Atmadharma magazine - Ank 043
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४७३ः १४१ः
परिषदना अमुक विद्वानोए भावना भावी हती. एमना प८ मा जन्म दिनना शुभ प्रसंगे अमे एथी पण आगळ
वधीने भावना भावीए छीए के वर्तमानमां श्रुतज्ञानद्वारा दिव्यध्वनिदाता केवळज्ञानद्वारा साक्षात् दिव्यध्वनिदाता
बनो!
त्रिकाळ जयवंत वर्तो ए दिव्यध्वनि दाता! ! !
* * * * * * *
आपणा पूज्य गुरुदेव
* हरिलाल जैन *
श्री जिनेन्द्रदेवना कल्याणक प्रसंगे देव देवेन्द्रो पण प्रभुश्रीनी भक्तिभीना जे महोत्सवो उजवे छे ते प्रसंगो
जोईने शासनभक्त आत्मार्थी जीवोने आत्मस्वभावनो अपरंपार महिमा अने उत्साह जागृत थाय छे अने तेमनो
ते उत्साह अपार भक्तिद्वारा व्यक्त थाय छे. आत्मस्वभावनो महिमा लावीने पोतामां जे सम्यग्दर्शनादि शुद्धभाव
प्रगट करे ते तो अभेद भक्ति छे अने ते वखते जिनेन्द्रदेव प्रत्ये जे भक्तिनो उल्लास आवे छे ते भेदभक्ति छे.
आत्मार्थी जीवोना अंतरमां ए बंने भक्तिना प्रवाह निरंतर वहेता होय छे.
वर्तमानमां साक्षात् जिनेन्द्रदेवना मंगळ कल्याणक महोत्सवो उजववानुं भाग्य आ भरतक्षेत्रमां नथी, छतां
पण हजी श्री जिनेन्द्रदेवनुं परम पवित्र शासन जयवंत वर्ते छे. अने–जिनेन्द्रदेवना कल्याणक प्रसंगे भक्तिनो मूळ
उद्देश जे पोताना आत्मस्वभावनो महिमा लाववानो हतो ते तो आजे पण फळीभूत थई शके एवुं धन्य भाग्य
आपणने प्राप्त थयुं छे.
ए धन्य दिवस छे वैशाख सुद २. ए दिवसे आपणे अति गौरवथी आपणा पूज्य गुरुदेवश्रीनो जन्म
मंगळ दिन ऊजवशुं...ए वखते आपणो उत्साह देवोना महोत्सवने पण भूलावी देशे...साक्षात् भगवानना
कल्याणकने ऊजवता होईए तेवो आपणने आनंद थशे!! ए वखते मुमुक्षु भक्तोना हृदयमां बे वस्तुओनुं
साम्राज्य हशे–पोताना शुद्धात्म स्वरूपनो महिमा अने तेना दर्शावनार गुरुदेवनी भक्ति. शुद्धात्म स्वरूपनुं परम
बहुमान करतां करतां आपणने आपणा पूज्य गुरुदेवश्री प्रत्ये भक्ति उछळी जशे अने सवारमां ज आपणे आपणा
पूज्य गुरुदेवश्रीना दर्शन करतां करतां आपणी भक्ति व्यक्त करशुं के–
शुं प्रभु चरण कने धरूं? आत्माथी सौ हीन;
ते तो प्रभुए आपियो, वर्तुं चरणाधीन.
अहो! जे परम महिमावंत आत्मस्वभावने हुं अनंतकाळथी नहोतो समज्यो ते गुरुदेवे परम कृपा करी
समजाव्यो...आ आत्मस्वभाव करतां वधारे महिमावंत एवी कोई वस्तु आ जगतने विषे नथी के जेने हुं मारा
गुरुना चरणमां धरीने तेमना उपकारनो बदलो वाळुं! जेमणे आवो आत्मस्वभाव आप्यो ते परम पुरुषना
चरणोमां सदाय वर्त्या करुं.
आ स्थळे आपणा पूज्य गुरुदेवनी साथे साथे तेमना परम उपकारी गुरुश्री कुंदकुंदाचार्यदेवनुं अने
तेमना पण परम उपकारी परम गुरु श्री सीमंधर भगवंतनुं परम भक्तिपूर्वक स्मरण थई आवे छे. पूज्य
गुरुदेवनी भक्तिमां तेओश्रीनी परम भक्ति पण समायेली छे. तेओश्रीए वैशाख वद ६ना मंगळ दिवसे
समवसरण अने संत–मुनिओ सहित पधारीने तेमना पवित्र चरणोनी सेवानो लाभ आपणने आप्यो छे–ए
आपणा धन्यभाग्य छे.
धर्मात्मा पुरुषोना पवित्र गुणोनुं स्तवन शब्दो वडे के विकल्प वडे केम थाय? हीरो लेवा माटे तो हीरानी
किंमत आपवी पडे, तेम धर्मात्माना गुणोनी स्तुति करवा माटे गुणो प्रगट करवा पडे. आपणा गुरुदेवे आपणने
बराबर शीखव्युं छे के तमो स्वतंत्र छो–परिपूर्ण छो, संपूर्ण गुणोथी भरपूर एवा तमारा आत्मस्वभावने समजीने
तमे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करो–ए ज साची गुण स्तुति छे, अने ए ज पवित्र जन्म महोत्सव छे. आवी
गुणस्तुति करवानुं महाभाग्य आपणने प्राप्त थयुं छे...
श्री नारणभाई के जेओ गुरुदेवना विशेष परिचयवाळा छे तेओ पोतानी काली–घेली भाषामां जणावे छे
के–स्तुति त्रण रीते थाय छे;
पहेली रीत एवी छे के प्रभु तीर्थंकरनो जन्म कल्याणक महोत्सव देवो करे छे, तेओ अवधिज्ञानथी जोई शके
छे के आ पुरुष आ ज भवमां केवळज्ञान प्रगट करशे अने दिव्यध्वनि द्वारा जगतना जीवोने एवो उपदेश आपशे के
जीवोने पोतानी मुक्ति करवामां ते जरूर निमित्त नीवडे...माटे श्री तीर्थंकर प्रभुए