Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः२४७३ः २प१ः
ईंद्रियो छे–एम नथी, अने पांच ईन्द्रियो छे माटे ज्ञाननो उघाड छे–एम पण नथी. ज्ञाननी पर्यायमां जेटली
लायकात हती तेटलो उघाड थयो छे, अने जे परमाणुओमां ईन्द्रियोरूपे थवानी लायकात हती तेओ स्वयं ईन्द्रियरूपे
परिणम्या छे. छतां बन्नेनो निमित्त–नैमित्तिक मेळ छे. जे जीवने एक ईन्द्रियना ज्ञाननो उघाड होय तेने एक ज
ईन्द्रिय होय छे, बे वाळाने बे, त्रणवाळाने त्रण, चारवाळाने चार अने पांच ईन्द्रियना उघाडवाळाने पांच ईन्द्रियो
ज होय छे, त्यां बन्नेनुं स्वतंत्र परिणमन छे, एकना कारणे बीजामां कांई थयु नथी.–आने ज
निमित्तनैमित्तिकसंबंध कहेवाय छे.
४प. राग द्वेषनुं कारण कोण? –सम्यग्द्रष्टिने राग द्वेष केम थाय छे?
प्रश्न–जो कर्म आत्माने विकार न करावतां होय तो, आत्मामां विकार थाय छे तेनुं कारण कोण छे?
सम्यग्द्रष्टि जीवोने तो विकार करवानी भावना होती नथी छतां तेमने पण विकार तो थाय छे, माटे कर्म विकार
करावे छे ने?
उत्तर–कर्म आत्माने विकार करावे ए वात खोटी छे. आत्माने पोतानी पर्यायना दोषथी ज विकार थाय छे;
कर्म विकार करावतुं नथी पण आत्मानी पर्यायनी तेवी योग्यता छे. सम्यग्द्रष्टिने राग–द्वेष करवानी भावना नथी
छतां रागद्वेष थाय छे तेनुं कारण चारित्र गुणनी तेवी पर्यायनी लायकात छे. राग–द्वेषनी भावना नथी ते तो
श्रद्धागुणनी पर्याय छे अने रागद्वेष थाय छे ते चारित्रगुणनी पर्याय छे. पुरुषार्थनी नबळाइथी राग–द्वेष थाय छे
एम कहेवुं ते पण निमित्तथी कथन छे. खरेखर तो चारित्रगुणनी ज ते ते समयनी योग्यताने लीधे ज रागद्वेष
थाय छे.
४६. सम्यक् निर्णयनुं जोर
प्रश्न–विकार थाय छे ते चारित्रगुणनी पर्यायनी ज लायकात छे, तो पछी ज्यां सुधी चारित्रगुणनी पर्यायमां
विकार थवानी लायकात होय त्यांसुधी विकार थया ज करे, एम थतां विकारने टाळवानुं जीवने आधीन रह्युं नहि?
उत्तर–एकेक समयनी स्वतंत्र लायकात छे एवो निर्णय कया ज्ञानमां कर्यो? त्रिकाळीस्वभाव तरफ ढळ्‌या
वगर ज्ञानमां एकेक समयनी पर्यायनी स्वतंत्रतानो निर्णय थई शके नहि. अने ज्यां ज्ञान त्रिकाळीस्वभावमां ढळ्‌युं
त्यां स्वभावनी प्रतीतिना जोरे पर्यायमांथी राग–द्वेष थवानी लायकात क्षणे क्षणे घटती ज जाय छे. जेणे स्वभावनो
निर्णय कर्यो तेनी पर्यायमां लांबोकाळ राग–द्वेष रहे एवी लायकात होय ज नहि, एवुं ज सम्यक्निर्णयनुं जोर छे.
४७. कार्यमां निमित्त कांई करतुं नथी छतां तेने ‘कारण’ केम कह्युं?
कार्यना बे कारणो कहेवामां आव्या छे, तेमां एक उपादानकारण छे, ते ज यथार्थ कारण छे; बीजुं निमित्त–
कारण ते आरोपीत कारण छे. उपादान अने निमित्त ए बे कारण कहेवानो आशय एवो नथी के बन्ने भेगा थईने
कार्य करे छे. ज्यारे उपादान कारण पोते कार्य करे छे त्यारे बीजी चीजने आरोप करीने तेने निमित्तकारण कहेवाय छे,
पण ते खरेखर कारण नथी.
प्रश्न– निमित्त ते खरेखर कारण नथी छतां तेने कारण केम कह्युं?
उत्तर–जेने निमित्त कहेवाय छे ते पदार्थमां तेवा प्रकारनी (–निमित्तरूप होवानी) लायकात छे; तेथी अन्य
पदार्थोथी तेने जुदुं ओळखाववा माटे तेने ‘निमित्त कारण’ एवी संज्ञा आपी छे. ज्ञाननो स्वभाव स्व–परप्रकाशक
छे तेथी ते परने पण जाणे छे, अने परमां निमित्तपणानी लायकात छे तेने पण जाणे छे.
४८. कर्मना उदयना लीधे जीवने विकार थतो नथी
जीवनी पर्यायमां ज्यारे विकार थाय त्यारे कर्म निमित्त तरीके होय ज. पण जीवनी पर्याय अने कर्म ए
बन्ने भेगा थईने विकार करता नथी. कर्मना उदयने लीधे विकार थतो नथी, अने विकार कर्यो माटे कर्मो उदयमां
आव्या–एम नथी. अने जीव विकार न करे त्यारे कर्मो खरी जाय छे तेने निमित्त कहेवाय छे. परंतु जीवे विकार न
कर्यो माटे कर्मो खर्या ए वात बराबर नथी, ते परमाणुओनी लायकात ज तेवी हती.
जे द्रव्यनी जे समये, जे क्षेत्रे, जेवा संयोगोमां अने जे रीते जेवी अवस्था थवानी होय तेवी ते प्रमाणे थाय
ज, तेमां फेर पडे ज नहि–ए श्रद्धामां तो वीतरागीद्रष्टि थई जाय छे, स्वभावनी द्रढता ने स्थिरतानी एकता छे अने
विकारथी उदासीनता ने परथी भिन्नता छे; तेमां समये समये भेदविज्ञाननुं ज कार्य छे.
४९. नैमित्तिकनी व्याख्या
प्रश्न–नैमित्तिकनो अर्थ व्याकरण प्रमाणे तो ‘निमित्तथी थाय ते’ एवो थाय छे, अने अहीं तो कह्युं के
निमित्तथी नैमित्तिकमां कांई थतुं नथी.
उत्तर– ‘निमित्तथी थाय ते नैमित्तिक छे अर्थात् निमित्त जनक अने नैमित्तिक ज्न्य छे’ ए व्याख्या
व्यवहारथी कहेवाय छे; खरेखर निमित्तथी नैमित्तिक थतुं नथी. पण उपादाननुं कार्य ते नैमित्तिक छे अने ज्यारे