केवळज्ञान प्रगट कर्या पहेला पण तेओश्रीना जन्म कल्याणकना मांगलिक प्रसंगने अति अति भक्तिथी तेओ वधावे
छे. आ प्रकारनी स्तुतिमां भविष्यना गुणोने वर्तमान लक्षमां लईने स्तववामां आवे छे.
वर्तमान लक्षमां लईने स्तववामां आवे छे.
गौरव छे. आपणे आपणा गुरुदेव प्रत्ये आवी भक्ति करीए. तेनी पुष्टि माटे अनुभवसहित दाखलाओ वर्णववामां
आवे छे–
भान करावे छे के आपणे तेनी तुलना करीए छीए त्यारे स्पष्ट समजी शकीए छीए के स्याद्वाद ते फूदडीवाद नथी,
उपादान–निमित्तनुं ज्ञान ते जड–चेतनना भेळसेळवाळुं नथी पण भेदज्ञान करावनारुं छे, क्रमबद्ध पर्यायनुं जे वर्णन
छे तेमां शिथिलतानी वात नथी पण पुरुषार्थनी फाट (फाटय) छे तथा ते शांतिने आपनार छे, पुण्यनी मीठाश ते तो
संसार छे अने स्वभावनी मीठाश ते मुक्तिनुं कारण छे, व्यवहार छे खरो पण तेनो निषेध करवा योग्य छे. आवा
परम तत्त्वज्ञानना फडचा थता जोईने मुमुक्षुओनां हृदयो भक्तिभावथी ऊछळी जाय छे, ने तेओश्रीना वर्तमान गुण
गावामां निःशंकता ने निडरता आवे छे.– आ छे आपणी गुरुस्तुति.
अनुभव–युक्ति अने शास्त्रना आधारोथी दाखला सहित एवा स्पष्ट करे छे के अंधकार टळी जाय छे ज्ञाननो प्रकाश
थाय छे अने तत्त्व प्रेममां रसबोळ थई जवाय छे.
सांभळवामां तेओश्रीनी धीमाश अने धीरज होय छे. तेओ निःशंक छे के सत्य एक ज छे अने तेनो निर्णय पण एक
ज छे. साचाने नहि फरवुं पडे, खोटाने फरवुं पडशे ने सत्यनो स्वीकार करवो पडशे तेओश्रीनी सत्यनी आवी द्रढता
जोईने अंतरनो विरोध टळतां वार लागती नथी. शास्त्र वांचन अने नवा न्यायो काढवामां आत्मशक्तिनो विकास ज
जोवामां आवे छे, पण विरोधीओनो विरोध कांई डखल करतो जोवामां आवतो नथी.
त्यारे व्यक्त करी शके छे–ए वात निःशंक छे...
‘कुंद शिष्य’ जहां गर्जे, धोरी धर्म प्रवर्तका.
रह्युं छे. जे भूमिमां सत्यधर्मनुं लगभग नाम निशान पण न हतुं ते भूमिमां आजे सत्यधर्मना उपासक हजारो
आत्मार्थिओ तैयार थया छे; जे भूमिमां वीतरागीजिनदेवना दर्शन पण दुर्लभ हता त्यां आजे अनेक वीतरागी
जिनमंदिरो थवा मांडया छे. अने जे भूमिमां सत्शास्त्रनुं नाम पण भाग्ये ज संभळातुं ते भूमिमां आजे तो घेर घेर
बाळको पण सत्शास्त्रनो स्वाध्याय अने तत्त्वचर्चा करता थया छे. वळी धर्मात्माओनां साक्षात् दर्शन अने सेवा
करवानुं महाभाग्य