तेओ जीवस्वभावने विकारथी भिन्न टकावी राखे छे, तेथी तेमने क्षणे क्षणे निर्मळदशानी वृद्धि अने विकारनो नाश
थाय छे–ए ज जीवदया छे.
देवी एनुं नाम ‘जीवदया’ छे अने एवी जीवदया ते धर्म छे; पण पर जीवोने बचाववानी शुभ लागणीने
अज्ञानीओ जीवदया कहे छे, वास्तविक रीते ते शुभभावथी जीवदया नथी पण जीवहिंसा ज छे, अने ते
शुभभावथी आत्माने लाभ मानवो अथवा तो पर जीवने हुं बचावी शकुं एवी मिथ्यामान्यता ते तो सौथी
महान जीवहिंसा छे.
जोईए...सम्यग्दर्शनथी ज साची जीवदयानी शरूआत थई शके छे. * * * * *
अने वळी तेने बीजा पदार्थोनी मदद छे एम कहेवुं ते प्रत्यक्ष विरुद्ध छे. जे वस्तु सत् होय ते अन्य वस्तुओथी
निरपेक्ष होय, पोताना कार्य माटे तेने पर वस्तुनी जरूर होय नहि. वस्तु पोताना स्वभावथी ज उत्पाद–व्यय–
ध्रुवरूप छे.
धर्म पामे–एवी प्रवृत्ति करवी.”–एम अज्ञानी जीव माने छे; तेनी द्रष्टि ज पर उपर छे, अने पर पदार्थोनुं हुं करी
दऊं–एवा महा अहंकारथी ते भरेलो छे; तेथी ते एम माने छे के अमे जिनशासनने टकावी राखवा घणुं करीए
छीए. पण भाई, तें शुं कर्युं? पर जीवोमां तो तें कांई कर्युं नथी, मात्र तारामां तें शुभराग कर्यो, अने परजीवोना
कर्तृत्वनुं अभिमान करीने मिथ्यात्व भावने पोष्यो. शुभराग वडे तें जिनशासननी प्रभावना मानी पण जिनशासन
तो वीतरागतामय छे, वीतरागी जिनशासननी प्रभावना तें राग वडे मानी एटले के वीतरागतामय जिन शासनने
तें रागमय मनावीने ऊलटी तेनी अप्रभावना ज करी छे. रागना एक अंशथी पण स्वने के परने लाभ मनावे तो
ते जीव वीतरागी जिनशासननो विरोधी छे.
मान्युं, एटले के वस्तुस्वभावने ज न मान्यो. एक वस्तु बीजी वस्तुने कांई पण करे ए वात जिनशासनने संमत
नथी.
जैनशासन तो स्वतंत्रता छे के परतंत्रता? जेणे शुभराग वडे जिनशासन टके एम मान्युं अथवा तो हुं पर
जीवोने धर्म समजावी दउं एम मान्युं तेणे जिनशासननी अप्रभावना करी छे एटले के पोताना
आत्मस्वभावनी विराधना करी छे. पण, परनुं हुं कांई करी शकुं नहि अने रागथी लाभ थाय नहि एम परथी
जुदा अने रागरहित पोताना स्वभावना भानपूर्वक जेटले अंशे राग टाळीने जीवे वीतरागता प्रगट करी तेटले
अंशे जिनशासननी प्रभावना छे.