Atmadharma magazine - Ank 045a
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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।। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।।
वर्ष चोथुंप्रथम–श्रावण
खास अंक
संपादक
रामजी माणेकचंद दोशी
वकीलर४७३
हे जीव, तुं विचार कर!!
१. हे जीव, पूर्वे अनंत जन्मोमां तें पुण्य कर्या अने ए पुण्यथी धर्म थशे एम मान्युं, परंतु हजी सुधी
तने धर्मनो अनुभव थयो नथी अने तारा संसारनो अंत आव्यो नथी. माटे तुं विचार कर के पुण्य ते धर्मनो
उपाय नथी पण तेनाथी जुदो कांईक बीजो उपाय छे.
२. पूर्वे अनंत जन्मोमां पुण्यना फळरूपे स्वर्गनो देव थयो अने त्यांनी सामग्रीमां तें सुख
मान्युं...पण अनंतवार ए सामग्रीओ भोगवी छतां तारा दुःखनो अंत न आव्यो अने सुख थयुं नहि, माटे
विचार कर के सुख बहारनी सामग्रीओमां नथी, पण सामग्री रहित तारा ज्ञान स्वभावमां सुख छे.
३. अनादिथी तुं शरीरने पोतानुं माने छे, ए शरीर वगेरेनां काम हुं करी शकुं एम माने छे, अने ए
शरीर वगेरेने साचववा माटे अनंतकाळथी तुं भाव करी रह्यो छो, परंतु अनंत जन्मो वीत्या छतां एक पण
शरीर के कोई बीजी वस्तु तारी साथे रही नथी, अनंत शरीरो आव्यां अने तारी तेने छोडवानी इच्छा न
होवा छतां ते बधांय चाल्यां गयां, एक परमाणु पण तारो थईने रह्यो नथी; माटे हे जीव, तुं विचार कर के
शरीर वगेरे पर वस्तुओ उपर तारुं स्वामीत्व नथी, शरीर वगेरे कोई पदार्थो तारां नथी अने तेनां कामोनो
कर्ता तुं नथी. पण शरीरथी जुदा स्वभाववाळुं एवुं कोई तत्त्व तुं छो, ते तत्त्वनी ओळखाण नहि होवाथी ज
तुं दुःखी छो. माटे विचार के एवुं शुं तत्त्व तारामां छे के जेने जाण्या वगर तुं अनंतकाळथी दुःखी थयो? पूर्वे
तने लक्ष्मी, स्त्री वगेरेनो संयोग अनेकवार मळी गयो छतां तुं सुखी थई शक्यो नथी. माटे तुं नक्की कर के
तारूं सुख क्यांय पर द्रव्योमां नथी, पण तारा आत्मामां ज छे. ए आत्माने जाणवानो तुं प्रयत्न कर...पूर्वे
आत्माने जाण्यो न हतो तेथी ज दुःखी हतो.
हे जीव! साचा देव–गुरु–शास्त्र तने पूर्वे अनंतवार मळी गयां छे, छतां तुं धर्म पामी शक्यो नथी.
माटे विचार कर के ए देव–गुरु–शास्त्र तने कांई करवा समर्थ नथी, पण तारा आत्माना सत्य पुरुषार्थथी ज
तुं धर्म पामी शके छे. देव–गुरु–शास्त्र तो तने तारो आत्मा समजवानुं जणावे छे, पण तें कदी तारा आत्मा
तरफ जोयुं नथी तेथी साचा देव–गुरु–शास्त्रना संयोगे पण तारुं अज्ञान टळ्‌युं नथी. माटे हे जीव! हवे तुं
अंतरंगमां विचार करीने, साचा देव–गुरु–शास्त्र जे रीते कहे छे ते रीते तारा आत्माने अवलोकन कर. तारा
आत्माने अवलोकन करवाथी ज तारुं अज्ञान दुःख अने अधर्म टळीने तने ज्ञान–सुख अने धर्मनी प्राप्ति
थशे.
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* आत्मधर्म कार्यालय–मोटा आंकडिया काठियावाड *