रहे?
मर्यां त्यारे तेम जाण्युं. अज्ञानी एम माने के हुं तेने बचावी दउं, तोपण ते कोई परने
बचाववा समर्थ नथी. ज्ञानी के अज्ञानीने पर जीवोने बचाववानो भाव थाय, त्यां
ज्ञानी एम समजे छे के पर जीवोने बचाववा हुं समर्थ नथी अने जे शुभ लागणी थई
ते पण मारा चैतन्य स्वभावनुं कार्य नथी. मारा चैतन्य स्वभावनुं कार्य तो चैतन्य
स्वभावमां रहीने जाणवानुं ज छे, जे शुभलागणी थई तेनो पण खरेखर जाणनार छुं.
अज्ञानी एम माने छे के घणा जीवो मरी जता होय तेवे वखते तेने बचाववा ए
आपणी फरज छे, अने तेने बचाववानो शुभभाव ते चैतन्यनुं कर्तव्य छे; ए रीते
मिथ्याद्रष्टि जीव पोताने पर पदार्थनो अने विकारनो कर्ता माने छे, तेने परथी अने
विकारथी भिन्न चैतन्य स्वभावनी श्रद्धा नथी. चैतन्यनो स्वभाव तो त्रण काळ त्रण
लोकने एक साथे जाणवानो छे, त्रणकाळ त्रणलोकमां शुं बाकी रही गयुं? माटे गमे तेवा
प्रसंगे पण चैतन्य स्वभावनी श्रद्धा टकी रहे छे; ते श्रद्धा चैतन्यना ज आश्रये छे, परना
आश्रये नथी.