अर्थ ‘जेमां निमित्तनो संबंध होय एवुं’ एम पण थाय छे, एटले के ज्यारे नैमित्तिक होय त्यारे निमित्त पण
अवश्य होय ज छे एटलो संबंध छे, पण निमित्त जो नैमित्तिकमां कांई पण करे तो तेमने निमित्तनैमित्तिक संबंध न
रहे पण कर्ताकर्मसंबंध थई जाय.
उपेक्षा करवी न जोईए’–ए वात बराबर छे?
निमित्त भेगुं करुं तो कार्य थाय–ए वात त्रणकाळमां साची नथी. पण कार्य थवानुं ज न हतुं त्यारे निमित्त न हतुं
अने ज्यारे कार्य थाय त्यारे निमित्त होय ज–आ अबाधित नियम छे. पर निमित्तोने आत्मा मेळवी शके एम
मानवुं ते मिथ्यात्व छे.
परनी उपेक्षा करीने स्वभावनुं निर्मळ कार्य ते प्रगट करे नहि. निमित्तना रस्ते उपादाननुं कार्य कदी थतुं नथी पण
उपादाननी योग्यताथी ज (उपादानना रस्ते ज) तेनुं कार्य थाय छे.
छे. बधा सत्शास्त्रनुं तात्पर्य वीतरागभाव छे अने ते वीतरागभाव स्वभावना लक्षे बधा परपदार्थोथी उदासीनता
करवाथी ज थाय छे. कोई पण पर लक्षमां अटकवुं ते शास्त्रनुं प्रयोजन नथी, केमके परना लक्षे राग थाय छे. निमित्त
पण परद्रव्य ज छे; तेथी निमित्तनी अपेक्षा छोडीने अर्थात् तेनी उपेक्षा करीने पोताना स्वभावनी अपेक्षा करवी ते
ज प्रयोजन छे. ‘निमित्तनी उपेक्षा करवा जेवी नथी एटले के निमित्तनुं लक्ष छोडवा जेवुं नथी’ एवो अभिप्राय ते
तो मिथ्यात्व छे, अने ए मिथ्या अभिप्राय छोडया पछी पण अस्थिरताने कारणे निमित्त उपर लक्ष जाय ते रागनुं
कारण छे. माटे पोताना स्वभावना आश्रये निमित्त वगेरे परद्रव्योनी उपेक्षा करवी ते यथार्थ छे.
नहि, एटले के जीवनुं कल्याण थाय नहि. आवो ज वस्तुस्वभाव केवळज्ञानीओए जोयो छे अने संतोमुनिओए
कह्यो छे. जीवने कल्याण करवुं होय तो आ समजवुं पडशे. (वधु आवता अंके)
कारण ए छे के घणा ग्राहको वखतसर लवाजम मोकलवानुं भूली जाय छे अने पछी ज्यारे नवो अंक वी. पी. थी
मोकलवामां आवे छे त्यारे तेओ पोतानी भूलने न समजतां वी. पी. करवा माटे कार्यालयने दोषित ठरावे छे. आशा
छे के आ वखते आप वखतसर लवाजम मोकली आपी वी. पी. नी तकलिफ अने खोटा खर्चथी कार्यालयने
बचावशो.–मनीआर्र्डर फोर्ममां ग्राहक नंबर अवश्य लखशो. सरनामामां फेरफार करवानो होय तो ते पण
जणावशो.–छापखानामां मशीन तेमज माणसोनी तकलीफने कारणे तथा उपादान निमित्तनी स्वतंत्रतानुं मेटर
मेळववामां थयेल ढीलने कारणे आ अंक घणो मोडो प्रगट थयो छे ते माटे आप सौनी क्षमा चाहुं छुं.