Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA With the permisson of the Baroda Govt. Regd. No. B. 4787
order No. 30-24 date 31-10-44
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३. अल्प प्रयासे– सहज पुरुषार्थथी; सद्गुरुना समागमे साचो पुरुषार्थ करे तो अल्प प्रयासे मानादिक
अवगुण टळे.
४. स्वछंद–पोतानी ऊंधी मान्यता; जो पोतानो स्वछंद छोडी सत्समागम करे तो आत्मलाभ थाय.
प. समकित–सम्यग्दर्शन; आत्मानी साची ओळखाण; जे जीव स्वछंद छोडीने सद्गुरुना लक्षे वर्ते छे अने
तेमणे कहेला आत्मस्वभावनी समजण करे छे ते जीव अवश्य सम्यग्दर्शन पामे छे. *
ताकीदनुं कार्य
आत्मधर्म मासिकना विशेष प्रचार माटे श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी आत्महित करवा इच्छता
भाई बहेनो तथा सद्वाचननो प्रचार करती संस्थाओने गुजराती आत्मधर्मनी प०० नकल त्रण त्रण मास माटे
एक वर्ष सुधी नमूनार्थ मफत मोकलवानुं नक्की थयुं छे.
एथी आत्मधर्मना ग्राहको पोताना परिचयमां आवता सत्धर्मना जिज्ञासुओ तथा संस्थाओना शक्य
तेटला वधु सरनामा ताकीदे मोकलावी आपे. आशा छे के आ कार्य ग्राहको तुरत ज करशे.–जमनादास रवाणी
लवाजम वधे छे
कागळ, छपाई अने व्यवस्था खर्चनी मोंघाई तेमज हवे पछीथी (पांचमां वर्षथी) मारुं निर्वाह खर्च
आत्मधर्म कार्यालय उपर राखवानुं होवाथी गुजराती आत्मधर्म मासिकनुं वार्षिक लवाजम रू. २–८–० ने बदले ३–
०–० परदेश माटे ३–८–० राखवानुं नक्की कर्युं छे.
एथी आत्मधर्मना ग्राहकोए नवा वर्षनुं लवाजम उपर प्रमाणे मोकलवानुं रहे छे. आशा छे के ग्राहको आ
वातने लक्षमां राखी लवाजम ओछुं मोकलवानी भूल न करे.–जमनादास रवाणी
श्री जैनदर्शन शिक्षण वर्ग
प्रथम श्रावण सुद प थी प्र. श्रावण वद ८ सुधी पुख्त उंमरना गृहस्थो माटे जे शिक्षणवर्ग खोलवामां आव्यो
हतो. तेमां एकंदर ४प गृहस्थोए भाग लीधो हतो. वर्गमां श्री जैनसिद्धांत प्रवेशिकानो बीजो अध्याय तथा श्री द्रव्य
संग्रहमांथी गाथा–सुधी शीखववामां आव्युं छे. ए शीखवा माटे वर्गमां दाखल थयेला गृहस्थो घणो उल्लास
बतावता हता. अने हवेथी दर वर्षे आवो वर्ग खोलवा माटे मागणी करी छे.
भगवान श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडपनी दीवाले लखायेलां ज्ञान, ध्यान, भक्ति अने वैराग्य प्रेरक
* पवित्र वचनामृतो *
(१) हे शिवपुरीना पथिक! प्रथम भावने जाण. भावरहित लिंगथी तारे शुं प्रयोजन छे? शिवपुरीनो पंथ
जिनभगवंतोए प्रयत्न साध्य कह्यो छे. – भावप्राभृत
(२) सूणी ‘घातिकर्मविहीननुं सुख सौ सुखे उत्कृष्ट छे;’ श्रद्धे न तेह अभव्य छे ने भव्य ते संमत करे. –
प्रवचनसार
(३) हे भाई जो तारी शक्ति होय तो अहो! ध्यानमय प्रतिक्रमणादिक करजे अने जो एटली शक्ति न होय
तो त्यां सुधी श्रद्धा जरूर करजे. – नियमसार
(४) कुंद पुष्पनी प्रभा धरनारी जेमनी कीर्ति वडे दिशाओ विभूषित थई छे, जेओ चारणोना (–चारण
ऋद्धिधारी महामुनिओना) सुंदर हस्त कमळोना भ्रमर हता अने जे पवित्रात्माए भरत क्षेत्रमां श्रुतनी प्रतिष्ठा करी
छे, ते विभु कुंदकुंद आ पृथ्वी पर कोनाथी वंद्य नथी? अर्थात् सर्वथी वंद्य छे.
– चंद्रगिरि पर्वत परनो शिलालेख
(प) यतीश्वर (श्रीकुंदकुंद स्वामी) रजःस्थानने– भूमितळने छोडीने चार आंगळ ऊंचे आकाशमां चालता
हता ते द्वारा हुं एम समजुं छुं के, तेओ श्री अंदरमां तेमज बहारमां रजथी (पोतानुं) अत्यंत अस्पृष्टपणुं व्यक्त
करता हता. (अंदरमां तेओ रागादिक मळथी अस्पृष्ट हता अने बहारमां धूळथी अस्पृष्ट हता.) – विंध्यगिरि
शिलालेख
प्रवचनसार–गुजराती
गुजराती भाषामां छपातुं प्रवचनसार, भाषांतर तेमज छपाईमां थती ढीलने कारणे, प्रगट करवामां विलंब
थशे. प्रगट थयानुं जाहेर करवामां न आवे त्यां सुधी अगाउथी पैसा भरेला भाईओ धीरज राखे.–शांतिलाल पो. शाह
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मुद्रकः चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, दासकुंज, मोटा आंकडिया, काठियावाड
प्रकाशकः श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया ता. ३०–८–४७