उपाय नथी पण तेनाथी जुदो कांईक बीजो उपाय छे.
विचार कर के सुख बहारनी सामग्रीओमां नथी, पण सामग्री रहित तारा ज्ञान स्वभावमां सुख छे.
शरीर के कोई बीजी वस्तु तारी साथे रही नथी, अनंत शरीरो आव्यां अने तारी तेने छोडवानी इच्छा न
होवा छतां ते बधांय चाल्यां गयां, एक परमाणु पण तारो थईने रह्यो नथी; माटे हे जीव, तुं विचार कर के
शरीर वगेरे पर वस्तुओ उपर तारुं स्वामीत्व नथी, शरीर वगेरे कोई पदार्थो तारां नथी अने तेनां कामोनो
कर्ता तुं नथी. पण शरीरथी जुदा स्वभाववाळुं एवुं कोई तत्त्व तुं छो, ते तत्त्वनी ओळखाण नहि होवाथी ज
तुं दुःखी छो. माटे विचार के एवुं शुं तत्त्व तारामां छे के जेने जाण्या वगर तुं अनंतकाळथी दुःखी थयो? पूर्वे
तने लक्ष्मी, स्त्री वगेरेनो संयोग अनेकवार मळी गयो छतां तुं सुखी थई शक्यो नथी. माटे तुं नक्की कर के
तारूं सुख क्यांय पर द्रव्योमां नथी, पण तारा आत्मामां ज छे. ए आत्माने जाणवानो तुं प्रयत्न कर...पूर्वे
आत्माने जाण्यो न हतो तेथी ज दुःखी हतो.
तुं धर्म पामी शके छे. देव–गुरु–शास्त्र तो तने तारो आत्मा समजवानुं जणावे छे, पण तें कदी तारा आत्मा
तरफ जोयुं नथी तेथी साचा देव–गुरु–शास्त्रना संयोगे पण तारुं अज्ञान टळ्युं नथी. माटे हे जीव! हवे तुं
अंतरंगमां विचार करीने, साचा देव–गुरु–शास्त्र जे रीते कहे छे ते रीते तारा आत्माने अवलोकन कर. तारा
आत्माने अवलोकन करवाथी ज तारुं अज्ञान दुःख अने अधर्म टळीने तने ज्ञान–सुख अने धर्मनी प्राप्ति
थशे.