढमां अमारे परिषद्ना कार्यनी तो गौणता
छे, अने श्री कानजी महाराजना उपदेश अने तत्त्वचर्चानो लाभ लेवो ते ज कार्यनी मुख्यता छे. अने खरेखर थयुं छे
पण तेम ज. सर्वे विद्वान भाईओए अध्यात्म उपदेशनो अने तत्त्वचर्चानो लाभ लीधो छे. साथे साथे परिषदनुं
अधिवेशन पण शांतिथी पूर्ण कर्युं छे.
आ वर्षना अधिवेशन प्रसंगे परिषद्ना ठरावोमां सौथी विशेष महत्त्व धरावतो एक ठराव श्री कानजी
महाराज संबंधी मूकायो हतो, अने सर्वे विद्वान भाईओए तेने अत्यंत आदरपूर्वक वधावी लीधो हतो. परिषदे
पोतानो ते ठराव ‘आत्मधर्म’ मां प्रसिद्ध करवा माटे आप्यो छे अने ते आ अंकमां छापवामां आव्यो छे.
ते ठरावने अनुमोदन आपतां पं. महेन्द्रकुमारजी, पं. परमेष्ठीदासजी, अने पं. राजेन्द्रकुमारजीए अत्यंत
हृदयद्रावक प्रवचन कर्या हता; अने छेवटे प्रमुखश्री पं. कैलासचंद्रजीए आत्मवेदनपूर्वक घणुं ज सुंदर भाषण आप्युं
हतुं.
पं. महेन्द्रकुमारजीए पोताना वकतव्यनो टूंक सार लखी आपेल छे ते आ अंकमां प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे.
परिषदना मंत्रीजी पं. फुलचंद्रजी अहीं आठ दिवस उपरांत रह्या हता, तेओ अहींना परिचयथी घणा ज
संतुष्ट थया छे, अने पू. गुरुदेवश्री प्रत्ये तेमने अपार उल्लास थयो छे. तेओ वारंवार कहेता हता के “आ
युगप्रवर्तक पुरुष छे, आ शासक छे, असाधारण व्यक्ति छे–ए निःसंदेह छे.” अहीं तेओए घणा मुमुक्षुओनो
परिचय कर्यो छे, घणी तत्त्वचर्चा अने निरीक्षण कर्युं छे, ते सर्वेथी तेओने जे प्रेम अने आनंद थयो छे ते तो तेओ
पोते ज पोताना लेखमां प्रगट करवाना छे.
पोताने प्राप्त थयेला परम सत्य तत्त्वज्ञाननो अत्यंत विस्तृत प्रचार करवा माटे दरेके दरेक विद्वान भाईओ
घणा उत्कंठित छे, केमके परिषद्नो मूळ उद्देश ज सत्य तत्त्वज्ञाननो प्रचार करवानो छे. आवा पवित्र उद्देशने माटे
परिषद अभिनंदनने पात्र छे.
आ रीते सोनगढमां मळेली विद्वत् परिषदनी जे अभूतपूर्व सफळता थई छे तेना फळ रूपे जैन शासनना
पवित्र सिद्धांतोनो भारतभरमां प्रचार थशे अने ते घेर घेर पहोंची जशे. पू. गुरुदेवश्रीना महाप्रभावना उदयने
लीधे समस्त भारतमां जैनशासनना विजयडंका वागी रह्या छे...
‘जैन मित्र’ पत्र ता. १३ मार्चना अंकमां विद्वत् परिषदना समाचार आपतां एवी मतलबे जणावे छे के
‘ता. ७ना रोज सांजे पा वागे जिनमंदिरमां मुमुक्षुओ द्वारा एक स्वर–तालथी जिनेन्द्र स्तुति थई, जे सांभळीने
जनता मंत्रमुग्ध थई गई अने आ प्रणालिकानी मुक्तकंठथी प्रशंसा करवा लागी. हंमेशा सवारे ८।। थी ९।। अने
बपोरे ३।। थी ४।। सुधी श्री कानजी महाराजनुं आध्यात्मिक गौरवान्वित महत्त्वपूर्ण प्रवचन थतुं हतुं तथा रात्रे ८
थी ९ तत्त्वचर्चा थती हती तेमां समाजना प्रकांड विद्वानोनी निश्चयनय संबंधी विविध प्रकारनी शंकाओ थती हती.